ताऊ की चौपाल मे आपका स्वागत है. ताऊ की चौपाल मे सांस्कृतिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक विषयों पर सवाल पूछे जायेंगे. आशा है आपको हमारा यह प्रयास अवश्य पसंद आयेगा.
सवाल के विषय मे आप तथ्यपुर्ण जानकारी हिंदी भाषा मे, टिप्पणी द्वारा दे सकें तो यह सराहनीय प्रयास होगा.
आज का सवाल नीचे दिया है. इसका जवाव और विजेताओं के नाम अगला सवाल आने के साथ साथ, इसी पोस्ट मे अपडेट कर दिया जायेगा.
आज का सवाल :-
आर्यभट्ट ने किस ज्योतिष ग्रंथ की रचना की थी? जिसके सूत्र आज कंप्युटर के लिये उपयोगी पाये गये हैं?
अब ताऊ की रामराम.
उत्तर :-
आर्यभट्ट द्वारा रचित इस ग्रंथ का नाम आर्यभट्टियम (शक संवत ४२१ लगभग सन ५००) है. सही जवाब मुरारी पारीक
काजलकुमार,
पी.सी.गोदियाल,
जी. के. अवधिया
प्रकाश गोविंद
ने दिया है. विस्तृत विवरण के लिये आप प्रकाश गोविंद की और मुरारी पारीक की टिप्पणियां इसी पोस्ट पर देखें.
11 comments:
30 November 2009 at 08:16
बीज गणित
30 November 2009 at 08:20
audAyaka system
30 November 2009 at 09:01
Aryabhatiya with the commentary Bhatadipika of Paramesvara
30 November 2009 at 09:21
आर्यभट्टीया कुछ लोग इसे आर्यभट्टिका के नाम से भी जानते हैं
30 November 2009 at 09:35
आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। आर्यभटीय, संस्कृत भाषा में काव्यरूप में रचित है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं :
1. दश-गीतिका-पाद
2. गणित-पाद - खगोलीय अचर (astronomical constants) तथा ज्या-सारणी (sine table) ; गणनाओं के लिये आवश्यक गणित
3. काल-क्रिया-पाद - समय-विभाजन तथा ग्रहों की स्थिति की गणना के लिये नियम
4. गोल-पाद - त्रिकोणमितीय समस्याओं के हल के लिये नियम; ग्रहण की गणना
30 November 2009 at 09:39
ताऊ जी राम राम
30 November 2009 at 09:40
(Part - 2)
आज के वक्त के बडे बडे वैज्ञानिक अब भी आश्चर्य चकीत रह जाते है की उस वक्त आर्यभटने पाई (Pi), वृत्त का क्षेत्रफळ , ज्या (sine) इत्यादिं बातोंका विश्लेषन कैसे किया होगा.
आर्यभट एक युगप्रवर्तक थे. उन्होने अपने वक्तके प्रचलित अंधश्रध्दांओंको झुटा ठहराया. उन्होने सारी दुनिया को बताया की पृथ्वी चंद्र और अन्य ग्रहों को खुद का प्रकाश नही होता और वे सुरज की वजह से प्रकाशित होते है. पृथ्वी के जिस भागपर सूर्यप्रकाश पडता है वहां दिन और जहा सूर्यप्रकाश नही पडता वहा रात. ऐसा भी उन्होने बताया था. पृथ्वी पर अलग अलग शहरों मे सुर्योदय और सुर्यास्त का वक्त इसमें फर्क क्यो होता है इसके कारणों का विश्लेषन भी उन्होने विस्तृत तरह से किया है. उन्होने यह भी जाहिर किया की पृथ्वी गोल है. उन्होने इस मान्यता को तोडा की पृथ्वी ही ब्रह्मांड का केंद्र है और सुरज और बाकी ग्रह उसके सभोवताल घुमते है. उन्होने पृथ्वी का आकार, गती, और परिधी का अंदाज भी लगाया था. और सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहणके बारे में भी संशोधन किया था.
उन्होने त्रेतालीस लाख बीस हजार वर्षका एक महायुग बताया और एक महायुगको चार हिस्सो मे
सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापारयुग और कलियुग इस तरह विभाजित किया. इन चारो युगों का काल उन्होने दस लाख अस्सी हजार साल आंका है.
30 November 2009 at 09:40
अमर कृति आर्यभटीय
आर्यभट्ट ने मात्र 23 साल की उम्र में रच डाला ज्योतिष का सबसे वैज्ञानिक ग्रंथ... इतने महान थे आर्यभट।
आर्यभट्टीय' ग्रंथ में उन्होने ज्योतिष्य शास्त्रके मूलभूत सिध्दांतके बारे में लिखा. इस ग्रंथमें 121 श्लोक है जो उन्होने चार खंडो में विभाजित किया है.
गीतपादी का नामके पहले खंड में ग्रह का परिभ्रमण काल, राशी , अवकाश में ग्रहों की कक्षा इस विषय पर जानकारी दी है.
गीतपाद नाम के दुसरे खंड में उन्होने गणित के
वर्गमूल, घनमूल, त्रिकोणका क्षेत्रफल, ज्या (sine) इत्यादीं का विश्लेषन किया है.
इस ग्रंथके 'कालक्रिया' इस तीसरे खंड में काल के अलग अलग भाग, ग्रहोंका परिभ्रमण , संवत्सर, अधिक मास, क्षय तिथी, वार ,सप्ताह इनकी गणना के बारें मे विवेचन दिया है.
चौथा खंड 'गोलपाद' नाम से प्रचलित है और उसमें खगोल विज्ञान के बारे मे जानकारी है. सूर्य, चंद्र, राहू ,केतू और बाकी ग्रहों की स्थिति, दिन और रात का कारण, राशीं का उदय, ग्रहण का कारण इत्यादि विश्लेशन इस खंडमें मिलता है.
30 November 2009 at 09:49
Ram-raam sabko !
kitaab kaa naam thaa;
Aryabhatasiddhanta
30 November 2009 at 09:49
Yeh bhee khoob rahee tau ji !
30 November 2009 at 10:03
आर्यभटीय!
T.R.N. Rao और Chung-Huang Yang ने आर्यभटीय पर आधारीत कम्प्यूटर एल्गोरिद्म (computer algorithm) बनाया है।
"आर्यभट सिद्धान्त" भी आर्यभट की महत्वपूर्ण कृति है।
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