ताऊ की चौपाल मे : दिमागी कसरत - 21

ताऊ की चौपाल मे आपका स्वागत है. ताऊ की चौपाल मे सांस्कृतिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक विषयों पर सवाल पूछे जायेंगे. आशा है आपको हमारा यह प्रयास अवश्य पसंद आयेगा.

सवाल के विषय मे आप तथ्यपुर्ण जानकारी हिंदी भाषा मे, टिप्पणी द्वारा दे सकें तो यह सराहनीय प्रयास होगा.


आज का सवाल नीचे दिया है. इसका जवाव और विजेताओं के नाम अगला सवाल आने के साथ साथ, इसी पोस्ट मे अपडेट कर दिया जायेगा.


आज का सवाल :-

महाभारत में यक्ष कौन था?

अब ताऊ की रामराम.

उत्तर :-

सही जवाब के लिये श्री श्यामल सुमन, श्री अजय कुमार झा की टिप्पणियां इसी पोस्ट पर पढिये. एवम विशिष्ट जानकारी के लिये सुश्री सीमा गुप्ता की टिप्पणी पढे और अति विशिष्ट जानकारी के लिये श्री प्रकाश गोविंद की टिप्पणी इसी पोस्ट की टिप्पणियों मे पढे!


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Promoted By : ताऊ और भतीजाएवम कोटिश:धन्यवाद

6 comments:

  seema gupta

19 December 2009 at 08:20

यक्ष वास्तव में यम था जिसने पाण्डवों को अपने प्रश्नों के उत्तर देने से पहले पानी पीने से मना किया था।
regards

  seema gupta

19 December 2009 at 08:21

पाण्डवों से पांच प्रश्न पूछने वाला यक्ष वास्तव में यम था, जिसने पाण्डवों को अपने प्रश्नों के उत्तर देने से पहले पानी पीने से मना किया था।

युधिष्ठिर से पूछा गया उसका सवाल और युधिष्ठिर का जवाब भारतीय दर्शन की झलक दिखलाते हैं।

कहानी कुछ इस प्रकार है: अज्ञातवास के दौरान प्यास से तरसते पाण्डव एक के बाद एक , एक सरोवर से पानी पीने जाते हैं। वहां एक यक्ष उन्हें रोक कर कहता है कि अगर उसके सवाल का जवाब दिए बिना किसी ने पानी पिया तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी।


अर्जुन भीम, नकुल और सहदेव उसकी बात अनसुनी कर देते हैं और पानी पीते ही मृत होकर सरोवर के किनारे गिर पड़ते हैं।


अंत में भाइयों को खोजते युधिष्ठिर सरोवर के किनारे पहुंचते हैं और यक्ष की बात सुन कर उसके सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
यक्ष उनसे पूछता है; इस दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? “किमाश्चर्यम परम:?”


युधिष्ठिर जवाब देते है: “इस दुनिया में नित्य लोगों को मरते देखते हुए भी मनुष्य यह सोच कर जीता है कि वह कभी मरने वाला नहीं, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है।”

regards

  अजय कुमार झा

19 December 2009 at 08:23

महाभारत में यक्ष :
शायद लाक्षाग्रह वाली घटना के बाद जब सभी पांडव भटक रहे थे तो उन्हें एक तलाब मिला जब वे उसमें पानी पीने के लिए उतरे तो उस तालाब का रखवाला एक यक्ष था जिसने सभी से पहले अपने प्रश्नों का उत्तर देने के बाद ही पानी पीने को कहा , मगर युधिष्ठिर को छोड के किसी ने उत्तर नहीं दिया और तालाब में घुसते ही बेहोश हो गए। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों का धर्मानुसार उत्तर दिया और अपने धर्मराज के उपनाम का पूरा मान रखा ।

  श्यामल सुमन

19 December 2009 at 08:30

महाभारत का प्रसिद्ध अंश " यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद", जिसमे बहुत हद तक भारतीय दर्शन को रेखांकित करने का प्रयास हुआ है, का यक्ष वास्तव में यम था।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman. blogspot. com

  प्रकाश गोविंद

19 December 2009 at 10:08

बहुत हो गया जी
आज तो मैं कुछ ज्ञान देकर ही जाऊँगा :)

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महाकाव्य महाभारत में ‘यक्ष-युधिष्ठिर संवाद’ नाम से एक पर्याप्त चर्चित प्रकरण है । संक्षेप में उसका विवरण यूं है: पांडवजन अपने तेरह-वर्षीय वनवास पर वनों में विचरण कर रहे थे । तब उन्हें एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश हुई । पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सोंपा गया । उसे पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वह वहां पहुंचा । जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उसे रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी, जिसकी सहदेव ने अवहेलना कर दी । यक्ष ने उसे निर्जीव कर दिया । उसके न लौट पाने पर बारी-बारी से क्रमशः नकुल, अर्जुन एवं भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई । वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण सभी का वही हस्र हुआ । अंत में युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे ।

यक्ष ने उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा । युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया, यक्ष को संतुष्ट किया, और जल-प्राप्ति के साथ यक्ष के वरदान से भाइयों का जीवन भी वापस पाया । यक्ष ने अंत में यह भी उन्हें बता दिया कि वे धर्मराज हैं और उनकी परीक्षा लेना चाहते थे ।

उस समय संपन्न यक्ष-युधिष्ठिर संवाद वस्तुतः काफी लंबा है । यक्ष ने सवालों की झणी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली । अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे और उत्तरों से संतुष्ट हुए । अंत में यक्ष ने चार प्रश्न युधिष्ठिर के समक्ष रखे जिनका उत्तर देने के बाद ही वे पानी पी सकते थे ।
चार प्रश्न :
१. कौन व्यक्ति आनंदित या सुखी है ?
२. इस सृष्टि का आश्चर्य क्या है ?
३. जीवन जीने का सही मार्ग कौन-सा है ?
४. रोचक वार्ता क्या है ?


युधिष्ठिर के उत्तर :
१. हे जलचर (जलाशय में निवास करने वाले यक्ष), जो व्यक्ति पांचवें-छठे दिन ही सही, अपने घर में शाक (सब्जी) पकाकर खाता है, जिस पर किसी का ऋण नहीं है और जिसे परदेस में नहीं रहना पड़ता है, वही मुदित-सुखी है । यदि युधिष्ठिर के शाब्दिक उत्तर को महत्त्व न देकर उसके भावार्थ पर ध्यान दें, तो इस कथन का तात्पर्य यही है जो सीमित संसाधनों के साथ अपने परिवार के बीच रहते हुए संतोष कर पाता हो वही वास्तव में सुखी है ।

२. यहां इस लोक से जीवधारी प्रतिदिन यमलोक को प्रस्थान करते हैं, यानी एक-एक कर सभी की मृत्यु देखी जाती है । फिर भी जो यहां बचे रह जाते हैं वे सदा के लिए यहीं टिके रहने की आशा करते हैं । इससे बड़ा आश्चर्य भला क्या हो सकता है ? तात्पर्य यह है कि जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है और उस मृत्यु के साक्षात्कार के लिए सभी को प्रस्तुत रहना चाहिए । किंतु हर व्यक्ति इस प्रकार जीवन-व्यापार में खोया रहता है जैसे कि उसे मृत्यु अपना ग्रास नहीं बनाएगी ।

३. जीवन जीने के असली मार्ग के निर्धारण के लिए कोई सुस्थापित तर्क नहीं है, श्रुतियां (शास्त्रों तथा अन्य स्रोत) भी भांति-भांति की बातें करती हैं, ऐसा कोई ऋषि/चिंतक/विचारक नहीं है जिसके वचन प्रमाण कहे जा सकें । वास्तव में धर्म का मर्म तो गुहा (गुफा) में छिपा है, यानी बहुत गूढ़ है । ऐसे में समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति जिस मार्ग को अपनाता है वही अनुकरणीय है । ‘बड़े’ लोगों के बताये रास्ते पर चलने की बातें अक्सर की जाती हैं । यहां प्रतिष्ठित या बड़े व्यक्ति से मतलब उससे नहीं है जिसने धन-संपदा अर्जित की हो, या जो व्यावसायिक रूप से काफी आगे बढ़ चुका हो, या जो प्रशासनिक अथवा अन्य अधिकारों से संपन्न हो, इत्यादि । प्रतिष्ठित वह है जो चरित्रवान् हो, कर्तव्यों की अवहेलना न करता हो, दूसरों के प्रति संवेदनशील हो, समाज के हितों के प्रति समर्पित हो, आदि-आदि ।

४. काल (यानी निरंतर प्रवाहशील समय) सूर्य रूपी अग्नि और रात्रि-दिन रूपी इंधन से तपाये जा रहे भवसागर रूपी महा मोहयुक्त कढ़ाई में महीने तथा ऋतुओं के कलछे से उलटते-पलटते हुए जीवधारियों को पका रहा है । यही प्रमुख वार्ता (खबर) है । इस कथन में जीवन के गंभीर दर्शन का उल्लेख दिखता है । रात-दिन तथा मास-ऋतुओं के साथ प्राणीवृंद के जीवन में उथल-पुथल का दौर निरंतर चलता रहता है । प्राणीगण काल के हाथ उसके द्वारा पकाये जा रहे भोजन की भांति हैं, जिन्हें एक न एक दिन काल के गाल में समा जाना है ।
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महाभारत और उसके अंतर्गत यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का ऐतिहासिक महत्त्व है महाभारत मानव जीवन के सच का प्रतीकात्मक निरूपण है । ग्रंथ में वर्णित कथाएं शब्दशः अर्थपूर्ण न हों ऐसा संभव है । फिर भी उनका दार्शनिक पक्ष प्रभावी है, और चिंतन की व्यापकता आकर्षक है ।

  Anonymous

19 December 2009 at 16:53

@प्रकाश गोविन्द ji aabhar, 'यक्ष-युधिष्ठिर संवाद'
ka sankshipt vuvaran itni saralta se prastut karne ke liye.

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