ताऊ की चौपाल मे आपका स्वागत है. ताऊ की चौपाल मे सांस्कृतिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक विषयों पर सवाल पूछे जायेंगे. आशा है आपको हमारा यह प्रयास अवश्य पसंद आयेगा.
सवाल के विषय मे आप तथ्यपुर्ण जानकारी हिंदी भाषा मे, टिप्पणी द्वारा दे सकें तो यह सराहनीय प्रयास होगा.
आज का सवाल नीचे दिया है. इसका जवाव और विजेताओं के नाम अगला सवाल आने के साथ साथ, इसी पोस्ट मे अपडेट कर दिया जायेगा.
आज का सवाल :-
वैष्णव पुष्टि मार्गीय संप्रदाय की स्थापना और विशेषकर गुजरात मे प्रचार प्रसार किसने किया?
अब ताऊ की रामराम.
उत्तर:-
सीमा गुप्ता
रंजन
मीत
डाँ. महेश सिन्हा
ने कहा महाप्रभु बल्लभाचार्य...जी हां यह सही जवाब है पर जवाब का दूसरा हिस्सा था कि गुजरात मे इस प्रचार प्रसार
किसने किया? तो इसमे बल्लभाचार्य जी के पुत्र विठ्ठल्नाथ गोसांई ने महत्वपुर्ण योगदान दिया.
इस विषय मे सही जवाब देते हुये अल्पना वर्मा
और प्रकाश गोविंद ने अति महत्वपुर्ण जानकारी प्रदान की. उनका बहुत आभार!
13 comments:
5 December 2009 at 08:27
5 December 2009 at 08:31
महाप्रभु वल्लभाचार्य
regards
5 December 2009 at 08:55
ताऊ , दिमागी कसरत तभी करेंगे अगर दिमाग होगा? चलते हैं राम राम ।
5 December 2009 at 09:38
निर्मला कपिला जी की बात से १००% सहमत हा-हा-हा-हा...
5 December 2009 at 09:57
Jagad Guru Shri Vallabhjacharya
5 December 2009 at 10:04
वैष्णव पुष्टि मार्गीय संप्रदाय -भक्ति का एक संप्रदाय जिसकी स्थापना महाप्रभु वल्लभाचार्य ने की थी। इसे 'वल्लभ संप्रदाय' या 'वल्लभ मत' भी कहते हैं। पुष्टिमार्ग के तीन प्रमुख अंग हैं-
1. ब्रह्मवाद,
2. आत्मनिवेदन और
3. भगवत्सेवा।
वल्लभाचार्य ने अपने शुद्धाद्वैत दर्शन के आधार पर इस मत का प्रतिपादन किया। जो भक्त साधन निरपेक्ष हो, भगवान के अनुग्रह से स्वत: उत्पन्न हो और जिसमें भगवान दयालु होकर स्वत: जीव पर दया करें, वह पुष्टिभक्ति कहलाती है। ऐसा भक्त भगवान के स्वरूप दर्शन के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता। वह आराध्य के प्रति आत्मसमर्पण करता है। इसको 'प्रेमलक्षणा भक्ति' भी कहते हैं। ऐसी भक्ति कर्म, ज्ञान और योग से भी श्रेष्ठ बताई गई है।
भागवत पुराण के अनुसार भगवान् का अनुग्रह ही पोषण या पुष्टि है। [1] आचार्य वल्लभ ने इसी भाव के आधार पर अपना पुष्टिमार्ग चलाया। इसका मूल सूत्र उपनिषदों में पाया जाता है। कठोपनिषद में कहा गया है कि परमात्मा जिस पर अनुग्रह करता है उसी को अपना साक्षात्कार कराता है। वल्लभाचार्य ने जीव आत्माओं को परमात्मा का अंश माना है जो चिंगारी की तरह उस महान आत्मा से छिटके हैं। यद्यपि ये अलग-अलग हैं तथापि गुण में समान हैं। इसी आधार पर वल्लभ ने अपने या पराये शरीर को कष्ट देना अनुचित बताया है।
5 December 2009 at 10:09
वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग की स्थापना समय की आवश्यकता का अनुभव करके की थी। अपने 'कृष्णश्रय' नामक प्रकरण-ग्रन्थ में उन्होंने उस समय का विशद चित्रण किया है। समस्त देश म्लेच्छाकान्त था, गंगादि तीर्थ भ्रष्ट हो रहे थे, उनके अधिष्ठाता देवता अन्तर्धान हो गये थे, वेद-ज्ञान का लोप हो गया था, यज्ञ-याग का अनुष्ठान सम्भव नही था। ऐसे अवसर पर भक्ति का मार्ग ही एकमात्र शेष रह गया था। उन्होंने भक्ति का मार्ग राजमार्ग के समान प्रशस्त बनाया और उसपर उन सबको भी चलने के लिए आमन्त्रित किया, जो धर्म के अधिकारी नहीं समझ जाते थे। फलत: पुष्टिमार्ग में ब्राह्मण से लेकर शूद्र तक सभी श्रेणियों और वर्गों के स्त्री और पुरूष सम्मिलित हुए.संक्षेप में पुष्टिमार्गीय। भक्ति सहज, निष्काम प्रेमभक्त है, जिसे भगवदनुग्रह का प्रत्यावर्तित रूप कह सकते हैं, क्योंकि वह एकमात्र भगवत्कृपा पर ही आश्रित है। प्रेम-भक्ति स्वत: परिपूर्ण है, उसमें किसी प्रकार की प्रार्थना विहित नहीं है, क्योंकि प्रार्थना की पूर्ति के लिए भगवान को कष्ट उठाना है।
इस मार्ग में साधु-संन्यासी नहीं होते हैं, धार्मिक आचार्य भी पूर्ण गृहस्थ होते हैं। इसमें त्याग का नहीं, समर्पण का महत्त्व है। समर्पण से ही मानसिक वैराग्य दृढ़ होता है।इस प्रकार पुष्टिमार्ग एक प्रवृत्ति-मार्ग है, जिसमें मानसिक निवृत्ति पर ही विशेष बल दिया गया है।
पुष्टिमार्गीय भक्ति स्वत: पूर्ण है। भक्ति के अतिरिक्त भक्त को और किसी बात की आकांक्षा नहीं होती।
महाप्रभु वल्लभाचार्य चैतन्य महाप्रभु के समकालीन थे। चैतन्य के साथ उनकी दो-एक बार भेंट हुई थी तथा उन्होंने गौड़ीय वैष्णवों को श्रीनाथजी की सेवा में नियुक्त किया था।
5 December 2009 at 10:18
गुजरात मे वल्लभाचार्य जी ने [वैष्णव पुष्टि मार्ग] कृष्ण भक्ति के प्रसार का कार्य किया.[उन्हें वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार कहा गया है।]
जगत्प्रसिद्ध सूरदास भी इस सम्प्रदाय की प्रसिद्धि के मुख्य कारण कहे जा सकते हैं। सूरदास ने वल्लभाचार्य जी से दीक्षा लेकर कृष्ण की प्रेमलीलाओं एवं बाल क्रीड़ाओं को भक्ति के रंग में रंग कर प्रस्तुत किया।
5 December 2009 at 10:37
वैष्णव पुष्टि मार्गीय संप्रदाय के संस्थापक श्रीमद्वल्लभाचार्य जी महाराज थे ।
महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वैष्णव संप्रदाय पुष्टिमार्ग कहलाया। कालांतर में यह वल्लभ संप्रदाय के नाम से पसिद्ध हुआ
श्रीमद्वल्लभाचार्य के मतानुसार जीवोद्धार के लिये पुष्टि अनिवार्य है। पुष्टि का अर्थ है प्रभुकृपा या भगवत् अनुग्रह। जीव स्वयं पुष्टि प्राप्त नहीं कर सकता। पुष्टि प्रभुकृपा या भगवत् अनुग्रह के रूप में प्राप्त होती है।
पुष्टि के लिये संपूर्ण समर्पण अनिवार्य है। संपूर्ण समर्पण आराध्य के प्रति आत्मनिवेदन के साथ होता है जिसे ब्रह्मसंबन्ध दीक्षा कहा जाता है। ब्रह्मसंबन्ध दीक्षा ग्रहण करने वाला समर्पित जीव अपने आराध्य के समक्ष सर्वस्व समर्पण करता देता है अर्थात् वह समस्त लौकिक स्वामित्व भाव और कर्ता भाव का परित्याग कर देता है और केवल सेवक के भाव से मात्र प्रभुसेवा में लीन रहता है। वह अहंता और ममता दोनों से मुक्त हो जाता है। संसार में जो कुछ उसे प्राप्त होता है अथवा जिसका भी वह उपभोग करता है, उसे वह प्रभुकृपा अर्थात् भगवत् प्रसाद के रूप में ही ग्रहण करता है। वह प्रभुसेवा से आनन्दित होता है और प्रभुकृपा या भगवत् प्रसाद प्राप्त करके धन्य होता है।
श्री वल्लभाचार्य के अनुसार जीव और ब्रह्म के बीच अद्वैत संबन्ध है परंतु यह अद्वैत संबन्ध शुद्ध प्रकार का है। संपूर्ण समर्पण और आत्मनिवेदन के पश्चात जीव अहंता-ममता से मुक्त हो जाता है और सेवा मार्ग का अनुसरण करते हुए शुद्ध भाव से भक्ति करता है।
श्री वल्लभाचार्य के अनुसार भक्ति के दो प्रमुख मार्ग हैं - मर्यादामार्ग और पुष्टिमार्ग।
5 December 2009 at 12:35
आचार्य वल्लभ महाप्रभु
5 December 2009 at 12:35
5 December 2009 at 14:24
महाप्रभु वल्लभाचार्य
5 December 2009 at 14:43
मुम्बई ब्लोगर मीट दिनाक ०६/१२/२००९ साय ३:३० से नेशनल पार्क बोरीवली मुम्बई के त्रिमुर्तीदिगम्बर जैन टेम्पल मे होनॆ की सुचना विवेकजी रस्तोगी से प्राप्त हुई... शुभकामानाऎ..
वैसे मुम्बई टाईगर इसी नैशनल पार्क मे विचरण करते है.
जीवन विज्ञान विद्यार्थीयों में व्यवहारिक एवं अभिवृति परिवर्तन सूनिशचित करता है
ताउ के बारे मे अपने विचार कुछ इस तरह
येसेई केसे चर्चिया रिये हो सूरमा भोपाली? ब्लाग चर्चा
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