वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : सुश्री शिखा वार्ष्णेय

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,

हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज सुश्री शिखा वार्ष्णेय की रचना पढिये.

आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.


नाम - शिखा वार्ष्णेय
शिक्षा - टी वी जर्नलिज्म में परास्नातक मोस्को स्टेट युनिवर्सिटी रशिया से.
स्थान - लन्दन
शौक - देश ,विदेश भ्रमण
ब्लाग : स्पंदन


नानी और मुन्नी.

एक दिन पड़ोस की नानी और
अपनी मुन्नी में ठन गई।
अपनी अपनी बात पर
दोनों ही अड्ड गईं।
नानी बोली
क्या जमाना आ गया है...
घड़ी घड़ी डिस्को जाते हैं,
बेकार हाथ पैर हिलाते हैं
ये नहीं मंदिर चले जाएँ,
एक बार मथ्था ही टेक आयें॥
मुन्नी चिहुंकी
तो आपके मंदिर वाले
डिस्को नहीं जाते थे?
ये बात और है कि
डिस्को तब उपवन कहलाते थे।
हम तो फिर भी
एक ही के साथ जाते हैं
वो तो एक साथ
हजारो के साथ रास रचाते थे।
सुन नानी की भवें तन गईं
अपना डंडा ले मुन्नी पर चढ़ गईं
देखो कैसी जबान चलती है
न शर्म न बड़ों का लिहाज़
जो मन आया पटपटाती है।
मुन्नी ने फिर चुटकी ली
नानी जरा अपने
शास्त्रों का ध्यान करो
उसमें नारी के जो
चौसठ गुणों का वर्णन है
उसमें वाक्पटुता भी एक गुण है।
अब नानी को कुछ न सूझा
तो उसके कपडों पर अड्ड गईं
ये आजकल का सिनेमा और नाच
इसी ने किया है
बच्चों का दिमाग ख़राब
मुन्नी खिलखिलाई
वाह नानी !
ये कैसा दोगला व्यवहार है
इन्द्र की सभा में नाचें तो अप्सरा हैं
और पेट पालती बार बालाएं बदनाम हैं।
फर्क बस इतना है -
तब राजतंत्र था और
शौक राजाओं तक सिमित था
आज लोकतंत्र है
हर बात का
जनता को भी हक है।
बदला जमाना नहीं
बदला आपके चश्मे का नम्बर है
मुन्नी नानी का मुहँ चूम
फुर्र से उड़ गई और
नानी बेचारी सोच में पड़ गई।
अरे अम्मा! चलो पार्क घुमा लाऊं ?
पप्पू की आवाज आई
पल्लू से चश्मा पोंछ
नानी बुदबुदाई
अभी वो कहीं नहीं जाएँगी
कल ही बेटे से कह
पहले ये मूआं चश्मा बदलवाएगी.

-शिखा वार्ष्णेय.

वैशाख्नंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री अविनाश वाचस्पति

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,

हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज श्री अविनाश वाचस्पति की रचना पढिये.

आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.


लेखक परिचय :-
अविनाश वाचस्‍पति,
साहित्‍यकार सदन, पहली मंजिल,
195 सन्‍त नगर,
नई दिल्‍ली 110065
मोबाइल 09868166586/09711537664

संदर्भ : कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स और दिल्‍ली सरकार का बजट

मुख्‍यमंत्री का खुला पत्र दिल्‍ली के दिलवालों के नाम

अविनाश वाचस्‍पति

दिल्‍ली का बजट क्‍या पेश किया गया दिल्‍ली वालों ने दहकना शुरू कर दिया। यह सब तो दिल्‍ली वालों के दिल की परख की जा रही है। यह निरखा परखा जा रहा है कि दिल्‍ली वालों का दिल कितना मजबूत है या सिर्फ नाम के ही दिलवाले हैं दिल्‍लीवाले अथवा इस नाम को सार्थक करके दिखलाने के लिए भी डटना जानते हैं। अब कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स हुआ ही चाहते हैं कुछ सौ दिन ही बकाया है। इन खेलों में निश्चित ही देश के चोटी के खिलाड़ी अपनी विशाल परंपराओं को कायम रखते हुए हारेंगे तो पब्लिक जो मोटे मोटे आंसू बहायेगी उससे पानी की कमी तो पूरी हो जाएगी। यह पानी की कमी को दूर करने की हमारी सार्थक पहल मानी जानी चाहिए। इसलिए अगर दिल्‍लीवालों के दिल की मजबूती की जांच की जा रही है तो काहे को हल्‍ला मचाया जा रहा है। एकदम मौके पर दिल्‍ली का दिल फेल तो नहीं हो जाएगा, इसे कसौटी पर कस कर देखने पर एतराज करने वालों की बुद्धि पर मुझे तरस आ रहा है। पर आप यह भूल जाइये कि मैं भावनाओं में बहकर बढ़ाई गई कीमतों को वापिस ले लूंगी तो फिर आपने मुझे अच्‍छी तरह पहचाना ही नहीं है। आपके भले के लिए, खेलों को आपके गले में उतारने के लिए मैं किसी भी हद तक गुजर जाऊंगी पर आपको गुजरने नहीं दूंगी।

अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि दिल्‍लीवालों को दिल्‍ली सरकार ने लूट लिया है। कुछ चैनल रो रोकर कह रहे हैं कि दिल्‍ली रो रही है जबकि वे रो खुद रहे हैं। कोई कह रहा है कि दिल्‍ली सरकार जेबकट है, सरेआम जेब काट ली उसने पब्लिक की। अब भला अपनी जेब से कुछ निकालना जेब काटना कब से हो गया। अब अगर दिल्‍ली सरकार दिल्‍ली वालों को अपना मानती है तो उसकी जेब से कुछ भी निकालने का हक रखती है कि नहीं। अपनी जेब से खुद निकालना जेबकटी की श्रेणी में कब से शुमार हो गया। अगर गेम्‍स के नाम पर या सुविधाएं दिलाने के नाम पर थोड़ा अधिक निकाल भी लिया तो खफा होने की क्‍या बात है, इंसान जब पैदा होता है तो कुछ भी न तो साथ लाता है और न ही मरते समय साथ ले जाता है। दूध महंगा हो गया तो जो अफवाह सबसे अधिक सुर्खियों में रही वो यह थी कि दिल्‍ली में चाय बनाने, बेचने और पीने-पिलाने पर दिल्‍ली सरकार प्रतिबंध लगाने वाली है। आपको मैं पूरा विश्‍वास दिलाती हूं कि ऐसा कुछ नहीं है। इस तरह की अफवाहों पर बिल्‍कुल कान मत दीजिए और चाय चाहे बीस रुपये कप भी हो जाए तब भी इस पर प्रतिबंध लगाने का हमारा कोई प्रस्‍ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है।

कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के नाम पर कितना कुछ मिला है दिल्‍लीवालों को, उसकी तरफ ध्‍यान नहीं दे रहे हैं आप लोग। जरा सी दस, बीस, पचास पैसे अथवा रुपये दो रुपये या अधिक से अधिक चालीस रुपये रोजाना की जरूरत की उपयोगी चीजों पर क्‍या बढ़ा दिए, सब नाहक बिसूर रहे हैं और एलपीजी के लाल रंग के घरेलू सिलैंडर की तरह तमतमा रहे हैं । भला यह भी कोई बात हुई, सभ्‍य और सुसंस्‍कृत नागरिक कभी ऐसा नहीं करते हैं। हम तो आपसे बहुत बड़ी बड़ी त्‍याग की उम्‍मीदें लगाकर बैठे हैं, तो दिल्‍लीवाले अपनी इकलौती मुख्‍यमंत्री को नाउम्‍मीद करेंगे।

अभी हमने इतनी महंगाई तो नहीं बढ़ाई है कि पब्लिक को भीख मांगने की नौबत आ गई हो बल्कि हम तो यहां से भिखारियों को हटाना चाहते हैं। इसी मिशन की प्राप्ति के लिए महंगाई बढ़ाई गई है। चौराहों पर, नुक्‍कड़ पर, गलियों पर, सड़कों पर, मंदिरों में – सब जगह पर भिखारियों को भीख देने के लिए दिल्‍लीवाले जब इतने दिलदार हैं तो सीधे से तो उनका दिल तोड़ना मुझे ठीक नहीं लगा। इसलिए यह सोचा गया कि पब्लिक के पास इतने पैसे छोड़ो ही मत कि भीख दे पाएं, जब भीख मिलेगी ही नहीं तो भिखारी खुदबखुद दिल्‍ली से किनारा कर जाएंगे। वह नौबत तो नहीं आने दी जाएगी इसका पब्लिक को पूरा विश्‍वास दिलाते हैं कि दिल्‍ली के दिलवालों को भीख देने की जगह भीख मांगनी पड़े। हमारी कोशिश तो सिर्फ यही है कि आप भीख न दे पाएं, बस्‍स। इससे अधिक दिल्‍ली सरकार और कुछ नहीं चाहती।

वो भी सिर्फ दिल्‍लीवालों की छवि विदेशियों, खिलाडि़यों, पर्यटकों की निगाह में धूमिल न हो, इसके लिए इतनी कीमतें बढ़ाने को विवश होना पड़ा है फिर भी मैं आपको विश ही कर रही हूं विष तो नहीं दे रही हूं। मेरे दिल ने कभी नहीं चाहा कि दिल्‍लीवालों का दिल दुखाया जाए बल्कि कोई और भी न दुखाये इसीलिए ऐसी कोशिश की जा रही है कि पहले ही दिल इतना दुखता रहे कि कोई और दुखाये तो दुखने का अहसास ही न हो। वैसे भी दिल्‍ली अब सिर्फ दिलवालों के लिए ही आरक्षित नहीं रहेगी। जब कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स आयोजित की जा रही हैं तो ऐसे नागरिक होने चाहिए जिनके सभी अंग-प्रत्‍यंग चुस्‍त-दुरुस्‍त हों। सिर्फ दिल ही मजबूत हो और बाकी शरीर बीमार हो तो कोई भी खेल खेलना तो क्‍या देखना भी संभव नहीं होता है। टांगों में जरा-सा भी दर्द हो रहा हो तो मन नहीं करता कुछ भी करने के लिए। तो इन सभी छोटी मोटी बाधाओं और मुसीबतों को आप हंस हंस कर पार कर जायेंगे, मुझे आप सब पर पूरा विश्‍वास है।

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री जी. के. अवधिया

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,

हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज श्री जी. के. अवधिया की रचना पढिये.

आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.

लेखक परिचय :-
नाम : जी.के. अवधिया
उम्र : 59 वर्ष, सेवानिवृत
शहर : रायपुर (छ्ग)

मैं एक संवेदनशील, सादे विचार वाला, सरल, सेवानिवृत व्यक्ति हूँ। मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व है। आप सभी लोगों का स्नेह प्राप्त करना तथा अपने अर्जित अनुभवों तथा ज्ञान को वितरित करके आप लोगों की सेवा करना ही मेरी उत्कृष्ट अभिलाषा है।

लिखता क्या था, अपने आपको ब्लोगर शो करता था

मेरे सामने ही मेरी लाश पड़ी थी और मैं उसे अकचका कर देख रहा था।

शायद रात में ही किसी समय मेरे प्राण पखेरू उड़ गये थे।

अब मैं अपने ही मृत शरीर को देखते हुए यमदूतों के आने की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ देर बाद मेरे लड़के की नींद खुली। मैंने उसे पुकारा किन्तु उसे सुनाई नहीं पड़ा। आखिर सुनाई पड़ता भी कैसे? मैं तो अब आत्मा था। मैं उसे देख-सुन सकता था पर वह मुझे नहीं।

वो तो हकबकाये हुये मेरे मृत शरीर को देख रहा था। कुछ देर के बाद उसे कुछ सूझा और उसने घर के सभी लोगों को जगाना शुरू कर दिया। सभी लोग सुबह-सुबह की मीठी नींद का आनन्द ले रहे थे अतः इस प्रकार नींद में खलल डालना उन्हें अच्छा नहीं लगा और वे कुनमुनाने लग गये।

उन्हें जबरदस्ती उठा कर लड़के ने कहा, "तुम लोगों को कुछ पता भी है? पापा तो रेंग गये।"

"ये क्या कह रहे हैं आप? रात को तो अच्छे भले थे।" बहू ने कहा।

"बिल्कुल ठीक कह रहा हूँ। जाकर देख लो।" यह कह कर लड़का रिश्तेदारों को फोन लगाने लग गया।

घर के लोगों ने मेरे शरीर को बिस्तर से उठा कर उत्तर दिशा की ओर सिर रख कर जमीन पर लिटा दिया। औरतें उस शरीर को चारों ओर घेर कर बैठ गईं।

बहू ने कहा, "अभी-अभी पिछले हफ्ते तो ही ये बिस्तरा खरीदा था बड़े शौक से अपने लिये। इनका बिस्तर कल धोने के लिये गया था इस कारण से ये बिस्तर इनके लिये लगा दिया था। अब तो दान में देना पड़ेगा इस बिस्तर को। बहुत अखरेगा।"

इस पर उसकी चाची-सास अर्थात् मेरे भाई की पत्नी ने कहा, "कोई जरूरत नहीं है नये बिस्तरे को दान-वान में देने की। जल्दी से इसे अन्दर रख दो और वो जो पुराना फटा वाला बिस्तर है उसे यहाँ लाकर कोने में रख दो।"

रिश्तेदार आने शुरू हो गये।

किसी ने कहा, "सुना है कि कुछ लिखते विखते भी थे।"

मेरे मित्रों में से एक ने, जो कि अपने आप को बहुत बड़ा लेखक समझते थे, कहा, "लिखता क्या था, अपने आपको ब्लोगर शो करता था। उसके लिखे को यहाँ कोई पूछता नहीं था इसलिये इंटरनेट में जबरन डाल दिया करता था।"

एक सज्जन बोले, "अब जैसा भी लिखते रहे हों, जो भी करते रहे हों, मरने के बाद तो कम से कम उनकी बुराई तो मत करो।"

मित्र ने कहा, "बुराई कौन साला कर रहा है? अब किसी के मर जाने पर सच्चाई तो नहीं बदल जाती! सच तो यह है कि उम्र भले ही साठ से अधिक की हो गई हो पर बड़प्पन नाम की चीज तो छू भी नहीं गई थी उसे। हमेशा अपनी ही चलाने की कोशिश करता था। एक नंबर का अकड़ू था। जो कोई भी उससे मिलने आ जाता उसे जबरन अपने पोस्ट पढ़वाता था। दूसरों का लिखा तो कभी पढ़ता ही नहीं था। खैर आप मना कर रहे हैं तो अब आगे और मैं कुछ नहीं कहूँगा।"

मेरे लड़के ने कहा, "पापा तो साठ साल से भी अधिक जीवन बिताकर गए हैं यह तो खुशी की बात है। नहीं तो आजकल तो लोग पैंतालीस-सैंतालीस में ही सटक लेते हैं। हमें किसी प्रकार का गम मना कर उनकी आत्मा को दुःखी नहीं करना है, बल्कि लम्बी उमर सफलतापूर्वक जीने के बाद उनके स्वर्ग जाने की खुशी मनाना है। आप लोग बिल्कुल गम ना करें।"

मेरे भाई के लड़के ने कहा, "भैया बिल्कुल सही कह रहे हैं। अब हमें चाचा जी का क्रिया-कर्म बड़े धूम-धाम से करना है। पुराने समय में दीर्घजीवी लोगों की शव-यात्रा बैंड बाजे के साथ होती थी। हम भी बैंड बाजे का प्रबंध करेंगे।"

"पर आजकल तो बैंड बाजे का चलन ही खत्म हो गया है, कहाँ से लाओगे बैंड बाजा?" एक रिश्तेदार ने प्रश्न किया।

"तो फिर ऐसा करते हैं कि डीजे ही ले आते हैं।"

"पर भजन-कीर्तन वाला डीजे कहाँ मिलता है, डीजे का प्रयोग तो लोग नाच नाच कर खुशी मनाने के लिये करते हैं।"

"तो बात तो खुशी की ही है, हम लोग भी शव-यात्रा में नाचते-नाचते ही चलेंगे।"

"पर भाई मेरे! लोग नाचेंगे कैसे? नाचने के लिये तो पहले मत्त होना जरूरी है जो कि बिना दारू पिये कोई हो ही नहीं सकता। अब यह तो शव-यात्रा है, कोई बारात थोड़े ही है जो पहले लोगों को दारू पिलाई जाये?"

"भला दारू क्यों नहीं पिलाई जा सकती? आखिर मरने वाला भी तो दारू पीता था। लोगों को दारू पिलाने से तो उनकी आत्मा को और भी शान्ति मिलेगी।"

"अरे! क्या ये दारू भी पीते थे?" किसी ने पूछा।

"ये दारू भी पीते थे से क्या मतलब? पीते थे और रोज पीते थे। पूरे बेवड़े थे। बेवड़े क्या वो तो पूरे ड्रम थे ड्रम। एक क्वार्टर से तो कुछ होता ही नहीं था उन्हें। और जब दारू उन्हें असर करती थी तो उनके ज्ञान-चक्षु खुल जाते थे। धर्म-कर्म की बातें करते थे। राम और कृष्ण की कथा बताया करते थे। रहीम और कबीर के दोहे कहा करते थे। हम लोग तो भयानक बोर हो जाते थे। अब ये बातें भला पीने के बाद करने की हैं? करना ही है तो किसी की ऐसी-तैसी करो, किसी को गाली दो, किसी को कैसे परेशान किया जा सकता है यह बताओ। सारा नशा किरकिरा कर दिया करते थे।"

"तो तुम क्यों सुनते रहते थे? उठ कर चले क्यों नहीं जाया करते थे?"

"अरे भई, जब उनके पैसे से दारू पीते थे तो उन्हें झेलना भी तो पड़ता था। और फिर जल्दी घर जाकर घरवाली की जली-कटी सुनने से तो इन्हें झेल लेना ही ज्यादा अच्छा था।"

ये बातें चल ही रहीं थी कि बहू ने मेरे लड़के को इशारे अपने पास बुलाया और एक ओर ले जाकर कहा, "ये क्या डीजे, नाचने-गाने और दारू की बात हो रही है? और तुम भी इन सब की हाँ में हाँ मिलाये जा रहे हो। इस सब में तो पन्द्रह-बीस हजार खर्च हो जायेंगे। कहाँ से आयेंगे इतने रुपये?"

"तो तुम क्यों चिन्ता में घुली जा रही हो? तुम्हें खर्च करने के लिये कौन कह रहा है?"

"पर जानूँ भी तो आखिर खर्च करेगा कौन?"

"मैं करूँगा, मैं।" लड़के ने छाती फुलाते हुए कहा।

"वाह! अपने लड़के की खटारी मोटर-सायकल की मरमम्त के लिये पाँच हजार तो हाथ से छूटते नहीं हैं और जो मर गया उसके लिये इतने रुपये निकाले जा रहे हैं। इसी को कहते हैं 'जीयत ब्रह्म को कोई ना पूछे और मुर्दा की मेहमानी'। खबरदार जो एक रुपया भी खर्च किया, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"अरे बेवकूफ, तुम कुछ समझती तो हो नहीं और करने लगती हो बक-बक। इसी को कहते हैं 'अकल नहीं और तनखा बढ़ाओ'। अगर मेरे पास रुपये होते तो मैं भला अपने बेटे को क्यों नहीं देता? पर बाप का अन्तिम संस्कार तो करना ही पड़ेना ना!"

"बेटे के लिये नहीं थे तो बाप के लिये अब कहाँ से आ गये रुपये?"

"बुढ़उ ने खुद दिये थे मुझे पचास हजार रुपये परसों, अपने बैंक खाते में जमा करने के लिये। कुछ कारण से उस दिन मैं बैंक नहीं जा पाया और दूसरे दिन बैंक की छुट्टी थी। उनके और मेरे अलावा और किसी को पता ही नहीं है कि उन्होंने मुझे रुपये दिये थे। अब उन रुपयों में से उन्हीं के लिये अगर पन्द्रह-बीस हजार खर्च कर भी दूँ तो भी तो तुम्हारे और तुम्हारी औलाद के लिये अच्छी-खासी रकम बचेगी। साथ ही साथ समाज में मेरा खूब नाम भी होगा। अब गनीमत इसी में है कि तुम चुपचाप बैठो और मुझे भी अपने बाप का क्रिया-कर्म करने दो।"

फिर लड़के ने वापस मण्डली में आकर कहा, "भाइयों, आप लोगों ने जैसा सुझाया है सब कुछ वैसा ही होगा। डीजे भी आयेगा और दारू भी। बस आप लोग दिलखोल कर पीने और नाचने के लिये तैयार हो जाइये।"

इतने में ही एक आदमी ने आकर कहा, "हमें खबर लगी है कि जी.के. अवधिया जी की मृत्यु हो गई है, कहाँ है उनकी लाश?"

हकबका कर मेरे लड़के ने पूछा, "आपको क्या लेना-देना है उनसे?"

"अरे हमें ही तो ले जाना है उनकी लाश को। मैं सरकारी अस्पताल से आया हूँ उनकी लाश ले जाने के लिये, पीछे पीछे मुर्दागाड़ी आ ही रही होगी। उन्होंने तो अपना शरीर दान कर रखा था।"

वे लोग मेरे शरीर को ले गये और मेरी शव-यात्रा के लिये आये हुये लोगों को बिना पिये और नाचे ही मायूसी के साथ वापस लौट जाना पड़ा।

उनके जाते ही यमदूत मेरे सामने आ खड़ा हुआ और बोला, "चलो, तुम्हें ले जाने के लिये आया हूँ। जो कुछ भी तुमने अपने जीवन में पाप किया है उस की सजा तो नर्क पहुँच कर तुम्हें मिलेगी ही पर अपने ब्लोग में ऊल-जलूल पोस्ट लिखने की, किसी के ब्लोग में, यहाँ तक कि जो लोग तुम्हारे ब्लोग में टिप्पणी किया करते थे उनके ब्लोग में भी, टिप्पणी नहीं करने की सजा तो तुम्हें अभी ही यहीं पर मिलेगी।"

इतना कह कर उसने अपना मोटा-सा कोड़ा हवा में लहराया ही था कि मेरी चीख निकल गई और चीख के साथ ही मेरी नींद भी खुल गई।

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : सुश्री रानी विशाल

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,

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आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं ३० अप्रेल २०१० तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.

लेखिका परिचय :-
नाम: रानीविशाल
मैंने अपनी शिक्षा स्वदेश में ही संपन्न की है। मेरा मुख्य कार्यक्षेत्र प्रबंधन है । मानव संसाधन प्रबंधन में मास्टर डिग्री (MBA in HR) लेने के पश्चात कुछ महीनो तक मुंबई की एक मल्टीनेशनल आई. टी. कंपनी में अपनी सेवा दी । बाद में मेनेजमेंट कालेज में प्रख्याता के रूप में कार्यरत रही । कविताएँ लिखने का शोक मुझे बचपन से ही है । मेरे माता पिता और भाइयों का बहुत प्रोत्साहन होने के कारण यह शोक और भी परवान चड़ा ।

जब भारत में थी तो समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में मेरे आलेख व कविताएँ प्रकाशित होते थे किन्तु विगत कुछ वर्षो से यहाँ अमेरिका (New York) में होने के कारण अब ऐसा नहीं कर पाती । स्कूल, कालेज में काव्य रचना हेतु कई पुरस्कार अर्जित किये है ...पिछले कुछ समय से मेरी कविताएँ बस दोस्तों की महफ़िल और यहाँ के मिलने वालो तक सीमित हो रही थी, लेकिन जब से ब्लॉग लिखना शुरू किया है । मैं बहुत खुश एवं उत्साहित भी हूँ, यही अभिलाषा रखती हूँ कि अपनी लगन और काव्य प्रेम के सहारे ऐसा काव्य सृजन करू जो पाठक की आत्मा को छू सके ॥

मेरे पति श्री विशाल जोशी एवं लगभग ३ वर्षीय मेरी सुपुत्री अनुष्का जोशी ही मेरे कार्यो हेतु मुझमे निरंतर शक्ति का संचार करते है ।

मेरे ब्लॉग का नाम काव्य तरंग है ।



पति पत्नी और "वो" ...........{ इगो }


जब से दुनिया में इंसां ने पति-पत्नी का रिश्ता बनाया
तभी से इस सम्बन्ध में बंधु "वो" ने भी अस्तित्व है पाया

कभी प्रेमी, कभी प्रेयसी बन दोनों में आग लगाई
कभी साली, कभी ननद, सास बन बीच में टांग अड़ाई

कभी पड़ोसी की ताँक झाँक, कभी शाहरुख, अमिताभ या रेखा
चढ़े त्योरियां मेडम की जो साहब ने नज़र भर महरी को देखा

मार्डन ज़माने में तो भैया अब "वो" ने भी नया रूप है पाया
बदलते समय के साथ है बदली सभी सम्बन्धों ने भी काया

अब पति पत्नी के बीच में सास की हिम्मत की आजाए
दाल में तो गवा ही दिया है फिर रोटी में भी घी ना पाए

दुनिया, देश, परिवार से अलग-थलग अब तो हम प्राइवेसी में जीते है
चार दीवारों में मिल काट रहे जो आधुनिक औपचारिकताओं के फीते है

दिलो में प्यार, तन पर कपड़े और परिवार घरों में सिकुड़े है
आज अपने अपनो के पास नहीं घर से दूर दिलों के टुकड़े है

चार रोटियां साथ करी के मेडम जी अब पकाती है
मूड न हो तो अक्सर दोनों की नुडल्स से ही कट जाती है

डिस्को, मूवी, शोपिंग तक तो दोनों प्रेममग्न ही रहते है
लेकिन अक्सर ये इक दूजे से लीव मी अल़ोन ही कहते है

नहीं अछूते रह सके यहाँ भी, इनके बीच भी "वो "का साया है
नए ज़माने में नए स्वरुप में "वो" बनकर इगो बीच में आया है

न आस पड़ोस न प्रेयसी प्रेमी न अब रिश्तेदारों से अपना नाता है
आधुनिक जीवन की महिमा है की अब इगो ही बीच में आता है

सादर
रानीविशाल

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : श्री रामकृष्ण गौतम

प्रिय मित्रगणों,
"वैशाखनंदन सम्मान पुरस्कार प्रतियोगिता" के अंतर्गत आज पढिये श्री रामकृष्ण गौतम की व्यंग कविता


नाम : राम कृष्ण गौतम

पता : जबलपुर [मध्य प्रदेश]

मो. नं. : +919981782045

परिचय : मध्य प्रदेश के एक छोटे से खूबसूरत शहर
जबलपुर में नईदुनिया दैनिक अखबार में संवाददाता
और उप सम्पादक के रूप में पिछले तीन वर्षों से कार्यरत|

शिक्षा : पत्रकारिता में स्नातक|

ब्लॉग का पता : http://dhentenden.blogspot.com

हमारे पड़ोसी खन्ना जी
महिला आरक्षण को लेकर
रो रहे हैं...
पहले तो सिर्फ
खाना पकाते थे
अब, बेचारे
कपड़े भी धो रहे हैं...

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : सुश्री निर्मला कपिला

प्रिय मित्रगणों,
"वैशाखनंदन सम्मान पुरस्कार प्रतियोगिता" के अंतर्गत आज पढिये सुश्री निर्मला कपिला की व्यंग कविता

लेखिका परिचय : निर्मला कपिला
पंजाब सरकार के सेहत कल्यान विभाग मे नौकरी करने के बाद चीफ फार्मासिस्ट के पद से सेवानिवृ्त् होने के बाद लेखन कार्य के लिये समर्पित हूँ1 इसके अतिरिक्त पढना लिखना समाज सेवा मे गरीब बच्चों कि शिक्षा के लिये 1सहायता कला साहित्य प्रचार्मंच की अध्य़क्ष हूँ 1

2004 स लेखन विधिवत रूप से शुरु किया 1 ाब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई दो छपने के लिये तयार हैं
1. सुबह से पहले---कविता संग्रह 2. वीरबहुटी---कहानी संग्रह 3. प्रेम सेतु---कहानी संग्रह
अनेक पत्र पत्रिकायों मे प्रकाशन, विविध भारती जालन्धर से कहानी का प्रसारण सम्मान, पँजाब सहित्य कला अकादमी जालन्धर की ओरे से सम्मान, ग्वालियर सहित्य अकादमी ग्वालियर की ओर से शब्दमाधुरी सम्मान .शब्द भारती सम्मान व विशिष्ठ सम्मान
देश की 51 कवियत्रियों की काव्य् कृ्ति शब्द माधुरी मे कविताओं का प्रकाशन कला प्रयास मँच नंगल दुआरा सम्मानित इसके अतिरिक्त कई कवि सम्मेलनो़ मे सम्मानित
परिकल्पना ब्लाग दुआरा 2009 के शीर्ष 9 महिला चिठाकारो मे नाम
संवाद दात काम दुयारा श्रेषठ कहानी लेखन पुरुस्कार
मेरे खुशहाल परिवार मे मेरे पती जो एन एफ एल प्राईवेट लि से डिप्टी मैनेजर रिटायर हुये हैं और तीन बेटियाँ उच्चशिक्षा प्राप्त कर अपने ससुराल मे सुखी जीवन जी रही हैं


महमान [व्यंग कविता]


होली पर जब महमान घर आते
पतनी खुश होती पती मुँह फुलाते
पतनी को उनका ये रुख कभी ना भाया
एक दिन उसने पती को समझाया
ऎजी. अगर आप ऐसे मुंह फुलाओगे
तो होली कैसे मन पायेगी मेरी सहेलियों मे
मेरी क्या इज्ज़त रह जायेगी
महमान तो भगवान रूप होते हैं
उन्हें देख मुंह नहीं फुलाते
उनकी सेवा करते हैं और हंस कर गले लगाते हैं
ये सुन पती बोले
;रानी, तेरा हुकम बजाऊँगा
जब आयेगी तेरी सहेली
उसे गले लगाऊँगा
पर जब आयेगी मेरी माँ
तुझ से भी यही करवाऊँगा !!



सूचना :- प्रतियोगिता के बारे में यहां से जानकारी ले सकते हैं. रचनायें contest@taau.in पर भेज सकते हैं. किसी भी तरह की जानकारी के लिये भी contest@taau.in पर संपर्क करें.

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : श्री ललित शर्मा

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,

हमने वैशाखनंदन सम्मान पुरस्कारों की घोषणा की थी. जिसके लिये हमें बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हुई हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. जैसा की हमने बताया था कि शामिल प्रविष्टियों का प्रकाशन ताऊजी डाट काम पर किया जायेगा. उसी घोषणा अनुसार आज से हम प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर रहे हैं.

आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. रचनाएं भेजने एवम पूछताछ के लिये contest@taau.in पर संपर्क करें.

आज हम श्री ललित शर्मा की रचना यहां प्रकाशित कर रहे हैं.

लेखक का परिचय :-
नाम-ललित शर्मा
शिक्षा- स्नातकोत्तर उपाधि
उम्र- 41 वर्ष
व्यवसाय- शिक्षाविद,लेखन, अध्यन,
आरंभ--पत्रकारिता से
शौक-शुटिंग (रायफ़ल एव पिस्टल), पेंटिंग(वाटर कलर, आईल, एक्रेलिक कलर, वैक्स इत्यादि से,)
भ्रमण, देशाटन लगभग सम्पुर्ण भारत का (लेह लद्दाख को छोड़ कर)
स्थान-अभनपुर जिला रायपुर (छ.ग.) पिन-493661

वेलेन्टाईन डे पर रांझे का प्रेम पत्र हीर के नाम!!!

प्रिय, हीर

आशा है कि तुम कु्शल होगी

प्रिय एक अर्से के बाद पत्र लिख रहा हूँ। आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है,क्या तुम्हे पता है? आज लोग वेलेन्टाईन डे मना रहे हैं। हमारे दे्श में यह एक नया अंग्रेजी जुगाड़ आया है, प्रेम का इजहार करने के लिए। कोई नैन मट्टके की जरुरत नही है, डायरेक्ट कान्ट्रेक्ट है। पहले तो पहल सिर्फ़ लड़कों की तरफ़ से होती थी, अब लड़के-लड़की दोनो ही प्रेम का इजहार कर सकते है। पहले सफ़ेद गुलाब पेश किया जाता है,फ़िर पीला गुलाब, जब दोनो कबु्ल हो गए तो झट से लाल गुलाब थमा दिया जाता है, या फ़िर कोई तो सीधे ही लाल पर आ जाता है, समय गंवाने की जरुरत नही। फ़टाफ़ट प्रेम कबुल हुआ फ़िर तैयार है झमा-झम करती बाईक, लांग ड्राईव के लिए। दो बार की लांग ड्राईव से बाईक का दम निकल जाता है और सवार का भी. फुल भी मुरझा जाता है. फिर से यही फ़ूल बनाने प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है. तुम्हारे-हमारे प्रेम की तरह अब कुछ भी टिकाऊ नहीं है. सब कुछ नकली है.

याद करो जब तुम और हम पहली बार जब हम स्कुल में आमने सामने हुए थे. एक प्रेम की चिंगारी हमारे दिल में फूटी थी. जिसकी लपट को हमारे हिंदी के गुरूजी ने अपने अंतर चक्षुओं से देख लिया था, कामायनी पढ़ाते हुए कहा था कि "घटायें उमड़-घुमड़ कर आ रही हैं. बिजली चमक रही है, आग दोनों तरफ बराबर लगी हुयी है. बस बरसात होनी बाकी है". उस समय तक हमें पता ही नहीं था कि यही प्रेम होता है. इसका खुलासा तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध से हुआ था. क्या जमाना था वह? बिना प्रेम प्रकटन के ही प्रकट हो जाता था. मित्रों को भी पता चल जाता था. कहीं तो कुछ है। जब हम दिन में कई बार जुल्फें संवारते थे.

प्रेम-पत्र लिखना भी एक कला होती थी. रात-रात भर जाग कर पत्र का मसौदा तैयार करते थे. फिर उसे कई बार पढ़ते थे. किसी बोर्ड परीक्षा से भी बढ़कर यह परीक्षा होती थी. सबसे जोखिम भरा काम होता था उन्हें तुम्हारे तक पहुँचाना. जिसमे जान जाने का खतरा भी था. शायद हमारे ज़माने में इसीलिए प्रेमियों को जांबाज कहा जाता था. बड़ी तिकड़म लगानी पड़ती थी एक पत्र को पहुँचाने में. याद है तुम्हे एक बार चुन्नू के हाथों भेजा गया पत्र तुम्हारी भाभी के हाथ लग गया था और बात तुम्हारे पिताजी तक पहुँच गई थी. फ़िर क्या सुपर रिन से तुम्हारी धुलाई हुई थी कि आज तक चमक नही गई होगी। वह समय जिन्दगी का सबसे मुस्किल समय था.

हमें भी फौजी पिता से पिटने का डर और तुम्हारे भी पिता को भी हमारे पिता की बन्दुक का डर, मामला बड़ा फँस गया था. बस तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे ब्याह करने की ठान ली.तुम्हारा ब्याह हो गया और तुम्हारे पिताजी ने चैन की साँस ली. वे एक दिन मुझे मिले थे और मेरा हाल-चाल और कमाई-धमाई पूछी थी. तो मैंने कहा था कि अब क्या करोगे पूछ कर? मर्द की कमाई, औरत की उमर और रायल इन्फ़ील्ड मोटर सायकिल की एवरेज पूछने वाला मुरख ही होता है.

पुराने तरीके सब समाप्त हो गये.आज कल मोबाईल ईंटरनेट का चलन हो गया है, कब प्रेम का इजहार होता है और कब प्रेम टूटता है पता ही नहीं चलता. बस एक एस.एम.एस और फिर वह हो जाता है बेस्ट फ्रेंड. रक्षा बन्धन की तरह फ्रेंड बैंड (मित्र सुत्र)भी आ गए है. जो एक दोस्त दुसरे दोस्त को पहनाता है, मतलब जिसके हाथ में मित्र-सूत्र दिखे समझ लो वह बुक हो गया है. मुंह पर रुमाल बांध कर कहीं भी हो आते हैं घर वालों को पता ही नहीं चलता. बस सब दोस्ती-दोस्ती की आड़ में हो चल जाता है. कितना जमाना बदल गया है ना?

कहने का तात्पर्य यह है कि अब इस तरह के हाई टेक प्रेम में वो मजा नहीं रहा. जो अपने समय में होता था. प्रेमलाप भी नजाकत और नफासत से होता था. तारे गिनने की कहानियां होती थी, प्रेम ग्रन्थ रचे जाते थे. नायिका और नायक की कहानी ही गायब हो गयी. तोता-मैना की कहानी की तो क्या बात करें? वो साँप से बल खाते कुंतल और कानों में झूमते झुमके बरेली के बाजार में खोने के बाद मिले ही नहीं हैं. विछोह में अब वो तडफ कहाँ, जो एक अग्नि दिल में सुलगाये रहती थी. जिसने तुलसी को कवि तुलसी दास बनाया.

तुम्हारे विवाहोपरांत विछोह ने हमें पागल कर दिया (आधे तो पहले ही थी,अन्यथा इस पचड़े में क्यों पड़ते?) कवि दुष्यंत कुमार ने कहा है " गमे जानां गमे दौरां गमे हस्ती गमे ईश्क, जब गम-गम ही दिल मे भरा होतो गजल होती है।" बस फ़िर क्या था, तुम्हारे विवाहोपरांत एक नए कवि का जन्म हुआ.हम कवि वियोगी हो गए तथा कागजों का मुंह काला करना शुरू कर दिया. संयोग के सपने और वियोग का यथार्थ दिन-रात कागजों में उतारा. बस यही एक काम रह गया था, जीवन में हमारे। हो गए स्थापित कवि जो हम कभी विस्थापित थे।

अब तो मैं देखता हुँ कि हमारे जैसे समर्पित प्रेमियों का टोटा ही पड़ गया है। हमारी चाहे असफ़ल प्रेम कहानी ही क्यों ना हो जीवन भर सीने से लगाए घुमते हैं। जैसे बंदरिया मरे हुए बच्चे को सीने से लगाये फिरती है. अब नये कवि भी पैदा होने बंद हो गए शायद फैक्ट्री ही बंद हो गई. वही पुराने खूसट कवि, जिनके मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं मंचो से प्रेम गीत गाते मिल जाते हैं . यह वेलेंटाईन डे तो नए कवियों के लिए नसबंदी जैसा शासकीय प्रोग्राम हो गया. ना प्रेम की आग जल रही है ना कवियों का जन्म हो रहा है. इससे कविता के अस्तित्व को बहुत बड़ा खतरा हो गया है. पहले की प्रेमिकाएं भी कविता एवं शेर-ओ-शायरी की समझ रखती थी. लेकिन आज कल तो सिर्फ पैसा-पैसा. एक दिल जले ने इस सत्यता को उजागर करते हुए एक गाना ही लिख दिया " तू पैसा-पैसा करती है तू पैसे पे क्यों मरती है, एक बात मुझे बतला दे तू उस रब से क्यों नहीं डरती है". आज भी तुम्हारी यादें इस दिल में संजोये हुए जीवन के सफ़र में चल रहे हैं. ये तुम्हारी याद है गोया लक्ष्मण सिल्वेनिया का बल्ब जो बुझता ही नहीं है. लगता है जीवन भर की गारंटी है.

और तुम्हारे पति देव कैसे हैं? उनके और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना, सुना है, बहुत मोटी हो गयी हो. शुगर भी तुम्हारी बढ़ी रहती है. जरा पैदल चले करो, हफ्ते में एक बार शुगर बी.पी. नपवा लिए करो, तुम्हारे नाती-पोतों को प्यार और तुम्हे वेलेंन्टाईन डे और मदनोत्सव पर ढेर सारा प्यार,

एक मुक्तक अर्ज किया है.

आरजू लिए फिरते रहे उनको पाने की

हम हवा का रुख देखते रहे ज़माने की

सारी तमन्नाएं धरी की धरी रह गयी

अब घडी आ ही गयी जनाजा उठाने की



तुम्हारा

तुम्हारा रांझा

फ़र्रुखाबादी विजेता (200) : श्री पी.सी.गोदियाल

नमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो आये और खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी के 200 वें अंक के विजेता का नाम घोषित करें.

प्यारे साथियों, मैं आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और रामप्यारी पहेली कमेटी का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होने मुझे इस काबिल समझा और यह सौभाग्य मुझे प्रदान किया. नीचे पहेली का मूल चित्र देखिये.



और आईये अब नववर्ष के रोज इस 200 वें फ़र्रुखाबादी से आपको मिलवाता हूं.



इस 200 वें अंक के विजेता हैं
श्री पी.सी.गोदियाल,...हार्दिक बधाई! यह प्रमाणपत्र आपको डाक से भेजा जारहा है. हार्दिक शुभकामनाएं.


पी.सी.गोदियाल said...
पपीते के फूल है ताऊ ! राम राम !

16 March 2010 18:20

इसके अलावा सुश्री रेखा प्रहलाद और श्री M VERMA ने भी बिल्कुल सही जवाब दिया. सभी को बहुत बधाई!


सभी प्रतिभागियों को उत्साह वर्धन के लिये धन्यवाद!

अब आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये!




Promoted By : लतश एवम शिल्कर, धन्यवादको पंकज

खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (200) : आयोजक उडनतश्तरी

बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल के २०० वें अंक में आप सबका आयोजक के बतौर हार्दिक स्वागत करता हूं. आज २०० वें अंक के विजेता को दिया जायेगा एक शानदार प्रमाणपत्र. तो देखिये नीचे का चित्र और फ़टाफ़ट दे डालिये जवाब.

नीचे का चित्र देखिये और बताईये कि ये किस चीज के फ़ूल हैं? इस 200 वें अंक के विजेता को एक प्रमाणपत्र दिया जायेगा.




तो अब फ़टाफ़ट जवाब दिजिये.

टिप्पणियों मे लिंक देना कतई मना है..इससे फ़र्रुखाबादी खेल खराब हो जाता है. लिंक देने वाले पर कम से कम २१ टिप्पणियों का दंड है..अधिकतम की कोई सीमा नही है. इसलिये लिंक मत दिजिये.

गुडी पडवा एवम नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं : रामप्यारी


नव वर्ष और नवरात्र की हार्दिक बधाई
और शुभकामनाए.


आज उपवास में मैने
सिर्फ़ मलाई वाला
भैंस का दूध पिया
और
आराम से
नींद निकाल रही हूं.


भैंस का दूध बडा स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है.
बहुत जल्दी ही चमडी मोटी हो जाती है.


सादर

मिस. रामप्यारी

CLICK ON THE CAT ..

मेरी दिनचर्या देखने के लिये पूंछ पर क्लिक करें.

फ़िर आगे जाकर कलम (brush) पर करियेगा.

आज शाम को 6:00 बजे खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी
के 200 वें अंक मे आपसे मुलाकात होगी.

तब तक के लिये रामराम.

फ़र्रुखाबादी विजेता (199) : श्री चंदन कुमार झा

नमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो आये और रिजल्ट बतायें.

प्यारे साथियों, मैं आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और रामप्यारी पहेली कमेटी का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होने मुझे इस काबिल समझा और यह सौभाग्य मुझे प्रदान किया. हमने नीचे वाला चित्र दिखाया था. जी हां यह मूंगफ़ली के पौधे पर ही बच्चे लोग लोट पोट हो रहे हैं.




आज के विजेता हैं चंदन कुमार झा
...हार्दिक बधाई!

मूँगफली का पौधा ।

12 March 2010 18:42

इसके अलावा सुश्री रेखा प्रहलाद
डा.रुपचंद्रजी शाश्त्री "मयंक,
श्री.  डी. के. शर्मा “वत्स”
सुश्री संगीता पुरी, ने भी बिल्कुल सही जवाब दिया. सभी को बहुत बधाई!


सभी प्रतिभागियों को उत्साह वर्धन के लिये धन्यवाद!

अब आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये! अब परसों मंगलवार को एक नई पहेली, जो की खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी की २०० वीं पहेली होगी, में आपसे मुलाकात होगी. और ध्यान रखियेगा कि २०० वीं पहेली के विजेता को एक शानदार सर्टीफ़िकेट दिया जायेगा. तब तक के लिये नमस्ते!




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खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (199) : आयोजक उडनतश्तरी

बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल में आप सबका आयोजक के बतौर हार्दिक स्वागत करता हूं.

नीचे का चित्र देखिये और बताईये कि ये बच्चे किस चीज के पौधों पर लोट पोट हो रहे है? तो देर किस बात की? फ़टाफ़ट जवाब दिजिये!



तो अब फ़टाफ़ट जवाब दिजिये.

टिप्पणियों मे लिंक देना कतई मना है..इससे फ़र्रुखाबादी खेल खराब हो जाता है. लिंक देने वाले पर कम से कम २१ टिप्पणियों का दंड है..अधिकतम की कोई सीमा नही है. इसलिये लिंक मत दिजिये.

फ़र्रुखाबादी विजेता (198) : सुश्री सीमा गुप्ता

नमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो आये और रिजल्ट बतायें.

प्यारे साथियों, मैं आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और रामप्यारी पहेली कमेटी का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होने मुझे इस काबिल समझा और यह सौभाग्य मुझे प्रदान किया. इससे पहले की मैं आपको रिजल्ट बताऊं आप सवाल का मूल चित्र नीचे देख लिजिये जिससे की यह सवाल का चित्र लिया गया था.






आज की विजेता हैं सुश्री सीमा गुप्ता

...हार्दिक बधाई!


seema gupta said...
बहुत खोजने के बाद मुझे यह अखरोट wallnut का पेड
लगता है. लोक किया जाये.

regards

10 March 2010 11:07

सभी प्रतिभागियों को उत्साह वर्धन के लिये धन्यवाद!

अब आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये! अब एक नई पहेली मे आपसे मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्ते!




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खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (198) : आयोजक उडनतश्तरी

बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल में आप सबका आयोजक के बतौर हार्दिक स्वागत करता हूं.

नीचे का चित्र देखिये और बताईये कि यह पेड किस चीज का है? तो देर किस बात की? फ़टाफ़ट जवाब दिजिये!



तो अब फ़टाफ़ट जवाब दिजिये.

टिप्पणियों मे लिंक देना कतई मना है..इससे फ़र्रुखाबादी खेल खराब हो जाता है. लिंक देने वाले पर कम से कम २१ टिप्पणियों का दंड है..अधिकतम की कोई सीमा नही है. इसलिये लिंक मत दिजिये.

फ़र्रुखाबादी विजेता (197) : सुश्री रेखा प्रहलाद

नमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो आये और रिजल्ट बतायें.

प्यारे साथियों, मैं आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और रामप्यारी पहेली कमेटी का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होने मुझे इस काबिल समझा और यह सौभाग्य मुझे प्रदान किया. इससे पहले की मैं आपको रिजल्ट बताऊं आप सवाल का मूल चित्र नीचे देख लिजिये जिससे की यह सवाल का चित्र लिया गया था.





आज की विजेता हैं सुश्री रेखा प्रहलाद
...हार्दिक बधाई!


Rekhaa Prahalad said...
Neem ke phool:)

5 March 2010 18:45

सभी प्रतिभागियों को उत्साह वर्धन के लिये धन्यवाद!

अब आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये! अब एक नई पहेली मे आपसे मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्ते!




Promoted By : लतश एवम शिल्कर, धन्यवादको पंकज

खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (197) : आयोजक उडनतश्तरी

बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल में आप सबका आयोजक के बतौर हार्दिक स्वागत करता हूं.

नीचे का चित्र देखिये और बताईये कि यह किस के फ़ूल है? तो देर किस बात की? फ़टाफ़ट जवाब दिजिये!




तो अब फ़टाफ़ट जवाब दिजिये.

टिप्पणियों मे लिंक देना कतई मना है..इससे फ़र्रुखाबादी खेल खराब हो जाता है. लिंक देने वाले पर कम से कम २१ टिप्पणियों का दंड है..अधिकतम की कोई सीमा नही है. इसलिये लिंक मत दिजिये.

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