प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज सुश्री शिखा वार्ष्णेय की रचना पढिये.
आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.
नाम - शिखा वार्ष्णेय
शिक्षा - टी वी जर्नलिज्म में परास्नातक मोस्को स्टेट युनिवर्सिटी रशिया से.
स्थान - लन्दन
शौक - देश ,विदेश भ्रमण
ब्लाग : स्पंदन
नानी और मुन्नी.
एक दिन पड़ोस की नानी और
अपनी मुन्नी में ठन गई।
अपनी अपनी बात पर
दोनों ही अड्ड गईं।
नानी बोली
क्या जमाना आ गया है...
घड़ी घड़ी डिस्को जाते हैं,
बेकार हाथ पैर हिलाते हैं
ये नहीं मंदिर चले जाएँ,
एक बार मथ्था ही टेक आयें॥
मुन्नी चिहुंकी
तो आपके मंदिर वाले
डिस्को नहीं जाते थे?
ये बात और है कि
डिस्को तब उपवन कहलाते थे।
हम तो फिर भी
एक ही के साथ जाते हैं
वो तो एक साथ
हजारो के साथ रास रचाते थे।
सुन नानी की भवें तन गईं
अपना डंडा ले मुन्नी पर चढ़ गईं
देखो कैसी जबान चलती है
न शर्म न बड़ों का लिहाज़
जो मन आया पटपटाती है।
मुन्नी ने फिर चुटकी ली
नानी जरा अपने
शास्त्रों का ध्यान करो
उसमें नारी के जो
चौसठ गुणों का वर्णन है
उसमें वाक्पटुता भी एक गुण है।
अब नानी को कुछ न सूझा
तो उसके कपडों पर अड्ड गईं
ये आजकल का सिनेमा और नाच
इसी ने किया है
बच्चों का दिमाग ख़राब
मुन्नी खिलखिलाई
वाह नानी !
ये कैसा दोगला व्यवहार है
इन्द्र की सभा में नाचें तो अप्सरा हैं
और पेट पालती बार बालाएं बदनाम हैं।
फर्क बस इतना है -
तब राजतंत्र था और
शौक राजाओं तक सिमित था
आज लोकतंत्र है
हर बात का
जनता को भी हक है।
बदला जमाना नहीं
बदला आपके चश्मे का नम्बर है
मुन्नी नानी का मुहँ चूम
फुर्र से उड़ गई और
नानी बेचारी सोच में पड़ गई।
अरे अम्मा! चलो पार्क घुमा लाऊं ?
पप्पू की आवाज आई
पल्लू से चश्मा पोंछ
नानी बुदबुदाई
अभी वो कहीं नहीं जाएँगी
कल ही बेटे से कह
पहले ये मूआं चश्मा बदलवाएगी.
-शिखा वार्ष्णेय.
20 comments:
31 March 2010 at 05:28
व्यंग्य ने जिस अदा से इस कविता को धारधार बनाया है.निसंदेह शिखाजी सम्मान और प्रशंसा के योग्य हैं.उन्हें ढेरों मुबारक बाद और अपनी मिटटी की सोंधी महक भी मुबारक उन्हें!! खूब-खूब!!
31 March 2010 at 06:08
nice
31 March 2010 at 07:31
वाह जी, बहुत उम्दा प्रस्तुति रही शिखा जी की!!
31 March 2010 at 07:31
बहुत ही शानदार रचना
31 March 2010 at 07:36
सुश्री शिखा वार्ष्णेय जी को बधाई। बढ़िया रचना है।
31 March 2010 at 07:36
मुन्नी की हाजिरजवाबी तो मजेदार है....बढ़िया हास्य कविता...बधाई शिखा जी
31 March 2010 at 07:37
हा हा हा
इन हालात में तो नानी को
चश्मा बदलवाना ही पड़ेगा
अच्छी कविताई
आपको बधाई
31 March 2010 at 07:45
शिखा जी को बहुत बहुत बहुत बधाई..!!
31 March 2010 at 08:53
शिखा वार्ष्णेय जी को बहुत बहुत बधाई
बहुत उम्दा हास्य कविता
31 March 2010 at 09:49
वक्त के साथ हर चीज़ बदलती है.....बढ़िया हास्य रचना....
31 March 2010 at 11:43
वाह जी, बहुत उम्दा प्रस्तुति रही शिखा जी की!!
31 March 2010 at 12:59
shikha jee ko bahut bahut badhaai
31 March 2010 at 13:26
शिखा जी,
क्या बात कही है? ज़माने कि हवा को उठा कर नानी के ज़माने में बहा दिया और नानी को भी ये जता दिया कि ज़माने की सोच नहीं उनकी आँखें ख़राब हो चुकी हैं.
नानी और मुन्नी के सामंजस्य में छिपा व्यंग्य काबिलेतारीफ है.
31 March 2010 at 15:15
वाह जी वाह शिखा जी
हास्य व्यंग्य के शिखर को स्पर्श करती अनूठी रचना
आनंद आ गया।
31 March 2010 at 21:14
शिखा जी ने ये जिन नानी का ज़िक्र किया है, एक बार बड़े मग्न होकर एफएम गोल्ड से आ रहा भजन सुन भी रही थीं और साथ-साथ गा भी रही थीं...ये किशन-किशन है, ये किशन-किशन...
तभी ये मुन्नी आई और एफएफ बंद कर दिया...नानी ने फौरन उलाहना दिया...देखा आज कल के बच्चों को भजन तो बर्दाश्त कर ही नहीं सकते बस हर वक्त हल्ला-गुल्ला....तभी मुन्नी ने कहा...नानी जानती भी हो एफएम पर क्या बज रहा था...ये इश्क-इश्क है, ये इश्क-इश्क...
ऊंचा सुनने वाली नानी बेचारी ने इश्क को ही अपने हिसाब से किशन बना लिया था...
जय हिंद...
2 April 2010 at 19:32
हा हा बहुत ही रोचक प्रस्तुति...मुन्नी और नानी के मध्यम से कई विसंगतियां उजागर कर डालीं
बहुत बहुत बधाई
4 April 2010 at 09:43
vaah kya baat hai...shikha badhai...paqhle padh chuke hain...fir bhi maza aaya..
5 April 2010 at 00:46
Behatreen Prastuti Shikha ji... Badhai Sweekaren!!
"RAM"
2 September 2010 at 17:47
शिखा जी आप ने नानी के माद्ध्यम से अच्छा व्यंग किया .बधाई.
2 September 2010 at 17:47
शिखा जी आप ने नानी के माद्ध्यम से अच्छा व्यंग किया .बधाई.
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