प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज श्री विनोद कुमार पांडेय की रचना पढिये.
आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.
लेखक परिचय :-
नाम-विनोद कुमार पांडेयजन्मस्थान: वाराणसीशिक्षा: मास्टर ऑफ कंप्यूटर अप्लिकेशन
उम्र: २६ वर्ष
व्यवसाय: नौकरी
शौक: पढ़ना एवम् लिखना
ब्लाग : मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपनेहँसने-हँसाने का दौर जारी रखते हुए आज एक और रचना आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ कविता का आधार महज कल्पना है और मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ इस उम्मीद के साथ की इस कहानी के पात्र यदि कहीं होंगे भी तो अन्यथा नही लेंगे...धन्यवाद
राखी के स्वयंवर में सलामत दूबे
(विनोद कुमार पांडेय)
राखी का स्वयंवर,
अयोध्या से भी गये थे एक वर,
क्योंकि,अब भी वहाँ के लोगों को ये यकीं है,
कि स्वयंवर-व्यमवर के मामले में,
अयोध्यावासी थोड़े लकी हैं,
बस फिर क्या एक थे,
राखी के प्यार में डूबे,
नाम था जिनका सलामत दूबे,
उछलते-कूदते किस्मत के सहारे,
स्वयंवर वाले स्टूडियो में इंट्री मारे,
मत पूछिए जनाब कितने खुश थे,
जैसे इराक़ जीतने के बाद वाले जार्ज बुश थे,
गये,सोफे पर बैठे ही थे,कि राखी जी आईं,
इन्हे देखी और मुस्कुराई,
ये भी मुस्कुराहट का रिएक्सन जताने लगे,
और पागलों की तरह ज़ोर ज़ोर,
ठहाके लगाने लगे,
थोड़ा करीब डोले,और चुटकी लेते हुए बोले,
राखी जी,आपको हमने अलग अलग वेश में देखा,
पर पहली बार आज फुल ड्रेस में देखा,
यह तुम खुद सिलाई हो,
या किसी से माँग कर लाई हो,
राखी झल्लाई पर खुद को संभाली,
एक भी फूटकर गाली मुँह से नही निकाली,
सीरियस रोल में हो ली,
और बहुत कंट्रोल कर के बोली,दूबे जी,
आप तो बड़े ही मजाकिया टाइप के है,
आइए,बैठिए,कुछ बात आगे बढ़ाते है,
और फिर आपको औकात में लाते हैं,
बताइए कैसे हालात है,
और मेरे बारे में आपके क्या जज़्बात है,
इतना सुनते ही दूबे जी,
भावनाओं में डूब गये,
खूब बहकनें लगे,
बातें बना बना कर कहने लगे,
कि राखी बचपन से तुम्हारे प्यार में पड़ा हूँ,
तुम्हारे प्यार के सहारे यहाँ जिंदा खड़ा हूँ,
आगे भी सहारा दो नही बैठ जाऊँगा,
यही सोफे पर पड़े पड़े ही ऐठ जाऊँगा,
तारीफ़ सुनकर राखी भी बड़ी खुश जैसे लग रही थी,
वो भी कुछ लारा बुश जैसे लग रही थी,
खूब मज़े से दूबे जी बात सुनी,
फिर मुस्कुरा कर बोली,
दूबे जी सचमुच में आप भावनाओं से भरे पड़े हैं,
पर एक समस्या है,वो ये कि
आप के बाल बहुत बड़े हैं,
मुझे बालो से कंगाल चाहिए,
वर चाहिए पर बिना बाल चाहिए,
वैसे भी शादी अभी कर नही सकती,
मजबूरी है,
प्रोग्राम की टी. आर. पी. बढ़ाना भी तो,
बहुत ज़रूरी है,
इसलिए अभी तो आप जाइए,
घर जाकर भजन कीर्तन गाइए,
वादा करती हूँ,अगली बार आप जब यहाँ आएँगे,
मुझे ऐसे ही स्वयंवर रचाते पाएँगे,
और तब तक आपके बचे-खुचे बाकी,बाल भी गिर जाएँगे
10 comments:
1 April 2010 at 05:12
"वैशाख्नंदन सम्मान प्रतियोगिता मे.. "
शीर्षक ठीक कीजिए।
राम राम।
1 April 2010 at 06:02
Vinod Panday ji ko hriday se badhai..
1 April 2010 at 06:22
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
1 April 2010 at 06:29
nice
1 April 2010 at 08:53
हा हा हा
आज कल बिना बाल वाले ही बवाल कर रहे हैं
टी आर पी बढाने का नित कमाल कर रहे है
ज्योतिषि ने बताया कम बाल वालों के दिन अच्छे हैं
इस लिए कुंद्रा और महाजन भी धमाल कर रहे हैं
बहुत बढिया व्यंग्य कविता
बधाई
1 April 2010 at 09:14
मूर्ख दिवस पर राखी सावंत
बनेंगे या बनायेंगे
लूट या लुट जायेंगे।
2 April 2010 at 06:29
वाह जी...विनोद बाबू को बधाई!!
14 April 2010 at 17:07
मजेदार
विनोद जी को हार्दिक बधाई
19 April 2010 at 18:11
ye to laughfter challenge ke Kuraise shab ki line lag rahi hain...sampadak kripya dhyaan den.
6 June 2012 at 07:30
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ!
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