प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज सुश्री रेखा श्रीवास्तव की रचना पढिये.
आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.
आत्म परिचय: मैं बुंदेलखंड की एक बहुत छोटे से कसबे 'उरई ' की बेटी हूँ. एक विद्वान और सच्चे इंसान की पुत्री भी हूँ. बचपन से लिखना शुरू किया. शादी से पहले तक नियमित लेखन और प्रकाशन चलता रहा. किन्तु उसके बाद संयुक्त परिवार की परिधि में कलम अवरुद्ध होने लगी किन्तु न भाव ख़त्म हुए और न ही संवेदनाएं मरी. जो जहाँ मिला लिखा और रख दिया . डायरियां तो भारी किन्तु प्रकाशन की गति मन्दिम हो गयी.
अब इस पड़ाव पर - ब्लॉग एक अच्छा स्रोत मिला है तो बस उसी पर लिखना होता है. राजनीति, समाज, मनोविज्ञान, शिक्षा और आध्यात्म हर विधा में डूबकर देखा है और उससे बहुत कुछ पाया भी है.
वर्तमान में आई आई टी कानपुर में अपने लेखन के बल पर ही कंप्यूटर को हिंदी सिखा रही हूँ . कंप्यूटर से अनुवाद प्रक्रिया को विकसित करने के लिए कार्य कर रही हूँ.
रेखा श्रीवास्तव
ब्लाग : यथार्थ, HINDIGEN, मेरी सोच और जनसरोकार
ये नेतन कि जातउ न बड़ी खुशामद चाहत है, नेतन कि तारीफ के पुल बांधत रहौ धीरे धीरे गाँव से निकर के शहर और शहर से निकर के दिल्ली पहुंचई जैहौ. जा में तनकौ शक या शुबहा नहीं.
एसइं हमाए गाँव के प्रधान जी के लड़का आवारा और निठल्ले हते, बिचरऊ बड़े परेशान रहें. बाप की इज्जत मिट्टी में मिलाय रहे है. प्रधान जी के चम्चन ने प्रधान जी को जा सलाह दइ - प्रधानजी काय को फिकर करत हो, इनका न तरवा चाटे कि आदत डार देओ.
"जासे का होई."
"समझत नईं हो, आज नेताजी के चम्चन के तरवा चाट है तो उ आपन संगे ले जैहै - काय के लाने अरे अपनी छवि बनान के लाने."
"हमें कछु समझ नहीं आत , तुमाई जा गणित."
" अरे शुरू तो करो, हमाए बाप जई कहत रहे कि तरवा चाटे सिंहांसन मिले. कछु दिन तरवा चाट लेओ , कल जरूरै हाथ पकड़ बगल में बिठैहै और बाके बाद साथ साथ ले जैहै. कछु दिनन में पक्के चमचा बन गए सोई पार्टी के काम देंन लगहें - बस सफेद कुरता पजामा बनवाय लेव और बन गए पक्के नेता."
"फिर का होय"
"लेओ अभऊ न समझे - अरे प्रधान जी दस सालन में तुमाव लड़का जीपन में घूमन लगहै और पचास चमचा बउके हो जैहैं . फिर चुनाव लड़हैं अपने ही घर से सो वाको को हरा सकत है."
"बात कछु कछु समझ में आत है." प्रधान जी कुछ समझने लगे थे.
"आत नहीं, अब आयई जाय - जामे भविष्य बन जैहै . एक की जगह चार ट्रेक्टर हौहे और चारऊ तरफ तुम्हरेई खेत . बेटा नेता भओ तो काहे को डर. लएँ बन्दूक हमऊ ऊके साथ घूमत रैहैं. "
"औ सुनो जो जा महिला विधेयक आ गयो तो भौजी बनही प्रधान और बहुरिया बनहै पार्टी की मंत्री. पाँचों अँगुरी घी में और सिर कढ़ाई में. "
"ऐ ननकउ तुम्हाएं तो बड़ी अक्ल है, हम तो तुम्हें बुद्धूई समझत ते. "
" प्रधान जी, सब तुमाई संगत कौ असर है, नईं तो ढोर चराउत रहे. अरे पाथर पीट पीट के सिल बन जात सो हमउ बन गए.'
"ये बताव की ये ससुरऊ कर पैहैं की हमें सब्ज बाग़इ दिखात हौ. "
"पक्की बात कहत है -'इ नेता की जात चाहे जूता खाय या लात ' आपन घर का कौनौ कोना खाली न रहन देत. अरे बाग़ - बगीचा और वा फार्म हॉउस तो बन है शहर में , दुई चार माकन होंहिं और एक दो तो दिल्ली मेंउ हौहें. "
"अरे टिकट को दैहे इ निठल्लन को ."
"बस तरवा चाटवो सीख लें , दो चार साल में टिकट न मिल जाय तो मूंछ मुड़ा दैहैं. "
"तौ देखो ये तरवा चाटवो तुमई सिखाव हमाई न सुन हैं."
"अरे चच्चा काय के लाने हैं हम, सब सिखा दैहैं औ भौजाईउ को टरेनिंग दे लैहैं. "
"चल ननकउ अब हमाई फिकर ख़त्म भाई - ये हमर खोटे सिक्का खरे बना देव."
"अच्छा प्रधान जी, अब चलत हैं - लड़कन से बात कर लैहैं. "
"अरे सुन ननकउ , ये और बताय जाव कि जब सबरे मतलब तुमाई भउजी प्रधान भईं और बहुरिया मंत्री , लड़का बन गए चमचा तो हम का करहैं . "
"लेओ - अब का बचौ , हम दोउ जने इतें चौपाल पे हुक्का गुड़गुड़ेंहैं औ हम तमाखू बने हैं औ तुम खइयो . सब को दै दई जिम्मेवारी और हम दोउ भए आजाद."
हम दोउअन को तो देश तभी आजाद हौहै, जब हमारी सरकार बन जैहै. कबहूँ हम गाँव में , कबहूँ शहर में और कबहूँ दिल्ली में घूमहैं .
--
रेखा श्रीवास्तव
13 comments:
10 April 2010 at 06:27
रेखा श्रीवास्तव जी को बहुत-बहुत बधाई!
10 April 2010 at 06:59
क्या बात है...एकदम सटीक लेखन!!
रेखा जी को बधाई.
10 April 2010 at 07:52
nice
10 April 2010 at 11:51
राजनीति पर अच्छा व्यंग ...बधाई
10 April 2010 at 12:14
बहुत ही बढ़िया व्यंग....हमेशा की तरह बहुत ही सटीक लेखन...
10 April 2010 at 13:48
हम अपने सबई पाठक बधुँअन को बताएं देत हैं कि जा हमने अपने जीवन में पहली दफे कौनउ व्यंग लिखौ है. वैसे हमें नहीं लगत हतौ कि हम कभौं व्यंगउ लिख सकत है.
10 April 2010 at 14:30
हम अपने सबई पाठक बधुँअन को बताएं देत हैं कि जा हमने अपने जीवन में पहली दफे कौनउ व्यंग लिखौ है. वैसे हमें नहीं लगत हतौ कि हम कभौं व्यंगउ लिख सकत है.
10 April 2010 at 16:25
अच्छा व्यंग रेखा जी,बधाई!
10 April 2010 at 17:43
बधाई हो रेखा दी.
10 April 2010 at 18:12
rekha ji pehli baar aapko padha...ha.n thodi mashaakkat karni padi apki goooodh bhasha ko samajhne k liye..lekin bahut acchha likha aapne. badhayi.
10 April 2010 at 19:11
बढ़िया व्यंग....बधाई.
10 April 2010 at 23:34
रेखा जी राजनीति का तो मतलब ही यही हो गया है खुद मज़े में रहना ...बढ़िया व्यंग...बधाई
15 June 2010 at 12:03
sateeek vichaar avam prabhaavi lekhan welldone rekha tujhme apne ko dekhte hain. veena parmar
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