प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है
आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.
आज पढिये सुश्री सोनल रस्तोगी की यह रचना.
लेखिका परिचय
नाम-सोनल रस्तोगी
जन्मस्थान -फर्रुखाबाद
शिक्षा - पी.जी ,पत्रकारिता डिप्लोमा
शौक -नाटक,कविता कहानिया पढ़ना और लिखना
सारांश- महादेवी वर्मा की जन्मस्थली में साहित्य प्रेम के कीड़े ने काट खाया, बचपन से पढ़ लिख रहे है,बालसाहित्यकार के तौर पर कुछ रचनाये प्रकाशित.जीवन में computar के प्रवेश ने दिशा बदल दी ...पहले पढ़ा फिर पढ़ाया पिछले ५ सालों से गुडगाँव में इसी की कमाई खा रहे है.
बड़ी दर्द भरी कहानी है हमारी ,ऐसा युद्ध लड़ा है जैसा ..पूछो मत .ताई जी के बेटे की शादी का कार्ड देखकर ..कितने पकवानों के थाल आँखों के सामने घूम गए थे ..आँखे इमरती..तो दिल में रसगुल्ले फूट रहे थे ..कचोरी और आलू की सब्जी की खुशबू तो मनो निगोड़ी नाक को कहा से आने लगी थी ...पिछली बार माठ नहीं चख पाई थी,इस बार तो सारी कसर निकालूंगी , मरे शहर की शादियों में देसी चीज़ों को तरस ही जाओ ..हमें नहीं भाता कांटिनेंटल,
पतिदेव को भी समझा दिया जाने का इरादा बता दिया.. हवाई टिकेट करवाए तो बजट का बाजा बजना ही था ..
नई साड़ी का प्लान छोड़ कर अपनी अलमारी में से कुछ पहने का सोचा ...भाई साब यही तो हो गया लोचा..पता नहीं चोली कुछ छोटी सी लगी सोचा नाप के देखते हैं ..भाई वो तो बिगड़ गई कोहनी पर जा कर अड़ गई ..हमको स्थिति का आभास तो था पर इतने बुरे हालात होंगे इसका अंदाज़ ना था....एक एक करके सब नाप डाले ..पर ....
पतिदेव रात को आये तो बिस्तर पर बिखरे कपडे देख कर घबराए "कोई चोरी हो गई क्या ".
हमने आँखों में आंसू भर कर पूछा आपने बताया क्यों नहीं , वो मुस्कुरा कर बोले
" प्रिये माना तुम कामिनी से गजगामिनी के पथ पर अग्रसर हो
पर मेरे प्रेम को कोई कमी नहीं पाओगी
बहुत बड़ा है दिल मेरा
हर साइज़ में फिट हो जाओगी "
हमने भी मन में ठान लिया बात में छिपे व्यंग को पहचान लिया ,स्लिम्मिंग सेंटर के चक्कर लगा रहे है लौकी पी रहे है लौकी खा रहे है,
अब हम मोह माया से ऊपर उठ गए है ,तुच्छ मिठाई ,भठूरे,पूरी ,टिक्की पाव भाजी सब हमको सिर्फ कैलोरी मात्र नज़र आते है,पर देखते है ये संन्यास हम कबतलक निभाते है,जितनी मंद गति से हमारा वजन घट रहा है उससे १०० गुना तीव्र गति से पतिदेव के बटुए से नोट.
पर ये सब हमारा उत्साह नहीं घटा पायेंगे ..शादी में तो हम वही साडी पहन कर जायेंगे ,जो नई फोटू खिचवायेंगे ब्लॉग पर लगायेंगे ...आप सब को दिखाएँगे
19 comments:
18 April 2010 at 05:45
nice
18 April 2010 at 06:28
हा हा बहुत ही बढ़िया,
वैसे हम आपके जन्मस्थान को फ़र्रु. ही कहना पसंद करते हैं, जो कि हमने वहीं के दुकानों के बोर्ड पर लिखे हुए देखा था, हम गये थे गोटेवालों के यहाँ ...
पकवानों के नाम सुनकर हमें तो पता नहीं क्या क्या होने लगता है ..
" प्रिये माना तुम कामिनी से गजगामिनी के पथ पर अग्रसर हो
पर मेरे प्रेम को कोई कमी नहीं पाओगी
बहुत बड़ा है दिल मेरा
हर साइज़ में फिट हो जाओगी "
हम भी चैप सकते हैं अपनी घरवाली को :D
हमें कब कैलोरी वाला चश्मा लगेगा हम उसका इंतजार कर रहे हैं।
18 April 2010 at 07:13
" प्रिये माना तुम कामिनी से गजगामिनी के पथ पर अग्रसर हो
पर मेरे प्रेम को कोई कमी नहीं पाओगी
बहुत बड़ा है दिल मेरा
हर साइज़ में फिट हो जाओगी "
हा हा!!
सोनल जी का वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में स्वागत है, बधाई.
18 April 2010 at 07:39
बहुत बढ़िया व्यंग...कुछ भी हो उत्साह कम नही होना चाहिए...पातिदेव तो होते ही हैं खर्च करने के लिए...वैशाखनंदन प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
18 April 2010 at 07:55
शादी में तो हम वही साडी पहन कर जायेंगे ,जो नई फोटू खिचवायेंगे ब्लॉग पर लगायेंगे ...आप सब को दिखाएँगे
बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जी उस फोटू को देखने के लिये. पता नहीं पहचान भी पायेंगे या नहीं.
सुन्दर
18 April 2010 at 11:02
" प्रिये माना तुम कामिनी से गजगामिनी के पथ पर अग्रसर हो
पर मेरे प्रेम को कोई कमी नहीं पाओगी
बहुत बड़ा है दिल मेरा
हर साइज़ में फिट हो जाओगी "
लिखने का अंदाज़ बहुत बढ़िया....स्वयं पर व्यंग लिखना बहुत मुश्किल होता है....जो आपने कर दिखाया....भले ही कल्पना ही हो ये..पर अच्छा व्यंग है :):)
18 April 2010 at 16:22
सोनल रस्तोगी जी का व्यंग्य तो बहुत ही बढ़िया है!
बहुत-बहुत बधाई!
18 April 2010 at 18:10
कचोरी और आलू की सब्जी की खुशबू पोस्ट से निकल यहां तक आ रही है...सोनल जी ऐसे तरसाना अच्छी बात नहीं,
गुड़गांव दूर नहीं है, किसी भी दिन आ धमकूंगा कचोरी खाने...
जय हिंद...
19 April 2010 at 05:54
आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_19.html
19 April 2010 at 13:10
hahahahha...vry well written dear...!!
19 April 2010 at 13:13
hahahha...vry well written dear...!!
19 April 2010 at 13:38
wah behana.....tumhara kya kahana....great work keep it up!
19 April 2010 at 15:11
@विवेक जी आप तो हमारे परिवार में ही आये थे,अगर पता होता तो कलोरी वाला चश्मा वहीँ दे देते .
@समीर जी बहुत बहुत धन्यवाद ...
@विनोद जी पतिदेव से खर्च करवाना बहुत कठिन काम है ...
@वर्मा जी फोटो बढ़िया आये इसी लिए प्रयास रत है
@खुशदीप जी कचोरी के साथ जलेबियाँ भी मिलेगी आपका स्वागत है
उत्साहवर्धन के लिए आभार
19 April 2010 at 15:42
aacha likha hai...liked the way u write and comment...
19 April 2010 at 15:42
t
19 April 2010 at 17:21
very good one!!
19 April 2010 at 21:19
सोनल जी, क्या बात है,बात शुरू होने से पहले खतम कर दी.गागर मे मेरे प्रेम को कोई कमी नहीं पाओगी
बहुत बड़ा है दिल मेरा
हर साइज़ में फिट हो जाओगी, पो्सट भर दी..बधाई
19 April 2010 at 22:48
बहुत ही मजेदार व्यंग...
26 April 2010 at 10:16
its really avesome!! keep it up and all the best for your next writeup
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