प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है. जिसके अंतर्गत आप नित्य विभिन्न रचनाकारों की रचनाएं यहां पढ पा रहे हैं.
आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं.
आज सुश्री अनामिका (सुनीता) की रचना पढिये.
लेखिका परिचय
नाम : अनामिका (सुनीता)
जन्म : ५ जनवरी, १९६९
निवास : फरीदाबाद (हरियाणा)
शिक्षा : बी.ए , बी.एड.
व्यवसाय : नौकरी
शौक : कुछः टूटा-फूटा लिख लेना, पुराने गाने सुनना
ब्लोग्स : अनामिका की सदाये और ' अभिव्यक्तियां '
व्यंग्य रचना ...दहेज के लोभी
आलू-प्याज़ बना दो दूल्हे को..
मंडी मे बिठवा वा दो मुंडे को..
बली के बकरे सा उसे पाल-पोस लो..
तराज़ू मे फिर रख-रख उसे फिर तोल लो..
जितना मोटा हो जाए , फिर बोली बोल दो..
दहेज़ के दानव देखो चिल्ला रहे...
मूह खोल के अपनी कीमत लगा रहे..
ग़रीब की बेटी देखो बूढया गयी..
एक दूल्हे की आस रीती जा रही..
चार बच्चो के अमीर बाप को देखो..
कल दहेज की खातिर जिसने दुल्हन जलाई थी..
पुलिस भी नोटो की चमक से दूंम दबाई थी..
वो आज एक कुंवारी दुल्हन ले आया है..
पवित्र अग्नि की सप्तपदी को नोटो से सजवाया है..!!
धू-धू दहेज की ज्वाला बढ़ती जा रही..
हम तो देखो विवेक की लंगोटी पकड़े बैठे है.
जलती है दुल्हने..बस आँखे नॅम कर लेते है..
समाज मे रहते है
और अच्छे नागरिक बनते रहते है..
चुप चाप रहते है
ना दंगा फ़साद करते है..
वरना इतिहास के पन्नो मे..
हम आ जाएँगे..
दहेज के लोभी नही तो
गुंडे कहलाएँगे..
कितने विवश..
कितने दब्बु..
हम हो गये..
हाए...हम
कितने ...
संवेदन-हीन हो गये...!!
9 comments:
19 April 2010 at 05:14
हम तो देखो विवेक की लंगोटी पकड़े बैठे है.
जलती है दुल्हने..बस आँखे नॅम कर लेते है..
सच तो यही है
सुन्दर रचना
19 April 2010 at 05:36
अनामिका को ढेर सारी बधाईयाँ....
19 April 2010 at 06:03
nice
19 April 2010 at 06:19
बहुत सही.
अनामिका जी का स्वागत है वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में. बधाई.
19 April 2010 at 08:01
यही विडंबना है अपने देश की इक्कीसवीं सदी का ये हाल है की शादी भी एक व्यापार बन गया है..कोई नही सोचता की एक ग़रीब बाप की बेटी के उपर क्या गुजरता है जब दहेज के वजह से रिश्ते टूट जाते है....अनामिका जी बढ़िया भाव..अच्छी रचना...धन्यवाद..
19 April 2010 at 09:13
कितने विवश..
कितने दब्बु..
हम हो गये..
हाए...हम
कितने ...
संवेदन-हीन हो गये...!!
...आज भी ऐसी दुखद घटनाएँ सुनकर-देखकर और लोगों का 'जैसे कुछ नहीं हुआ' रवैया देख सच में यही लगता है कि 'क्यों आज आदमी इतने संवेदनहीन हो जाते है .....
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में. बधाई.
....
19 April 2010 at 11:18
दहेज के लोभी लोगों पर गहरा कटाक्ष है....बहुत बढ़िया रचना....लोगों की आँख खुल अभी भी खुल जाये तो बेहतर है ...
19 April 2010 at 11:27
bahut khub
badhai aap ko yaha
अनामिका को ढेर सारी बधाईयाँ....
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com
19 April 2010 at 11:58
अनामिका जी का स्वागत है वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में. बधाई.
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