वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर की रचना पढिये.

लेखक परिचय
नाम- डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
पिता का नाम- श्री महेन्द्र सिंह सेंगर
माता का नाम- श्रीमती किशोरी देवी सेंगर
शिक्षा- पी-एच0डी0, एम0एम0 राजनीतिविज्ञान, हिन्दी साहित्य, अर्थशास्त्र, पत्रकारिता में डिप्लोमा
साहित्य लेखन 8 वर्ष की उम्र से।
कार्यानुभव- स्वतन्त्र पत्रकारिता (अद्यतन), चुनावसर्वे और चुनाव विश्लेषण में महारत
विशेष- आलोचक, समीक्षक, चुनाव विश्लेषक, शोध निदेशक
सम्प्रति- प्रवक्ता, हिन्दी, गाँधी महाविद्यालय, उरई (जालौन)
सम्पादक- स्पंदन
निदेशक- सूचना का अधिकार का राष्ट्रीय अभियान
संयोजक- पी-एच0डी0 होल्डर्स एसोसिएशन
ब्लाग : रायटोक्रेट कुमारेंद्र और शब्दकार


बुन्देली व्यंग्य
बातचीतन की बातें
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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देश में जा बेरा के हालात देख कैं हमें अपयें पढ़वै कै दिनन की ‘बातें’ याद आ गईं। हमने अपयें हाईस्कूल के सुफल परयास में प्रताप नारायण मिश्र के ‘बात’ सम्बन्धी विचारन कौ पढ़ो हतो। बामें हमने गौर करो तो कि ‘बात’ को मतलब बामें सिर्फ ‘बातईं’ से हतो, हाँ कभऊँ-कभऊँ बामें बात रोग के लानेउ बातें कई गईं हतीं। लेकिन आज के जा समय में ‘बात’ के संगे ‘चीत’ और जुड़ गओ है। सो अब ‘बात’ को विस्तार होकै हो गओ ‘बातचीत’। बुन्देली में ‘चीत’ को मतलब होत है चितावै से यानै कै देखवे से, सो जा ‘बातचीत’ कौ मतलब हो गओ ‘देखत भये बतियाबो।’ अब और लेओ तो जा ‘बातचीत’ कौ और विस्तार कर दओ है और जा बन गई ‘वार्ता’, ‘वार्तालाप’, ‘विचार-विमर्श’ आदि-आदि।
अब अपयैं बीचन में चर्चा हो रई है ‘बात’ की सो स्पष्ट रूप से ‘बातईं’ करबो जादा जरूरी है। अब सवाल घुमड़न लगो कि ‘बात’ हो रई हती तो बाकै संगे जा ‘चीत’ जोडबै की का पर गई हती सबै? जऊ कै लाने यदि थोड़ो सो पीछे जाओ जाये तो आराम से पता लगहै कि हमाये देश की एक प्रधानमंत्री भईं हतीं इंदिरा गाँधी, उनई ने कहो हतो कि ‘बातें कम, काम जादा।’

अब आपई बताओ कऊँ ऐसौ हो सकता हतो कि सरकारी आदमी काम जादा करै और बातें कम करै? होनईं नई हतो ऐसौ तो अब करो का जाये? सबईं ने मिलकै जा जुगाड़ निकारी कि ‘बात’ के संगे कछु ऐसौ जोड़ दऔ जायै जासै जो अकेले ‘बात’ न रह जायै। बस, सब भइयन ने मिलकै ‘बात’ के अगाऊँ जोड़ दओ ‘चीत’ और बना दओ बायै ‘बातचीत’। अब करौ का कर पा रये हमाओ, बातेंचीतें हमसे लेऔ, खसम को रोटी तुम पै देऔ। अब बात तो होयेहै देख-देख कै। मलतब फोन पै बात कम करबै को और सामने देखत भयै बात करबै में कोनउ दिक्कित नईं।

‘बात’ को बिस्तार कर दओ और प्रधानमंत्री जी की बातउ रख लई। सबई के सब मंत्री, नेता, अफसर, कर्मचारी, सबई खूब प्रसन्न। जा शब्द को विकास भऔ और उनकी ‘बातचीतउ’ को बिस्तार मिल गओ। अब हालत जा होन लगी कि कोनउ काम होए तो पैले ‘बातचीत’ होएहै। काम कैसेउ होये, बड़ो होये, चाहैं छोटो, पैले ‘बातचीत’ तभईं काम आगे बढ़है।
जब हर काम में बहुतई जरूरी हो गऔ कि कोनउ काम बिना ‘बातचीत’ के नईं होएहै तो चाहै घर होयै, चाहै बाहर, सबई जगाँ बस बातईं बातें। घरै चाय-नाश्ता कर रयै तोऊ ‘बातचीत’, दुपहरिया में भोजन करन बैठे तोऊ ‘बातचीतें’ रात कै अपनी मेहरिया संगै मिलबैठकैं बुराई-नुक्ताचीनी की बातैं तो बऊ भई ‘बातचीत’, कुल कहबै को मतलब जो है कि सिगरै दिना बस बातईं और बातईं।

अब जब इत्ती तरहा की ‘बातैं’ होयेहैं तो बाके लानै नामउ तो अलग-अलग होन चहिएै। सो सबनै मिलके ‘बातचीत’ को नामकरण कर दऔ। दो बहुत खास जनैं या कहैं कि खूबई घोंटमघोंट वाले, जैसें ‘लगोंटिया’ जब मिलकै बातें करैं तो समझो बायै कैहें ‘गप्पबाजी’; हमाए बुन्देली में ‘गप्पें’; कोनऊ अधिकारी के संगै जब ‘बातैं’ होनै होयें तो बाये कही जैहे ‘विचार-विमर्श’; अपयँ कोनऊँ खासमखास से कोनऊ मुद्दा पै राय लैने होये तो बाये कहो जैहे ‘गुफ्तगू’; कोनउ ‘बात’ को जब कोऊ और को न सुनानें होये तो बायै कह देऔ ‘कानाफूसी’; सबईं के सामनै जब बड़े बन सँबर कै ‘बातैं’ होन लगैं तो उन ‘बातन’ को कही जात हैं ‘गोष्ठी’; और तो और मंत्री-संतरी, नेता टाइप के जनै जब ‘बातैं’ करत हैं तो बे कहलाउत हैं ‘वार्ता’ ‘मुलाकात’।

देख लओ कित्तो छोटो सो शब्द और बाकै कित्ते सारे नाम। जब इत्ते सारे नामईं हैं तो बाको महत कम थोड़ई होहैये? अच्छा महत न होतो तो सरकारैं कायै कै लानै ‘बातन’ पै ‘बातें’ करत जातीं? जितै दैखो उतै बस ‘बातनईं’ से काम बनाओ जा रओ है। भारत-पाकिस्तान को विवाद लै लेऔ, काश्मीर की चर्चा कर लेऔ, आतंकवादियन की ‘बातें’ कर लेऔ, चाहे सरकार बनबान और गिरबान की राजनीति करनै होयै, सबईं जगाँ ‘बातें’ ही ‘बातें’।
हमायै इतै का जनता और का मंत्री सबईं बातैं बनाबो तो बहुतईं अच्छी तरहा से जानत हैं। हम खेल में हार जैहें तोउ हम अपयैं में दोष नईं देखहैं, दूसरे देशन के खेलवै वालन में बुराई देखहैं, हमाये देश में आतंकवादी हमलऊ कर जात हम तभऊँ कछु नईं करत, बस बातचीतन से सब सही करवो चाहत हैं।

हम सब लोगन की का आदत पड़ गई है कि हम औरैं तब तक कौनऊ ‘बात’ पै ‘बात’ करहैं जब तक बा ‘बात’ को असर खतम न हो जैहै। चलो ‘बातईं’ कर लेऔ, काये कै लानै बिना ‘बातन’ के हमाये इतै के लोगन को पेटऊ तो नई भरतहै। ‘बातें’ तो कभऊँ कम न हौयेहैं, मुद्दा तो रोजईं तमाम सारे मिलत हैं। ‘बातचीत’ करबौ हमाओ जनमसिद्ध अधिकर हैगो, सो हम ‘बातैं’ खूबईं करहैं। आजकल हम ‘बातैं’ कर रयै कि आई0पी0एल0 में कौ हतो सबसे बड़ो चोर, हमें ‘बात’ जऊ पै करनै है कि शादी के बाद सानिया कौनकी तरफ से अपनो बल्ला चलायेहैं, हमाये लानै जोऊ बहुत बड़ो मुद्द है ‘बातन’ को कि ‘बातैं’ करबै कै लानें और ‘बातें’ लै आनैं हैं।

सो भइया होरैं, खूबईं ‘बातैं’ करौ और ‘बातनईं’ से सरकारैं चलाऔ। तुम कौनसी तोप चला रये सो बमक रयै, खाली ठलुआ से बैठेई तो रहत हो, ‘बातईं’ करौ करै, जासै कोनऊ तरह को भलौई हौयेहै, समझै कि नाहीं। सो चलौ भइया अपईं जीभ को तराशबे कै लानै हम तौ चले.............अगाऊँ आन बालै मुद्दन तक हमाई, तुमाई....‘इतिवार्ता’।
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डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
सम्पादक-स्पंदन
प्रवक्ता-हिन्दी विभाग,
गाँधी महाविद्यालय, उरई (जालौन)


तारी 22 मई 2010

3 comments:

  श्यामल सुमन

23 May 2010 at 07:41

सुन्दर रचना और इस अनोखे सम्मान के लिए सेंगर जी बधाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

  Alpana Verma

23 May 2010 at 17:01

'हम औरैं तब तक कौनऊ ‘बात’ पै ‘बात’ करहैं जब तक बा ‘बात’ को असर खतम न हो जैहै'''

:) बहुत खूब लिखा है !

  संजय कुमार चौरसिया

28 May 2010 at 17:42

bahut bahut badhai

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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