वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री लक्ष्मी नारायण अग्रवाल

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
सभी प्रतिभागियों का वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये हार्दिक आभार. इस प्रतियोगिता में सभी पाठकों का भी अपार स्नेह और सहयोग मिला, बहुत आभार आपका.

कुछ मित्रों की इंक्वायरी उनके शेष बचे आलेखों के बारे में आती रहती हैं. उनसे निवेदन है कि उनकी शेष रचनाएं क्रमश: प्रकाशित होंगी. अगर कोई रचना किसी त्रुटीवश नही मिल रही होगी तो सूचना मिलने पर आपसे इमेल द्वारा संपर्क किया जायेगा.

इस पोस्ट में श्री लक्ष्मी नारायण अग्रवाल की रचना पढिये

लेखक परिचय
नाम - लक्षमी नारायण अग्रवाल
जन्म - 9 सितम्बर,1952, लखनऊ में
शिक्षा - एम.एससी.( आ.कैमिस्ट्री ) लखनऊ वि·ा विद्यालय,लखनऊ
सप्रति - "गवर्नमेंट इग्जामिनेशन आफ क्वेश्चन्ड डाकमट'में हण्डराइटिंग एक्सपर्ट केरूप में काम करने के बाद 1985 से इलैक्ट्रोनिक्स व्यापार में।
विधा - कविता,गजल,कहानी,लघु कथा,हास्य-व्यंग्य ,समीक्षा आदि
प्रकाशन - मुक्ता,गृहशोभा,सरस सलिल,तारिका,राष्ट्र धर्म,पंजाबी संस्कृति,अक्षर खबर ,हिन्दी मिलाप आदि में प्रकाशन। कई कहानियाँ पुरस्कृत । कई बार कविताएं आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित ।
पुस्तकें - "आदमी के चेहरे'( कविता संग्रह ) 1997
"यही सच है'(कविता संग्रह) 1998
1976 से हैदराबाद में स्थाई निवास
फोन न. - 24656976
मोबाइल न. - 9848093151
सम्पर्क सूत्र -- दीप इलैक्ट्रोनिक्स
5-1-720/13 खुशाल चैम्बर्स , बैंक स्ट्रीट
हैदराबाद-500095


गोरा भिखारी

भला हो तिवारी जी का जिन्हों ने मुझे यह आदत डाल दी .एक दिन राशन कि दुकान पर मिल गए थे ,बातो बातों में पता चला कि मेरे घर के पास ही रहते है .उम्र में मुझ से दस वर्ष बड़े थे किन्तु मुझ से चुस्त दिख रहे थे .मैं ने पूँछ लिया -- "तिवारी जी आप कि सेहत का राज क्या है ?"
"कुछ भी नहीं अरोड़ा जी ,पुराना भारतीय नुस्खा है ,कम खाओ और गम खाओ ,बस सुबह जरा टहलने भी चला जाता हूँ .आप कहे तो आप को भी ले चलूँ ?"
"मै तो सुबह नौ बजे से पहले उठ ही नहीं पाता हूँ ."
"कोई बात नहीं मै जगा दूंगा ,पॉँच दिन में आदत पड़ जाएगी ."
"ठीक हें तिवारी जी सोचूंगा किन्तु तिवारी जी ने सोचने का मोंक ही नहीं दिया अगली सुबह साढ़े पॉँच बजे ही आ कर उठा दिया .बहुत टालने कि कोशिश की ]मगर उसी तरह मना कर ले गए जैसे पत्नी शौपिग के लिए मना कर ले जाती है .
घर से कुछ दूर पर एक झील के किनारे पहुंचे ही थे की तिवारी जी के क़दमों में तेजी आगई . एक मिनट में ही मुझ से दस कदम आगे निकल गए फिर मुझे पीछे देख कर रुक गए .मैं पास पहुंचा तो बोले --- "अरोड़ा जी ,आप व्यापार में कैसे आगये ? इतना धीरे चलते है ,आप को तो किसी हिन्दुस्तानी अदालत का जज होना चाहिए था ."
जब मै ने उन्हें बताया कि व्यापार में आने से पहले मैं अदालत में ही क्लर्क था .तो वह चोंक कर पल्टे और बोले -- "अरोड़ा जी अब यह मत कहना कि कुछ दो तो तेज चलूँ ."
सुन कर मैं थोड़ा झेंपा फिर हंस कर उनके साथ चल दिया .
थोड़ी ही दूर गए थे कि कुछ दूर पर 3 भिखारी दिखाई पड़े .मैं ने कहा ---"तिवारी जी इतनी सुबह भी भिखारी ?"
"अरोड़ा जी यह भिखारी नहीं हैं ."
"तो कोंन है ? देखने मे तो भिखारी ही लगते है ."
"ये गाँधी जी के तीन बंदर है . आदर्शवाद के चक्कर में सड़क पर आगये है ."
पास पहुंचा तो देखा ,एक भिखारी बुड्ढा था , मैला कुचेला था , उसके कटोरे में चार चवन्नियां पड़ी थी. दूसरा अधेड़ था , मगर बिलकुल काला था , उसके कटोरे में दो चवन्नियां और दो अठन्नियां पड़ी थीं .तीसरा भिखारी गोरा था , स्मार्ट था , साफ़ सुथरे कपड़े पर बैठा था , उसके कटोरे में एक रुपये के चार सिक्के पड़े थे. मै हैरान होगया यहाँ भी बाज़ार वाला हिसाब . जिसकी दुकान जितनी चमकदार , उतनी ही अधिक कमाई. तभी एक दाता आया उसने दो भिखारियों को चार - चार आने और गोरे भिखारी को एक रुपये का सिक्का दिया , तो मैंने उससे पूछ लिया - " भाई साहब ये पक्षपात क्यूँ ?"
तो वो बोला --- " ये भिखारी साफ़ सुथरा रहता है , पैसे का सदुपयोग करता है इसलिए उसे एक रूपया "
मैंने तिवारी जी से पूंछा --" तिवारी जी , मेरी समझ में नहीं आ रहा कि सच क्या है ? "
" अरोड़ा जी , सच ये है कि उस भिखारी की चमड़ी गोरी है और दाता हिन्दुस्तानी है"
"मगर अब तो पचास साल होगये हैं "
" तो क्या हुआ , हमने दो सौ वर्ष उनका नमक खाया है. हम इतनी जल्दी अपनी परंपरा कैसे छोड़ सकते हैं ? "

लक्ष्मी नारायण अग्रवाल
दीप इलेक्ट्रोनिक्स
5-7-120/13 खुशाल चेम्बर्स ,
बेंक स्ट्रीट , हेदराबाद -500095 अ. प्र.

3 comments:

  दीपक 'मशाल'

3 May 2010 at 17:09

umda kataksh.. aapka swagat hai sir

  अविनाश वाचस्पति

3 May 2010 at 17:35

बिल्‍कुल नमकीन और खट्टी मीठी रचना।

  Pt. D.K. Sharma "Vatsa"

4 May 2010 at 11:49

यहाँ तो नमक भी हमारा था और खाने वाले भी हमीं थे...फिर भी अभी तक नमक की कीमत दिए जा रहे हैं.
बढिया रचना!

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