वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री राजेंद्र मीना

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
सभी प्रतिभागियों का वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये हार्दिक आभार. इस प्रतियोगिता में सभी पाठकों का भी अपार स्नेह और सहयोग मिला, बहुत आभार आपका.

कुछ मित्रों की इंक्वायरी उनके शेष बचे आलेखों के बारे में आती रहती हैं. उनसे निवेदन है कि उनकी शेष रचनाएं क्रमश: प्रकाशित होंगी. अगर कोई रचना किसी त्रुटीवश नही मिल रही होगी तो सूचना मिलने पर आपसे इमेल द्वारा संपर्क किया जायेगा.

इस पोस्ट में श्री राजेंद्र मीना की रचना पढिये


लेखक परिचय
नाम- राजेंद्र मीना
जन्मस्थान - गंगापुर सिटी , राजस्थान
शिक्षा - १२ तक
शौक - लेखन , संगीत , हिंदी फिल्म्स
अपने बारे में -
अकेलेपन से बचने के लिए ...कलम और संगीत से दोस्ती की ...अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली तो आत्मविश्वास बढ़ा...आज समझ में आया दर्द और दुःख सह कर जीना ही जीवन की सही परिभाषा है ....बस अब जिन्दगी की चारपाई इन चार पायो पर टिकी है ..शराब ,संगीत ,लेखन और यादें ..एक भी पाया टूटा ...नहीं जी पाऊँगा पर इस सब के बावजूद हर पल को जीता हूँ , ग़म हो या ख़ुशी हमेशा मुस्कुराना मेरी पहचान है ,कहीं भी ,कोई भी हरक़त कर देता हूँ ..नहीं सोचता की कोई क्या सोचेगा ,जीवन पर नित्य नये प्रयोग करते रहता हूँ...कभी बचपना ..कभी कुछ पागलपन ...थोडा पागल हर इंसान को होना चाहिए ...जिंदगी की खूबसूरती बढ़ जाती है ...खुद को जलाकर भी दूसरो को रोशनी देना चाहता हूँ...इसी कारण...चहेतों की कमी नहीं है...मदद लो मदद करो यही मेरा उसूल है

ब्लाग : अथाह

इस देश का प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ,नंबर वन चोर है।

किसी जरूरी काम से गाँव जाना था , आनन्-फानन कार्यक्रम बना ,तो आरक्षण भी नहीं करवा पाए । वैसे आरक्षण का मतलब ये नहीं की हम सामान्य कोच में सफ़र करने से डरते हैं , वो तो हम किसी और कारण से ऐसा करते है , जो आपको जल्द ही ज्ञात हो जाएगा । उलटे सामान्य डिब्बे में तो हमें फक्र का अनुभव होता है है , चलो अपने ही जैसे लोगो के बीच बैठे है । और फिर कई बार हमें आरक्षी कोच से जबरन धक्का देकर बहार निकलवा दिया गया , रेलवे फ्री पास बताते तब जाकर उन्हें अपनी भूल का अहसास होता , परन्तु इसमें टी.टी. भाइयो का कोई कसूर नहीं है हमारे साफ़-सुथरे कपडे देख कर अच्छे-अच्छे दोखा खा जाते है।

ये तो पिताजी की नौकरी लग गयी... किसी जमाने में ........... ( बस अब तक पिता जी ने दो ही सही काम किये है ...एक तो दुनिया में हम जैसे भले पुरुष को लाये ...और दूसरा ..फ्री पास मिलने वाली नौकरी झपट ली )................ये तो फ्री पास मिल गाय वरना हम में इतना गुर्दा कहाँ की ३२५ रु . अपनी जेब से निकाल कर इस फ़ालतू काम में लगायें , इतने पैसे में तो माधुरी की एक फिल्म चार बार देख लेंगे ...

खैर अब आप सोच रहे होंगे की.... क्या मीणा जी एक बार शुरू हो जाते हो तो ....शोले की बसन्ती की तरह पिचर-पिचर कहीं भी शुरू हो जाते हो ...भई माफ़ करना ....अब हम काम की बात करते है

( मतलब अबतक सारी बात बेफिजूल थी ) ...........
हां तो हम कह रहे थे की ....... नयी दिल्ली स्टेशन पर कुछ निर्माण कार्य चल रहा था , इस वजह से गाडी निजामुद्दीन से ही पकडनी पड़ती थी , निजामुद्दीन आने में अधिक समय लगता है.....बस से उतरकर , हम भागते हुए आये तो देखा गाडी छूट रही थी ....पर हम पक्के खिलाड़ी .....ऐसी दौड़ लगायी .....झट से गाडी के पास और अगले ही ....आक्रमण में ....बोगी के अन्दर आकर पड़े ...एक महिला पर ........ वैसे उन्हें महिला कहना सरासर ' महिला ' शब्द के साथ साथ नाइंसाफी होगी बस इतना समझ लीजिये की कुछ सालो पहले महिला जाति से उनका कोई सम्बन्ध अवश्य रहा होगा ।

शेरनी की तरह दहाड़ कर बोली " नासपिट्टे यही जगह मिली थी तुझे ....कूदने के लिए ....मेरी तो कमर ही तोड़ दी हाय लाजो के बापू ...मैं तो मर गयी "

हम बोले - "माफ़ करना माता जी हमें नहीं पता था की आपकी कमरा ...मतलब कमर ..........."
अपनी बात पूरी करते ... इस से पहले ही जाने किधर से से लाजो के बापू ने एक भरपूर धक्का मारा ...की फटाक से डिब्बे के अन्दर ...चलो कोई तो मददगार मिला ।

...अब जान में जान आई , आस-पास देखा सभी बड़े साफ़-सुथरे लोग बिलकुल हमारी ही तरह । सारी सीटो पर लोग बड़े प्रेम से बैठे थे ...एक दूसरे से इतने सटकर की बीच से हवा भी पास ना हो ..... कोने की सीट पर देखा एक मट-मैले रंग का कुत्ता आरामपूर्वक बड़े गोल-मटोल तरीके से सोया हुआ था ।

"...वाह ! ... इंसान को जगह नहीं और कुत्ता सो रहा है वो भी इतने भद्दे रंग का"....हमारा इतना कहना था की बड़े ......तरसपूर्ण आश्चर्य के साथ सभी नर-मादा यात्री हमारी और घूरने लगे , जैसे हम ने कोई महिला आरक्षण बिल का मुद्दा छेड़ दिया हो "

पर हम कहाँ डरने वाले थे गंगापुर के ठोठ मीणा जो ठहरे "हिम्मत से बोले ....अबे हट.... छिस्स्स ....छिस्स्स -छिस्स्स .....नहीं हटेगा ...देखता हूँ कैसे नहीं हटेगा ....अभी लात पड़ेगी ना तो ..होश ठिकाने आयेंगे । "

इतना कह कर हमने अपनी बहादुरी का बेजोड़ नमूना बताते हुए ....ये खेंच कर एक लात मारी .....और वो प्राणी नीचे "
अरे ! ये क्या... कुत्ता नहीं है ..... ये तो किसी का का झोला लगता है ...हमें अपने किये पर ...कुछ गिल्टी-गिल्टी सा फील हुआ .........चलो कोई बात नहीं ..जगह तो मिली कम से कम ...और हमने झोला उठा कर जैसे ही ऊपर रखना चाहा , तुरंत एक बाबा जी जाने कहाँ से जोर से चीख पड़े ....

"कौन है भई ..! ये सरे आम चोरी ...कैसा जमाना आ गया राधे-राधे "

'राहो में इन से मुलाक़ात हो गयी जिस का हमें डर था वही बात हो गयी "
बस इन्ही बाबाओ की वजह से हम सामान्य कोच में सफ़र करने से डरते है .......समझ नहीं आता ट्रेन में कैसी भक्ति करते है, एक तो ट्रेन बड़ी सुगली ऊपर से .....नाम देखो तो ' स्वर्ण मंदिर मेल ' जब नाम ही मंदिर है तो बाबा तो आयेंगे ही ........हम जैसे बुद्दिजीवी से सलाह कर सरकार को कोई बढ़िया नाम रखना चाहिए था जैसे ' याहू मेल , जीमेल , रेडिफ मेल ' .......कम से कम अन्दर घुसने से पहले पासबर्ड तो डालना ही पड़ता ।

बाबा से हमने कहा " बाबा हम चोर नहीं है वो तो हम आपका थैला ऊपर रख रहे थे "
"ओ हो ! ....हम तो खुद थैला बढ़िया से रख करे गए थे फिर गिरा कैसे "तुम तो शक्ल से ही चोर लगते हो"
चलो किसी ने तो हमें देखते ही पहचान लिया वरना कई तो हमें अब तक तक नहीं पहचान पाए .....पर सामने की बर्थ पर एक कन्या बैठी थी तो हमने इम्प्रेशन झाड़ने का प्लान बनाया ।
हम बाबा से बोले बाबा " हम चोर नहीं है हम तो बहुत ही ' नेक ,शरीफ और इज्जतदार ,व्यक्ति ' है ।

बाबा बोले " बहुत खूब चार -चार शब्दों का इतना गलत इस्तेमाल ...किस जगह से आये हो "

"दिल्ली से .... खानपुर से "

"वो तो चोरो का ही इलाका है ....सही जगह रहते हो .....पिछले दिनों ..सायकल चोरी की गिरोह को पकड़ा था कहीं तुम्ही उन्ही में से एक तो नहीं "।
"नहीं बाबा मैं तो बहुत पढ़ा- लिखा आदमी हूँ बारवीं पास हूँ , ब्लॉग पर कवितायेँ और व्यंग आदि लिखता हूँ "
बाबा को दो चार कवितायेँ भी सुनाई बाबा ने बड़े ध्यान से सुनी फिर बोले ।

"बहुत अच्छी कविताएँ है ...कहाँ से चुराई ........ मतलब कविताएँ भी चुरातें हो ...प्रोफेस्स्नल चोर हो , बारहवीं पास एक एड्रेस तो ठीक से लिख नहीं सकता .....इत्ती बड़ी कविता क्या ख़ाक लिखेगा , अब से पहले कहाँ पढते थे ॥?"
"कोटा पढता था था दासवानी में "

"ओह्ह ! ..आकाशवाणी में ...तभी इतना बोलते हो "
"आकाशवाणी नहीं बाबा .....दासवानी क्लासेस ...डी फॉर डंकी "

"वो तो खुद एक नंबर की चोर क्लासेस्ज है ....हमारे एक भक्त का बच्चा पढ़ा था ..वह बोलता था की हमारा टीचर विजय दासवानी ही चोर आदमी है ...बच्चो के पैसे खा जाता है ...कोर्स पूरा नहीं कराता"।

"अब हम भड़क गए हमारे देवता सामान गुरु जी को कोई और चोर बोले ..( यह बात सिर्फ हम ही बोल सकते है ) .
हम बनावटी क्रोध के साथ बोले " बाबा ना तो हमारे गुरु जी चोर है और ना ही हम .."
पर एक दिक्कत थी की ..हम गुस्से में हुबहू बोबी देओल की तरह लगते है....सामने वाला समझता है जैसे कॉमेडी कर रहे हैं ...तो डरने का सवाल ही पैदा नहीं होता .....बाबा भी समझ गए ....... सुनते ही बाबा ने कहा "मैं अभी साबित कर दूंगा की तुम चोर हो ...जैसे देखो ..........ये तुम्हारी पेंट कितने नंबर की है ?"

"ये तो तीस नंबर की है "

"और तुम्हारी कमर "

"बत्तीस की बाबा " मैं बोला

" बत्तीस की कमर में तीस की पेंट पहनना क्या चोरी नहीं है ...? ..बार-बार तुम उस आदमी के अखबार पर नज़र नहीं डाल रहे हो .... ये क्या चोरी नहीं है ?.....तुम चुपके -चुपके उस कन्या को निहार रहे हो क्या ये चोरी नहीं है ?.....अभी कुछ देर पहले तुमने अपने बाजू की सीट पर ....सो रही महिला की ...साड़ी से रहंट पोछ ली थी ....ये क्या चोरी नहीं थी ...? ये तुमने बिसलरी की बोतल में साधा नल का पानी भर रखा है क्या ये चोरी नहीं है? .....नोकिया लिखा हुआ चाइना का मोबाइल रखते हो ... क्या ये चोरी नहीं है ? दोस्त से फोन पर ...भरतपुर स्टेशन को बयाना बताते हो क्या .... ये चोरी नहीं है ? ...जनरल डिब्बे में इंग्लिश बोलते हो क्या ये चोरी नहीं है ..?.अपनी खाई मूंफली के छिलके दूसरे के ढेर में डाल रहे हो क्या ये चोरी नहीं है...?..नेट से डाउनलोड फोटो को अपनी गर्लफ्रेंड का फोटो बताते हो क्या ये चोरी नहीं है ...? समोसे को चटनी की जगह अचार से खाते हो क्या ये चोरी नहीं है ....? रोयल -स्टेग की बोतल में देसी दारु रख कर पीना भी तो चोरी ही है ......? .....अब ये बताओ तुम किसी से प्रेम करते हो।"?

"हाँ बाबा बहुत ही सुन्दर औरत है ..माधुरी नाम है उसका ..फिल्मो में काम करती है "कुछ शर्माते हुए कहा
"यहाँ भी चोरी एक औरत से प्रेम करते हो.....कोई लडकी नहीं मिली क्या ..? ....चलो फिर भी ..ठीक है....बेटे आज कल के लड़के तो लडको से ही प्रेम करते है ....माधुरी को पता है ..तुम्हारे .......स्पेसल प्रेम का "
"नहीं बाबा ..अभी तक नहीं....."।

"उसे बिना बताये प्रेम ....फिर चोरी ......और फिर अब नहीं तो कब बताओगे ....साठ-सत्तर के आस - पास पहुँच जायेगी तब ....वाह ! मेरे शेर ....जाने कितने होंगे अभी तो तेरे जैसे इस हिन्दुस्तान में ........अब ये भी बता दो के तुम जैसी विचित्र और महान आत्मा का नाम क्या रखा है कुदरत ने? "

अब कुछ बताने की हिम्मत बची हो तो बताऊँ ना ....फिर भी मैं नाम बताया " राजेन्द्र मीना "।

"एक आदमी और दो - दो नाम यहाँ भी चोरी " बाबा ने बड़ी कुटिल मुस्कान पेश की ।

"अरे बाबा नाम एक ही है ..मीना तो जाति है "
"कहाँ जाती है मीना , और क्यूँ जाती है "?
"पता नहीं बाबा...... ये ही नाम रखा है माँ-बाप ने "।

देखो बालक " राजेन्द्र...का अर्थ होता है इन्द्रियों पर राज करने वाला , और तुम्हारी इन्द्रियाँ कहाँ -कहाँ राज करने जाती है ये तो तुम जानते ही हो .......नाम में भी चोरी ...इसका मतलब तुम्हारी गलती नहीं है ..खानदानी .. ...गुण है ये चोरी "
" देखो बाबा मेरे परिवार और देश के बारे में कुछ मत बोलो "

"देश .......अबे ...चोरी शब्द का आविष्कार ही तेरे देश में हुआ है ......' सौ में से अस्सी बेईमान फिर भी भारत देश महान ' ...और तो और इस देश का प्रधानमंत्री ..मनमोहन सिंह चोर है ...."
"अरे बाबा ..तमीज से बोलो ..किसी देश भक्त का खून खौल गया तो खामांखा आफत आ जायेगी
"हमसे बड़ी आफत है कोई दुनिया में .....और फिर सच कहने में डर....कैसा ? ..मन मोहन ...सिंह चोर है .......मुझ से लालू ने कहा ..."

"लालू कौन ?...लालूप्रसाद यादव ने "

"अरे वो नहीं मेरा चेला है है एक .....उसने ..हर बार की तरह पक्की खबर "
"बाबा झूंठ बोलता है वो ......मन मोहन सिंह जैसा ईमानदार आदमी और कोई नहीं है राजनीति में....उन्हें इमानदारी का अवार्ड भी मिल चुका ..मैं तो उनका फेन नंबर वन हूँ "

" तू उसका फेन नंबर वन है....फिर तो पक्का वो चोर नंबर वन है , ...उस मनमोहन सिंह के बच्चे ने हम जैसे बाबाओ के आरक्षण का विधेयक पास नहीं होने दिया ......जितना भी पैसा मिला था सरकार से ......सब डकार गया "

अब हम इस बहस में चित्त हो चुके थे ..थोडा और ...झेलते तो ..बेहोश हो जाते ........फिर वहां लिखा भी था ' यात्री अपने सामान की स्यंव रक्षा करे "
हमें अपने दिलो-दिमाग की सुरक्षा के उद्देश्य से ........मथुरा स्टेशन पर उतर कर ..अगले डिब्बे में चले गए ...
अब आप समझ गए होंगे की बाबाओ से ...हमारा डरना बेवजह नहीं है ..........परन्तु इन सब से परे आज बाबा ने चोरी की सही परिभाषा बतला कर हमें समझा दिया के चोरी के कई रूप है..?

8 comments:

  निर्मला कपिला

4 May 2010 at 06:15

ताऊ जी राम राम मीना जी को भी बधाई और शुभकामनायें

  ब्लॉ.ललित शर्मा

4 May 2010 at 06:31


बहुत बढिया पोस्ट
ताउ जी अब तो टिप्पणी ना कर पाना भी एक जुर्म हो गया है।

अब देखिए ना हमारे उपर तो टिप्पणी लौटाने के लिए मुकदमें की तैयारी हो रही है, टिप्पणी
लौटाने की धमकी दी जा रही है आप
यहां पर दे्खिए:)

जय टिप्पणी माता
जय टिप्पणी माता

  Udan Tashtari

4 May 2010 at 07:30

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे श्री राजेंद्र मीना जी का स्वागत एवं इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई.

  विनोद कुमार पांडेय

4 May 2010 at 08:13

स्वागत है राजेंद्र जी ..बढ़िया रचना

  Shekhar Kumawat

4 May 2010 at 08:32

are wah badhai bhai ko bahut bahut

bahut bahut badhai

shekhar kumawat

  डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

4 May 2010 at 09:56

सुन्दर पोस्ट!
बहुत-बहुत बधाई!

  अन्तर सोहिल

4 May 2010 at 10:34

शानदार, मजेदार, बहुत बढिया लगा यह लेख
"सुगली ट्रेन" हा-हा-हा

राजेन्द्र मीणा जी
और ताऊ जी आपका धन्यवाद यह पढवाने के लिये

प्रणाम स्वीकार करें

  अन्तर सोहिल

4 May 2010 at 10:36

ब्लाग पढते हो और टिप्पणी नहीं देते
यह भी तो चोरी है
या टिप्पणी भी दूसरों की कापी करके पेस्ट करते हो यह भी तो चोरी है

हा-हा-हा-हा

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