आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में सुश्री स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' की रचना पढिये.
लेखिका परिचय
पूरा नाम : स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा'
शिक्षा : विज्ञानं में स्नातकोत्तर (जीव विज्ञान)
एम्.सी.ए (मास्टर इन कम्प्यूटर अप्लिकेशन)
स्थान : कनाडा
शौक़ : संगीत, नाटक, लेखन
एकादशानन...
अक्सर मेरे विचार, बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
परन्तु हर बार मेरे विचार, कुछ और उलझ से जाते हैं
जनक अगर सदेह थे, तो विदेह क्योँ कहाते हैं ?
क्योँ हमेशा हर बात पर हम रावण को दोषी पाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ दशानन रक्तपूरित कलश जनक के खेत में दबाता है ?
क्योँ जनक के हल का फल उस घड़े से ही जा टकराता है ?
कैसे रावण के पाप का घड़ा कन्या का स्वरुप पाता है ?
क्योँ उस कन्या को जनकपुर सिंहासन बेटी स्वरुप अपनाता है ?
किस रिश्ते से उस बालिका को जनकपुत्री बताते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ रावण सीता स्वयंवर में बिना बुलाये जाता है ?
क्योँ उस सभा में होकर भी वह स्पर्धा से कतराता है ?
क्योँ उसको ललकार कर प्रतिद्वन्दी बनाया जाता है ?
क्योँ लंकापति शिवभक्त, शिव धनुष तोड़ नहीं पता है ?
क्योँ रावण की अल्पशक्ति पर शंकर स्वयम् चकराते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ इतना तिरस्कृत होकर भी, वह दंडकवन को जाता है ?
किस प्रेम के वश में वह, सीता को हर ले जाता है ?
कितना पराक्रमी, बलशाली, पर सिया से मुंहकी खाता है ?
क्योँ जानकी को राजभवन नहीं, अशोकवन में ठहराता है ?
क्या छल-छद्म पर चलने वाले इतनी जल्दी झुक जाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ इतिहास दशानन को इतना नीच बताता है ?
फिर भी लंकापति मृत्युशैया पर रघुवर को पाठ पढ़ाता है
वह कौन सा ज्ञान था जिसे सुन कर राम नतमस्तक हो जाते हैं ?
चरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
रक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते हैं
11 comments:
7 May 2010 at 06:00
अदा जी की इस उम्दा सोच और रचना के लिए धन्यवाद / आपने अच्छी सोच को सम्मानित किया यह और भी उम्दा कार्य /
7 May 2010 at 06:20
रोचक रचना और इस बिशिष्ट सम्मान के लिए बहन मंजूषा को बधाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
7 May 2010 at 07:32
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे सुश्री स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' जी इस बेहतरीन रचना के साथ स्वागत है, बहुत बधाई.
7 May 2010 at 08:09
वाह, जबरदस्त..
7 May 2010 at 10:39
एक दम नए विचार ..ताज़ा रचना
7 May 2010 at 11:27
बेहतरीन विचार।
7 May 2010 at 12:43
बहुत खूब....बहुत अच्छा लिखा है...
7 May 2010 at 16:52
aapki shayad yahi rachna thi jisne pahle baar mujhe aapke blog par aane ke liye prerit kiya tha...
alag soch umda rachna.
7 May 2010 at 19:02
हार्दिक शुभकामनाएं।
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पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
7 May 2010 at 19:07
Very good....
8 May 2010 at 06:28
अच्छी रचना ....!!
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