प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री तेज प्रताप सिंह की रचना पढिये.
लेखक परिचय
नाम-तेज प्रताप सिंह
शिक्षा-एम एस सी (जैवरसायन), पी एच डी (मोलीकुलर मेडिसिन, ऑस्ट्रिया; जारी)
निवास-गोंडा, उत्तर प्रदेश
ब्लाग : साहित्य योग
साहित्य में बचपन से ही लगाव रहा है। पहली रचना "समाज का दाग" मैंने उस समय लिखी जब मैं १० वीं का छात्र था। मेरा मानना है लिखने के लिए शब्द नहीं बल्कि भावना की जरुरत होती है.
रेलगाड़ी की यात्रा
मुझे तो लगता है जिंदगी ही हास्य के लतीफों से भरी पड़ी है. जरुरत सिर्फ उसको समझने की है.
चलिए मैं आपको रेलगाड़ी की यात्रा कराता हूँ जिसमें आपको तरह-तरह के लोग मिलेगें और उनकी बातें किसी हास्य कवी की रचना से कम ना होगा...............
पहला चरित्र मोटे लाल--नाम मोटे लाल पर शरीर ऐसा की कोई भी उठा कर उन्हें खूंटी पर टांग दे
दूसरा चरित्र स्वामी नाथ--सिर्फ शराब और जुएँ का स्वामी
तीसरा चरित्र संगमलाल की अम्मा--नाम मुझे भी नहीं पता, असली नाम लोग भूल चुके थे
इस डिब्बे का चौथा और आखरी चरित्र पूराने--असली नाम जीतेन्द्र पर हाव-भाव पूराने होने के कारण, नाम पूराने पड़ गाया
(सावधान टिकट सिर्फ साधरण डिब्बे का मिला था, इसलिए मेरी सोच भी इन साधारण लोगों के आस पास ही भटक रही है)
रेलगाड़ी ने रेलवे स्टेशन छोड़ा ही था की इन लोगों की बातें शुरु हो गयी
(1)
अम्मा एक बात बोलूं, हाँ बोल स्वामी
रेल गाड़ी से अच्छा बस होत है
काहे स्वामी....
ई ससुर अगर कहीं लड़ जात तो एक माहीना उठावे मां लाग जात
लकिन अगर बस लड्त है, जुरतये क्रेन से उड़ जात
अब स्वामी तू चुप रहबो की नहीं, नाहक काहे लडावा चाहत हो रेलगाड़ी; मोटे लाल कुछ हलके अंदाज में बोला....
इतने में ट्रेन रुक गयी....
स्वामी फिर बोला, ये ट्रेन काहे रुक गयी ?
पूराने टपाक से बोला, लग रहा है ट्रेन का टायर पंचर हो गाया....
सही कहत हो पूराने, ई ससुर जब देखो तब रुक जात है...
वैसे एक बात है पूराने, कौउन सी बात...
इस बार हमार तो पूरा पैसा वसूल है, पिछली बार दुसरकी वाली गाड़ी तो बहुत जल्दी पंहुचा दिस रहा पर अबकी तो खुब आराम से चलत है, पैसा वसूल है खुब देर तक बैठेका मिली.
ई मोटे काफी देर से चुप है....अम्मा बोली
काहे कवनो परेशानी....हमार जोन मन करी हम वही करब....
गुस्सात काहे हो, पान खाबो....अच्छा लाओ तमाखू वाला है?
जानत हो, ई पान हमरे दूकान का है, पूरा खर्चा चलावत है ई पान हमरे घर का
अम्मा लकिन पान मस्त है.....
(2)
चाय वाले का प्रवेश हुआ डिब्बे में.........
चाय, चाय गरम......दो रुपये की मस्त चाय
सब एक चम्मच चीनी डारत हैं, हम दो मजा आ गाया
सब एक कप दूध डारत हैं, हम दो मजा आ गाया
सब फूँक के चाय की पत्ती डारत हैं हम दिल से, मजा आ गाया
तब तक मोटे से रहा नहीं गाया, बोल पड़ा..................
सब एक कप पानी डारत हैं, तुम १० मजा आ गाया
सही कहत हो मोटे, ससुर ने पिछली बार मुझे पानी पिला दिय
पूराने सबको चूतिया बनाता है इसने पूराने को बना दिया...........
एक बात है पूराने, का मोटे......
चाय तो आपन घर कय ही मजेदार होत है, पूरे दूध की चाय बनत है हमरे घर
मोटे ऊ तहार भैंस बच्चा दे दिहिस का....हाँ एक माहीना होत है
लकिन अबकी किस्मत साथ ना दिहिस....काहे
बछवा बियान, बछिया होत तो दो साल बाद बेंच देतन..
तौ इसमें किस्मत का काहे कोसत, ई तहार मर्जी तो रही नहीं
(3)
कुछ देर बाद ट्रेन अगले स्टेशन पर जा कर रुक गयी. यात्री ट्रेन में चड़ने लगे जिसमें कुछ हिजड़े भी थे.
एक हिजड़ा पूराने के पास पहुँच गाया.....
अरे ये शारुख खान देता है पैसे की नहीं...ला दे दे चिकने...ला
भाग यहाँ से, मेरे पास नहीं हैं...
देता है या दिखाऊँ महाभारत......?????
अरे दे दे १० का नोट नहीं तो तू अभी गंगा नहा लेगा...मोटे बोला
ये देखो आमिर खान भी बोला, चल तू भी निकाल १० का नोट..हिजड़े नें मोटे के चेहरे पर हाथ फिराते हुए बोला.
इतने में अम्मा ने १० का नोट निकाल कर हिजड़े को थमा दिया....हिजड़ा चलता बना
ई देखो बढ़िया धंधा है....कमा लिया झट से १० का नोट..कोई काम भी नहीं करना पड़ा, स्वामी असहज होकर बोला.
हाँ तो अगली बार जब पैदा होना तो तू भी हिजड़ा बन जाना और छक्के पर छक्का मारना.
अम्मा बोली... काहे मोटे बिना वजह परेशान करत हो स्वामी का....फिर सब हंस पड़े.
लेकिन एक बात कहूँ अम्मा..क्या मोटे?
ई ससुर स्वामी जब देशी पी लेत है तो किसी हिजड़े से कम नाहीं लागत....
चुप रह मोटे अब तो हम अंग्रेजी दारू पिता हूँ, ऊ का नाम है उसका..हाँ जिसमें चिड़िया बनी है बोतल पर....ससुर किंगफिशर.
हाँ अब तो तू सही में अंग्रेजी होइए गए हो भाई.....पूराने थकी आवाज में बोला.
(4)
हिजड़े उतरे नहीं की अगले स्टेशन पर कुछ झोला छाप बिक्रेता चढ़ गए.....
लीजिये १० रुपये में १० सामान...कंपनी का प्रचार है ...मुफ्त में सामान है
१० रुपये का टोकन है ...नंबर लगा तो १०० भी बन सकता है ....मौका मत जाने दीजिये...
का हो ई का १० रुपये में १०० ...सही कहत हो या चूतिया बनावत हो...पूराने की आवाज थी
१० रुपये टोकन १०० रुपये कमाए..जल्दी करिए ..अगले स्टेशन पर डिब्बा बदल देंगे ......
का अम्मा लगा दी १० का नोट...देखा जाई जोन होई...हम नाई जानित तू देख ले अपना पूराने....
अच्छा....भाई ये लो १० का नोट और टोकन दो....
अगले पल बिक्रेता ने टोकेन थमाये...पूराने चिल्ला पड़ा १०० लगा...लपक के १०० का नोट पकड़ा और जेब में डाल लिया.
अब और लोगों से रहा ना गाया..उसमें पूराने फिर से था.
सब ने १० रूपये का टोकन लिया पर इस बार पूराने ने १०० रुपये का.
नोट थमा कर सब बिक्रेता का मुहं देखने लगे.........सबके हाथ में अब टोकन था....
का हो स्वामी तहार लाग की नहीं..और मोटे तहार..
नहीं हमरो तो नाहीं लाग..अम्मा बोली.....
पूराने तहार...ससुर अबकी तो दसो टोकन खली है
लागत है अबकी सबका खाली है....हाँ जान तो यही पडत है.
धत तेरी की लूट लिहिस हम सब का...१०० मिला रहा वहो गाया, १० अलग से...
अगले पल सब चुप मार के बैठ गए और एक दूसरे का मुहं देखने लगे.
(5)
दे दे बाबा भूखे को कुछ दे दे. जोड़ी सलामत रहे. दो दिन से कुछ खाया नहीं..दे बाबा
यार मोटे अब ये कौन सी बला आ गयी. ससुर चैन से साँस भी नहीं लेने देवत.
हाँ...ससुर जैयेसे झपकी लागत है कोई ना कोई टपक परत है.
सही कहत हो पूराने ससुर जीना हराम कर दिया है.......
साहब आपकी जेब सलामत रहे..किसी की नजर ना लगे ...दो दिन से कुछ खाया नहीं
भाग यहाँ से क्यों मेरा जान खा रह है ...किसी और को पकड़
दे दे ना १ रुपये ...इतने में का चला जाइए तहार...अम्मा बोली...
पूराने ने जेब में हाथ डाला ५० का नोट था..टूटा नहीं है मेरे पास..
कितना है साहब दे दो हम टूटा करे देत हैं...१००, ५० कितने का नोट है
ई देखो ससुर ५० का टूटा भी है इसके पास, भाई भीख तो हमको मांगनी चाहिए
हाँ पूराने ससुर के पास तुमसे जादा नोट है..टूटा भी दे रहा है तुमको
साहब गुस्सा काहे होत हो, ई सब हमरे मेहनत की कमाई है....
मेहनत की कमाई बतावत हो तुम ईका. ससुर हमरी कमाई तेरी मेहनत कैसे हुई
ठीक साहब ना देना हो तो ना दो पर उल्टा-सीधा सुनने की हमार आदत ना है
छोड़ जाने दे मुहं ना लग इनके, अम्मा बोली
अगले पल भिखारी चलता बना......
और एक बार फिर लोग एक दूसरे का मुंह देखने लगे
(6)
अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी कुछ लोग और चढ़ गए
भाई साहब थोडा जगह देना बैठने को, अगले स्टेशन पर उतर जाऊंगा
अरे कहीं और देख लो यहाँ पहले से ही चार लोग बैठे है...स्वामी बोला
लेकिन मुझे तो तीन ही दिख रहे हैं, आप तो चार बता रहे हो
हाँ गाया है ना एक पानी लेने अभी आता होगा
ठीक है जब वो आयेगा, मैं उठ जाऊंगा.......
काहे जिद करत हो कहित है ना कहीं और देख लो
ये तो हद कर दी है आप ने लगता है चारों लोगों ने मिलकर पूरी ट्रेन खरीद ली है
अब बहुत हो गाया..चलते बनो वरना....वरना क्या, क्या कर लोगे
तब तक मोटे पानी लेकर आ गाया. देखो हैं ना चार, आँख फाड़ कर देख लो...
हाँ-हाँ ठीक है, पता है तुम राजा हरिस्चंद्र की औलाद हो..यह कहकर वो चलता बना
मोटे बैठ कर पानी पिने लगा..तभी स्वामी चिल्लाया हाउ मेरी जेब कट गयी....
का कहत हो जेब कट गयी..हाँ लगता है वही आदमी ले गाया मेरी जेब
वो देख बाहर ससुर उन भिखारियों के साथ खड़ा है....
अब बुझिल हमका काहे उ भिखारी कहिस रहा
साहब आपकी जेब सलामत रहे..किसी की नजर ना लगे.....
ई रहा उ का प्लान, लई गाया तेरा जेब...कितना गवा
१०० का नोट झटक कर लई गवा.....
सत्यानास हो उनका सब लूटे मां लगे हैं..अम्मा बोली
(7)
गर्मी ने लोगों को इसकदर परेशान कर रखा था की लोग या तो ऊपर बंद पड़े पंखे को देखते या फिर पसीना पोछते...
इतने में डिब्बे में प्रवेश हुआ एक दुबले पतले आदमी का जो हाथ का पंखा बेंच रहा था.
लिजीये पंखा जो देता है हवा बिना करंट का....सिर्फ ५ बचें है, जल्दी करिए
मोटे ने उस आदमी को ऊपर से नीचे तक देखा..फिर बोला तुम भी दूसरों की तरहं ठग तो नहीं हो..?
ना बाबू ..बिलकुल टिकाऊ माल बेचता हूँ मैं..
चल तो फिर एक पंखा निकाल..कितने का है ?
बाबू २० रुपये का है
क्या बात करता है, इतना महंगा..हमारे यहाँ तो २० में दो मिल जाते
ठीक है बाबू तो आप वहीँ से ले लेना....
अरे रुक ला एक दे...मोटे ने २० का नोट थमाया
लेकिन बाबू एक बिनती है
उ का ...जब तक हम ना कही पंखा ना चलाना, मैं अभी ५ मिनट में आता हूँ तब बताऊंगा पंखा कैसे चलाना है.
क्यों ईमां कोई खाश बात है का...हाँ है ना, इतना कहके वो चला गाया
मोटे से रहा ना गाया और उसने पंखा चला दिया..इधर चलाने की देर थी की पंखा दो टुकड़ों में बट गाया
ये देखो ससुर २० रुपये का पंखा २० मिनट भी ना चला..मोटे चिल्ला पड़ा
सब उसकी तरफ देखने लगे, इतने में पंखे वाला आदमी भी आ गाया
का हुआ बाबू!!! पंखा दो हम चलाना बताते हैं
ससुर तुम बोले रहो की तुम ठग ना हो फिर ये पंखा...
हाँ बाबू पर आप पंखा चला काहे दिहो
ससुर ईमां कोई विद्या लागत है का जोन हम ना चला सकित रहा..आओ भाई तुम्ही बताओ कैसे चलावत हैं
पंखे वाले ने एक हाथ में पंखा पकड़ा फिर बोला...
ई पंखा हाथ से सीधे पकड़ो और उसके सामने मुहं को घुमाओं..दायें-बायें
हाय रे दादा..ई तो कमाल का पंखा बेंच रहा है...तुम तो सबके बाप निकले
बाबू देखो ई आप की गलती रही हमरा नाहीं..
अच्छा अब तुम भी निकल लो यहाँ से, लगता है सारे अजूबे इसी ट्रेन में आ गए हैं...पूराने बोला
ससुर आज का दिन ही खराब है, कुछ भी ठीक नहीं हो रहा है....मोटे दुःख भरी आवाज में बोला
(8)
अम्मा तोहरे बिटिया की शादी का का हुआ
हाँ..पूराने मिला है एक लड़का सोच रहीं हूँ अगले साल शादी कर दूँ बिटिया की...
लड़का करता क्या है..कुछ पता है
हाँ उन लोगों ने बोला है की लड़का टिम्बर मर्चेंट की दूकान चलाता है
तब तो बढ़िया कमाता होगा..पर दूकान में क्या है, कुर्सी, अलमारी, पलंग या सब
नाहीं पूराने ई सब ना है
तो क्या है कच्ची लकड़ी बेचता है क्या.....
ना ई सब भी ना बा
तो क्या ठेका लेता है लकड़ी का..कुछ तो पता होगा ना
ना ई सब भी नाहीं करत है
पूराने थोडा दूसरे आवाज में बोला, तो क्या हरे पेंड लगवाता है क्या....
नाहीं ये भी नहीं...अरे तो करता क्या है
वो...वो बस स्टैंड पर दातून बेचता है
ससुर..के ये बात बोले मं इतनी देर....
अब का करी पूराने इज्ज़त देखे का पडत है ना
अरे तो ई पहले देखना था अब क्या फ़ायदा ....
अम्मा चुप हो गयी और इधर-उधर देखने लगी
(9)
यार मोटे उ रामखेलावन का क्या हाल चाल है
छोड़ा पूराने, अब हमार उनसे ना पटत है...
काहे का हो गाया...
बस ऐसे ही, कोई खास बात ना बा...फिर भी
अरे उ ससुर रामखेलावन का जोन लड़का बा बहुत सेखी मारत रहा...
का हुआ...अरे कछु अंग्रेजी का जान गा है..हमेशा भाव मारत रहत है
जब देखो तब कुछ ना कुछ अंग्रेजी मां बोल कई, हंसी उडावत है..अब हमका तो इतना आवत ना
हाँ ई तो गलत है, बड़ों का ध्यान रखना था उका....पर हुआ का ?
अरे एक दिन उ कुछ अंग्रेजी मां बोलिस हमका ना बुझिल..तो हम उ से बोला..
जानित है तू बड़का अंग्रेज हो..पर जोन हम कही उका तू अंग्रेजी मां बोल कय देखाव तो मानी..
हाँ, तो का पूछे उससे..पूराने बोला
हाँ मैंने पूछा...
झपट झंझला झूम झट झाम झूम झकझोर
दांव पेंच करने लगे दोनों-दोनों ओर
ईका अंग्रेजी मां अनुवाद करो....
अरे मोटे तू तो जान मार दिहो...कुछ बोला फिर वह....
ना दुबारा ससुर नजर नहीं आवा...तबसे हमार उनके घर से थोडा अनबन है
उनके घर वाले कहत हैं की तोका हमरे लड़का से जलन है...
मारो ससुर का, जैसे को तैसा...सही कहा पूराने
(10)
मोबाइल का बुखार इस कदर लोगों में लगा की हर किसी ने इसे ख़रीदा. स्वामी से भी रहा नहीं गाया...
दीदी तेरा देवर दिवाना ...हाय राम कुड़ियों को डाले दाना.......
ये गाना कहाँ से आवत है...अरे रुका मोटे ई हमरे संचार यन्त्र की आवाज है
संचार यन्त्र......ई कौन सी बला है.......
अरे उ हमरा मोबाइल..अभी निकालत हूँ उ का झोला से..
अम्मा बोल पड़ीं, कितने का ख़रीदा...
अरे ससुर को पूरे १२०० में लिया है...मस्त चीज है
अच्छा जब खरीद ही लिया है तो अब लो एक नंबर मिलाओ हमरे घर
कोई जरुरी बात है तो बोलो..ससुर मां अभी खाली ५ मिनट बचा है
हाँ..मिलाओ जरुरी है...पर अम्मा देख लो खाली ५ मिनट है
मिला ना...लो फिर मिलाता हूँ ....
हलू कौन बोलत हो, हम अम्मा बोल रही हूँ.......
अरे अम्मा हाँ का हाल है, आप आश्रम कब आयीं
....हाँ हम स्वामी के मोबाइल से बोल रही हूँ.....?
स्वामी के मोबाइल से!!!...जय हो स्वामी जी...
तो आपकी नित्यानंद स्वामी जी से कब मुलाकात हुई...
आज कल तो हमारी उनको कोई याद भी नहीं आती...आप ही लोगों में लीन रहते हैं
अरे उ स्वामी नाहीं...स्वामी...गाँव वाला
का अम्मा यंत्र हमका दो...हम बात करीत है
हाँ..आप कौन...स्वामी ने पुछा
हाँ, अच्छा..नमस्कार..इतने में मोबाइल कट गाया
देखा..बोलेन रहा ५ मिनट बचा है....जब बात करेक नाहीं आवत तो काहे हमेशा...????
गलत नंबर मिल गवा रहा का..अम्मा बोली
स्वामी...हाँ, कोई आश्रम का नंबर था....
सब तेरे नाम के कारण हुआ है, ना तेरा नाम स्वामी होता ना देर तक बात होती
अब तो सारी गलती हमरे नाम की ही है....स्वामी झल्ला कर बोला
तारीख 10 मई 2010
3 comments:
10 May 2010 at 20:06
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे श्री तेज प्रताप सिंह
जी का इस बेहतरीन रचना के साथ स्वागत है.
11 May 2010 at 06:46
स्वामी के साथ ट्रेन का सफ़र रोचक रहा ...!!
11 May 2010 at 10:55
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