वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री दीपक 'मशाल'

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री दीपक मशाल की रचना पढिये.

लेखक परिचय
नाम : दीपक चौरसिया 'मशाल'
माता- श्रीमति विजयलक्ष्मी
पिता- श्री लोकेश कुमार चौरसिया
जन्म- २४ सितम्बर १९८०, उरई(उत्तर प्रदेश)
प्रारंभिक शिक्षा- कोंच(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- जैवप्रौद्योगिकी में परास्नातक, पी एच डी(शोधार्थी)
संस्थान- क्वीन'स विश्वविद्यालय, बेलफास्ट, उत्तरी आयरलैण्ड, संयुक्त गणराज्य

१४ वर्ष की आयु से साहित्य रचना प्रारंभ की, प्रारंभ में सिर्फ लघु कथाओं, व्यंग्य एवं निबंध लिखने का प्रयास किया। कुछ अभिन्न मित्रों से प्रेरित और प्रोत्साहित होके धीरे-धीरे कविता, ग़ज़ल, एकांकी, कहानियां लिखनी प्रारंभ कीं. अब तक देश व क्षेत्र की कुछ ख्यातिलब्ध पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में कहानी, कविता, ग़ज़ल, लघुकथा का प्रकाशन, रचनाकार एवं शब्दकार में कुछ ग़ज़ल एवं कविताओं को स्थान मिला. श्रोताओं की तालियाँ, प्रेम एवं आशीर्वचनरूपी सम्मान व पुरस्कार प्राप्त किया.

हाल ही में प्रथम काव्य संग्रह 'अनुभूतियाँ' का शिवना प्रकाशन सीहोर से प्रकाशन.
रुचियाँ- साहित्य के अलावा चित्रकारी, अभिनय, पाककला, समीक्षा, निर्देशन, संगीत सुनने में खास रूचि।
ब्लॉग- मसि कागद(http://swarnimpal.blogspot.com)
email: mashal.com@gmail.com
संपर्क- +४४ ७५१५४७४९०९



भारतरत्न पर हंगामा काहे का बन्धु??

जैसा कि दुनिया की आदत है हर बात पर दो खेमों में बँट जाने की और अपने खेमे को ही सच्चा-सच्चा चिल्लाने की, उसी आदत के चलते आजकल एक मांग जोर पकडती जा रही है और वो है सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की. पहले ये स्पष्ट कर दूँ कि ना तो मैं इस बात के समर्थन में और ना ही विरोध में कि सचिन को भारत रत्न मिले.

सुना है ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे तथाकथित 'खेलविशेषज्ञ' ने भी संसद में मांग उठाई है कि जल्दी से जल्दी ये इनाम सचिन को दिया जाये. जिससे की कल सचिन भी ताउम्र सिंधिया का अहसान मानें और जब वो पुकारे तब ग्वालिअर दौड़े चले आयें.

समझ में नहीं आता कि इस इतने महत्त्वपूर्ण सम्मान देने के लिए लोग इतने उतावले क्यों रहते हैं कि जल्दी जल्दी दे के निपटा दिया जाये. कहना नहीं होगा कि इसी जल्दबाजी के कारण पहले की सरकारों ने जाने कितने कच्चे हाथों में ये पुरस्कार दे दिया या कहें की गिफ्ट समझ कर बाँट दिया. ऐसा नहीं की सचिन इस पुरस्कार के बिलकुल भी योग्य नहीं लेकिन हाँ एक सच ये भी है कि सचिन अभी भी भारत रत्न बनने की प्रक्रिया में ही हैं ना कि भारतरत्न बनने लायक हो गए. वो एक महान खिलाडी हैं और कई खिलाडियों के आदर्श भी, लेकिन क्या ये सच नहीं कि अभी तक सचिन ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे कि आम जनता को फ़ायदा पहुंचे? हाँ कोई शक नहीं कि सचिन से बेहतर आज तक किसी अन्य क्रिकेटर ने क्रिकेट को नहीं बेंचा या फ़ायदा पहुँचाया.. उनकी वजह से दर्शक बढ़े और दर्शकों की वजह से प्रायोजक और प्रायोजकों की वजह से क्रिकेट, BCCI और सरकार को मुनाफा पहुंचा. लेकिन क्या बेचने के खेल में शाहरुख़, अमिताभ और आमिर माहिर नहीं, जिन्होंने My name is Khan और 3 Idiots जैसी साधारण कहानी वाली फ़िल्में इतनी बड़ी बना कर बेंचीं? तो क्या उन्हें भी भारत रत्न दे देना चाहिए?

भारत रत्न बनने के लिए सिर्फ एक बेहतरीन खिलाडी होना ही पर्याप्त नहीं बल्कि एक ऐसा खिलाडी होना जरूरी है जिसके पास अपना एक अलग ही दृष्टिकोण हो, जिससे वो उस खेल को पहले से कहीं अधिक और कई गुना लोकप्रिय बना दे. उसका ना सिर्फ अपने रिकॉर्ड बनाने में बल्कि उस खेल के सर्वांगीण विकास में योगदान हो, वो खेल को एक नई दिशा ही नहीं दे सके बल्कि लोगों के मन में उसके लिए एक जुनून पैदा कर दे. क्या सचिन ने कभी कोई ऐसा प्रयास किया है कि जिससे भारत में कुछ और सचिन पैदा हो सकें? क्या उन्होंने अभी तक किसी ऐसे प्रतिभावान खिलाडी को गोद लिया जो बेहतरीन खिलाडी तो बन सकता हो मगर इस सब का खर्चा वहन करने में अक्षम हो? क्या उन्होंने कभी गली मोहल्लों या छोटे गाँवों( छोटे गाँव इसलिए क्योंकि आजकल छोटे शहर का मतलब लखनऊ, इलाहबाद, रांची, पटना, पुणे और भोपाल जैसे ३०-४० लाख की आवादी वाले शहर हो गया है, जहाँ पहले से ही कोई ना कोई क्रिकेट अकादमी है) में किसी प्रतिभा को तलाशने में मदद की या उनका कोई ऐसा मंसूबा है? आज भी हमारा देश खेलों के प्रति उतना ही उदासीन है जितना कि सचिन के आने से पहले हुआ करता था, हम एक स्पोर्टिंग नेशन के रूप मे नहीं जाने जाते है. हमें आज भी ओलंपिक्स जैसी स्पर्धाओं मे एक पदक लेने के लाले पड़े रहते है? क्या तेंदुलकर ने ऐसा कुछ किया है की जिससे हमारी खेल के प्रति धारणा बदली है? क्या हमारी सालों पुरानी ये सोच बदली है कि 'पढ़ोगे, लिखोगे बनोगे नवाब.. खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब'? क्या अब ज्यादातर बच्चे मैदानों में क्रिकेट या अन्य कोई खेल खेलते आसानी से मिल जाते है? क्या पता कल को सचिन भी रिटायरमेंट के बाद अपने समय के अन्य खिलाड़ियों की मानिंद कमेंटेटर बन कर आराम से अपनी जिंदगी बिता रहे होंगे. फिर अभी तो ये भी तय नहीं कि कल को टेस्ट मैच और एकदिवसीय मैचों का कौन सा स्वरुप जीवित रहेगा? लेकिन हाँ फिर भी मैं यही कहूँगा कि अगर भविष्य में सचिन ऐसी कोई संस्था बनाते हैं जो नई प्रतिभाएं देश के सामने लाने में मदद कर सके तो निश्चय ही वो भारत रत्न बनेंगे.

आज भी भारत में ऐसी अनेकों प्रतिभाएं हैं जो वास्तव में भारत रत्न हैं मगर अब तक या तो वो दुनिया से जा चुकी हैं या उम्र के आखिरी पड़ाव में हैं. क्या मुंबई स्थित भाभा नाभिकीय अनुसंधान संस्थान(BARC) के संस्थापक डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा को ये सम्मान नहीं मिलना चाहिए था? ये बताने की जरूरत नहीं कि BARC ने देश को कितनी प्रतिभाएं दीं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान(ISRO) के संस्थापक श्री विक्रम साराभाई का योगदान किस तरह से कमतर आँका गया? क्या किरन बेदी ने समाज और देश को कम योगदान दिया है? क्या धर्मवीर भारती भारत रत्न नहीं? क्या जो नाम बाज़ार में बेचे नहीं जा सकते वो भारत रत्न लायक नहीं थे या नहीं हैं? ऐसे तो फिर कल को अमिताभ बच्चन और परसों शाहरुख़ खान के नाम सामने आयेंगे. क्या क्रिकेट और बोलीवुड सिर्फ ये दो नाम ही भारत में शेष बचे हैं? कहीं ऐसा ना हो कि ये क्रिकेट और बोलीवुड की अंधभक्ति हमें कहीं का ना छोड़े.

अब एक नज़र भारत रत्न सम्मान के सम्मान पर... आपने श्री भगवान दास, महर्षी डॉ. धोंडो केशव कर्वे, बिधन चन्द्र रॉय, डॉ. पांडुरंग वामन काणे का नाम तो सुना ही होगा. अगर नहीं सुना तो हैरान ना हों ये जानकर कि ये हमारे भारत रत्न हैं.. अगर आज आप इनके नाम नहीं जानते तो क्या ये सरकार की जिम्मेवारी नहीं कि इनके बारे में लोगों को बताया जाये? अगर हम अपने भारत रत्नों के बारे में ही नहीं जानेंगे तो और क्या जानेंगे और किन पर गर्व करेंगे?

मुझे तो डर है कि कहीं कल को भारत रत्न भी पद्म विभूषण, पद्म भूषन और पद्म श्री की तरह आलोचना का शिकार ना हो जाएँ. इसलिए सरकार से निवेदन है कि भारत रत्न का सम्मान बचाएं और किसी नाम को इस सम्मान पर हावी ना होने दें.

दीपक 'मशाल'

तारी 12 मई 2010

11 comments:

  Udan Tashtari

12 May 2010 at 05:18

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री दीपक मशाल का बहुत स्वागत पुनः...इस बेहतरीन और मजेदार आलेख के साथ.

  Udan Tashtari

12 May 2010 at 05:46

विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

  स्वप्न मञ्जूषा

12 May 2010 at 06:45

Dipak, har haal mein is samman ke yogy hai, use dekh kar bahut khushi hui..
badhai..
..didi

  श्यामल सुमन

12 May 2010 at 07:30

इस बिशिष्ट सम्मान के साथ रोचक पोस्ट दीपक जी - बधाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

  विनोद कुमार पांडेय

12 May 2010 at 07:41

सही बात कही आपने जो हकदार है उसे मिलेगा पर उसमें जल्दबाज़ी या किसी राजनीतिज्ञ विशेष के हस्तक्षेप से मामला खराब हो जाता है....वैसे सचिन भारत रत्न के हक़दार तो है पर किसी के कहने से भारतरत्न का बटवारा सही नही..बढ़िया प्रसंग..बधाई

  राम त्यागी

12 May 2010 at 08:46

स्वागत है दीपक जी आपका यहाँ,
अरे ताऊ एक लेख हमारा भी पेंडिंग है अभी ...

  ब्लॉ.ललित शर्मा

12 May 2010 at 09:19

स्वागत है दीपक भाई
अच्छी पोस्ट

  डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

12 May 2010 at 09:50

सुन्दर रचना है!
दीपक मशाल जी को बधाई!

  shikha varshney

12 May 2010 at 14:56

badhiya rachna .shubhkamnaye.

  sonal

12 May 2010 at 14:59

रोचक पोस्ट

  संजय कुमार चौरसिया

17 May 2010 at 17:44

dear dipakji ko
hardik badhai evam subh-kamnayen

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