वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : श्री श्यामल सुमन

प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री श्यामल सुमन की रचना पढिये.

लेखक परिचय :-
नाम : श्यामल किशोर झा
लेखकीय नाम : श्यामल सुमन
जन्म तिथि: 10.01.1960
जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार
शिक्षा : स्नातक, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी
तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा
सम्प्रति : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर
साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।
अंतरजाल पत्रिका "अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, आदि में अनेक रचनाएँ प्रकाशित।
गीत ग़ज़ल संकलन प्रेस में प्रकाशनार्थ
रुचि के विषय : नैतिक मानवीय मूल्य एवं सम्वेदना

दर्शन दूरदर्शन का

आदिकाल से रही है परिवार के लिए बीबी की जरूरी,
लेकिन आजकल हर घर में है टी०वी० की मजबूरी।

टी०वी० के कई चैनल होते हैं,
और उन चैनलों के अलग अलग पैनल भी होते हैं।
एक ओर योग द्वारा रोग-मुक्ति के उपाय सुझाये जाते हैं,
तो दूसरी ओर सिगरेट और शराब के विज्ञापन दिखाये जाते हैं।

बात समझ में आये, यह जरूरी नहीं,
पर अंग्रेजी चैनल देखना अनिवार्य है,
वर्तमान भारत में शान से जीने के लिए,
अंग्रेजियत की छाप भी तो अपरिहार्य है।

दो वक्त की रोटी भी जिसे नहीं मिलती,
उसकी संख्या सत्तर प्रतिशत के लगभग है,
पर अमूल वाले अपने विज्ञापन में समझाते हैं कि,
असली मक्खन के स्वाद पे सभी का हक है।

हजारों पूल और मकान बनते ही गिर जाते हैं,
बेवजह कई लोग मर जाते हैं,
सरकारी पक्ष बिठाते हैं जाँच आयोग,
रिपोर्ट आने पर विपक्षी कहते, गलत है अभियोग,
लेकिन असली कारण से सब अनजान है,
जबकि बिड़ला वाले रोज समझाते हैं कि इस सीमेंट में जान है।

कहीं सिनेमा तो कहीं सिर्फ गाना सुनाया जाता है,
कहीं रिमिक्स के नाम पर,
अत्यन्त छोटा और पारदर्शी कपड़ा पहनाया जाता है।
कई चैनलों में सबेरे सबेरे सुनायी पड़ती है संतों की वाणी,
तो किसी के कैमरे में कैद है,
उन्हीं संतों के काले कारनामे की कहानी।

सेविंग ब्लेड से लेकर ट्रेक्टर के टायर तक,
नारी देह का खुला प्रदर्शन होता है,
"यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते" का प्राचीन सिद्धान्त,
अपने आप पे रोता है।

एक तरफ दिखलाया जाता है महिलाओं का शोषण,
तो दूसरी ओर चलता है महिला-मुक्ति का आन्दोलन,
और महिला-मुक्ति आन्दोलन का समाज पे इतना प्रभाव है,
कि जन्म से पहले ही "मुक्ति" का प्रस्ताव है।

कहीं "आस्था" कहीं "साधना" तो कहीं "संस्कार" है,
कई चैनलों में तो सिर्फ समाचार ही समाचार है,
जिसका कैमरा सिर्फ चंद लोगों के इर्द गिर्द घूमता,
क्योंकि आम जनता से उसे क्या सरोकार है?
अपराधी-ब्रांड नेता की जब होती है जेल-यात्रा,
तो समाचार वाले, लाइव कवरेज करके,
बना देते इसको शोभा-यात्रा।

कुत्ता जब आदमी को काटता है,
तो क्या यह 'समाचार' बन पाता है?
अगर आदमी कुत्ता को काट खाये,
तो तत्काल यह सुर्खियों के समाचार बन जाये।

एक दिन गजब हुआ,
एक पागल कुत्ता ने,
एक महत्वपूर्ण दल के महत्वपूर्ण नेता को काटा,
न्यूज चैनल वालों ने इसे,
तत्काल हाट केक की तरह बाँटा।
एक चैनल नेताजी के घाव तथा
इलाज का लाइव टेलिकास्ट दिखा रहा था,
तो दूसरा उस कुत्ता के नस्ल और
इतिहास का पता लगा रहा था।
सब अपने आप में इतना व्यस्त थे कि
मानो पूरा का पूरा देश ठहर गया,
पर सच मानिये जनाब, एक घंटे बाद,
नेता मुस्कुरा रहा था और कुत्ता मर गया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने€ की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com


तारी 17 मई 2010

5 comments:

  Udan Tashtari

17 May 2010 at 06:13

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री श्यामल सुमन जी का स्वागत है. बहुत उम्दा रचना के लिए बधाई.

  विनोद कुमार पांडेय

17 May 2010 at 07:07

टेलिविज़न और डिश व्यवस्था की तो आपने पोल खोल दी....बहुत खूब मजेदार रचना..बधाई श्यामल जी

  डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

17 May 2010 at 07:09

"वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : श्री श्यामल सुमन" जी की रचना बहुत सुन्दर है!
बधाई!

  ब्लॉ.ललित शर्मा

17 May 2010 at 07:40

बहुत बढिया व्यंग्य

श्यामल सुमन जी को दिली मुबारकबाद

  वाणी गीत

17 May 2010 at 18:23

वर्तमान भारत में शान से जीने के लिए,
अंग्रेजियत की छाप भी तो अपरिहार्य है...

सही है

हिला-मुक्ति आन्दोलन का समाज पे इतना प्रभाव है,
कि जन्म से पहले ही "मुक्ति" का प्रस्ताव है,,,

मार्मिक मगर सत्य

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