प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री श्यामल सुमन की रचना पढिये.
लेखक परिचय :-
नाम : श्यामल किशोर झा
लेखकीय नाम : श्यामल सुमन
जन्म तिथि: 10.01.1960
जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार
शिक्षा : स्नातक, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी
तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा
सम्प्रति : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर
साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।
अंतरजाल पत्रिका "अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, आदि में अनेक रचनाएँ प्रकाशित।
गीत ग़ज़ल संकलन प्रेस में प्रकाशनार्थ
रुचि के विषय : नैतिक मानवीय मूल्य एवं सम्वेदना
तलाश (हास्य-व्यंग्य)
जब भी कोई नयी कविता बनाता हूँ,
खुशी से आत्म-मुग्ध हो जाता हूँ,
अगर कोई सुनने वाला नहीं मिलता,
तो अपने आप गुनगुनाता हूँ।
हजारों पत्नियाँ पतिव्रता होतीं हैं,
लेकिन मैं पत्नीव्रत पति के रूप में प्रसिद्ध हूँ,
घर, कपड़े की सफाई से लेकर,
चूल्हा-चौका के कार्यों में सिद्ध हूँ।
मेरे मित्र और परिचित अक्सर मेरा मजाक उड़ाते हैं,
समय, बेसमय तरह तरह के उपनाम से मुझे चिढ़ाते हैं,
मैं बिना प्रतिवाद के सब सुन लेता हूँ,
बदले में उन नासमझों को एक फीकी मुस्कान भर देता हूँ।
मेरी विवशता कुछ खास है,
पत्नी को काम के बोझ से मुक्त कराने का एक छोटा प्रयास है,
ताकि वो आसानी से मेरी कविता सुन सके,
क्योंकि मुझे एक अदद श्रोता की तलाश है।
लगातार कविता सुनते सुनते पत्नी हो गयी तंग,
पलक झपकते ही दिखलाया उसने अपना असली रंग,
बोली-हे कविरूपधारी पतिदेव,
मैं तो आपके चरणों की दासी हूँ,
सात जन्मों तक साथ निभाऊँ,
इसी आस की प्यासी हूँ।
वादा करती हूँ स्वामी, आप जैसा कहेंगे वैसा ही करूँगी,
पर एक विनती है प्राणनाथ,
भबिष्य में आपकी कविता नहीं सुनूँगी।
टूट गयी मेरी सब आशा,
पत्नी ने दी घोर निराशा,
कई बार सुन चुका हूँ, भगवान के घर में देर है,
पर वहाँ हमेशा के लिए नहीं अंधेर है।
रात के बारह बजे मेरी एक कविता पूरी हुई,
बेरहम समय के कारण प्रिय श्रोताओं से दूरी हुई,
हिम्मत करके खोला गेट,
बाहर मिला एक भिखारी ग्रजुएट,
मन हुआ आर्कमिडीज की तरह यूरेका यूरेका चिल्लाऊँ,
तुरन्त खयाल आया,
क्यों न आज इसी भिखारी को चाय पिलाऊँ,
भिखारी चाय पीने को हुआ तैयार,
मेरे मन में उपजा प्यार,
मैंने झटपट चाय चढ़ायी,
और तरातर उसे चार कविता सुनायी,
पाँचवीं की जब बारी आयी,
भिखारी लेने लगा जोर की जम्हाई,
यह परमानेन्ट श्रोता बन सकता है,
सोचकर मेरे मन का सुमन खिला,
पर हाय री मेरी किस्मत,
उस दिन से आज तक मुझे वह भिखारी नहीं मिला।
हारना मुझे नहीं स्वीकार,
फिर से मैंने किया विचार,
अपने जैसे बेचैन आत्माओं का बनाया लेखक संघ,
कुछ ही दिनों में सबने बदल लिया अपना ढ़ंग,
यूँ तो पढ़े लिखे लोगों ने समाज को बहुत कुछ दिया है,
पर चालाकी से उसी ने समाज का बहुत नुकसान भी किया है,
ठीक उसी प्रकार के चालाक कवि,
अपनी अपनी कविता सुनाकर सभागार से बाहर जाने लगे,
मेरे जैसे कुछ बुद्धू कविगण,
वाह वाह की तेज नाखूनों से एक दूसरे की पीठ खुजाने लगे।
वैसे भी आजादी के बाद से अबतक,
शेयर बाजार के सूचकांक की तरह,
श्रोताओं में भारी गिरावट और वक्ताओं में उछाल दर्ज है,
फिर बेरोजगारों की इस भारी भीड़ को,
श्रोता बना लेने में क्या हर्ज है,
नेता से लेकर अभिनेता तक सभी यही नुस्खा अपनाते हैं,
इसी बहाने, सीजनल ही सही,
बेरोजगारों को रोजगार तो मिल जाते हैं,
अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से,
भाड़े में श्रोता जुगाड़ कर लिया जाता है,
यह कैसी व्यवस्था की बेबसी है कि,
आदमी को श्रोता से सामान बना दिया जाता है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
8 comments:
7 May 2010 at 17:44
हाय रे कवि और उसकी कविता...शानदार रचना.
7 May 2010 at 18:33
सभी को नमस्कार। आज दो महिने बाद राजस्थान से लौटी हूँ यहाँ का तो रंग ही बदल गया। बहुत अच्छा लग रहा है देख क। मै हिस्सा नही ले पाई बस यही अफ़सोस है। आप सभी को बहुत-बहुत बधाई वैशाखनंदन सम्मान परतियोगिता की।
7 May 2010 at 18:48
शानदार रचना...
7 May 2010 at 22:58
बहुत खूब..मजेदार रचना बधाई श्यामल जी
8 May 2010 at 06:27
आदमी श्रोता का सम्मान नहीं मूक दर्शक बना दिया जाता है ...
अच्छी व्यंग्य कविता ...!!
8 May 2010 at 06:41
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे श्री श्यामल सुमन जी का पुनः स्वागत है एवं इस बेहतरीन रचना के लिए बहुत बधाई.
8 May 2010 at 12:39
बहुत खूब..मजेदार रचना बधाई श्यामल जी
8 May 2010 at 20:54
जिस विधा के विलक्षण लेखक हैं,उस प्रकार आप को अब तक सही पटल नही मिला,नही आप मे एक कवि के जितने भी गुण होनै चाहिये ुस से कही ज्यादा गुणी है..रचनायै तो अपने आप मे इस बात का प्रमाण है..इस से सब कोइ सहमत होगा .सुन्दर सजीव सार्थक सटीक सामायिक रचनाओ के रचना कार को मेरा नमन...उत्तम
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