प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री ललित शर्मा की रचना पढिये.
लेखक का परिचय :-
नाम-ललित शर्मा
शिक्षा- स्नातकोत्तर उपाधि
उम्र- 41 वर्ष
व्यवसाय- शिक्षाविद,लेखन, अध्यन,
आरंभ--पत्रकारिता से
शौक-शुटिंग (रायफ़ल एव पिस्टल), पेंटिंग(वाटर कलर, आईल, एक्रेलिक कलर, वैक्स इत्यादि से,)
भ्रमण, देशाटन लगभग सम्पुर्ण भारत का (लेह लद्दाख को छोड़ कर)
स्थान-अभनपुर जिला रायपुर (छ.ग.) पिन-493661
कुत्ते और मानव का साथ बहुत पुराना है शायद जब से मानव ने जानवरों से याराना करना सीखा है तब से। लेकिन मानव का अन्य पशुओं के अलावा कुत्ते से अधिक याराना है,यह सब जानते हैं। कुत्तों के प्रकार और नस्लें भी बहुत सारी हैं। कोई कबरा कुत्ता है तो कोई भुरा, कोई काला कुत्ता है तो कोई गबरीला छैल छबीला,कोई पालतु कुत्ता है तो कोई गली का आवारा, जो सबकी हंडी में मुंह मारता हुआ घुमता हैं। कोई छोटा कुत्ता है तो कोई बड़ा। कोई गाली वाला कुत्ता है तो कोई खुजली वाला, तो कोई उल्टी दूम का कुत्ता है तो कोई डी ओ जी साहब हैं जिसे मेम साहब गोदी में बिठाकर उसका मुंह चुमती है और कोई उनके सामने खड़े हो कर कुत्ते की किस्मत पर ईर्ष्या कर रहा होता हैं। आजकल तो लोग कुत्ते भी खानदान देखकर खरीदते हैं, उसकी पुरी वंशावली देखते हैं कि इसका बाप दादा कौन था और माँ नानी कहां से आई थी। जब इसका प्रमाण पत्र मिल जाता है तो तब वे संतुष्ट होते हैं कि यह कुत्ता उनकी मेम साहब के लायक हैं। लेकिन खानदानी होने के बाद भी कुत्ता तो कुत्ता ही है।
धर्मेंद्र का एक डॉयलॉग बहुत प्रसिद्ध हुआ "कुत्ते कमीने तेरा खु्न पी जाउंगा"। जब यह फ़िल्म कुत्तों ने देखी तो उनकी युनियन की आपात कालीन बैठक हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि जहां पर भी इस फ़िल्म का पोस्टर लगेगा वहां पर कुत्तों की युनियन के सदस्य बिना देरी किए टांग उठाकर मुतेंगे। उनका यह सत्याग्रह जब तक फ़िल्म सिनेमा घरों से नही उतर गयी तब तक चलता रहा, इस फ़िल्म के पोस्टरों को कुत्तों ने मुत्रालय बना कर धर दिया। अभी भी देखा जाता है कि कुछ कुत्ते तो किसी भी फ़िल्म का पोस्टर लगे उस पर मुत्र विसर्जन बिला नागा कर रहे हैं क्योंकि उन्हे युनियन का फ़र्मान नही आया है कि वह फ़िल्म उतर चुकी है। वे अभी तक नित नेम से पोस्टरों को गीला कर रहे है इसे कहते हैं सामाजिकता और एकता, जो इन कुत्तों में दिखाई दी।
एक कहावत है कि कुत्ते की पुंछ 12 बरस नली में रखने के बाद टेढ़ी की टेढी मिलती है। सीधी नही होती हैं। इसका कारण ढुंढ्ते शहस्त्राब्दियाँ बीत गयी कि कुत्ते की पुंछ टेढी क्यों होती है? लेकिन लोग नही जान पाए। कुछ लोगों को अपने कुत्ते का रुप पसंद नही आया तो उन्होने इसकी पुंछ सीधी करने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नही मिलने पर कुत्ते की पुंछ ही काट कर उसे बंडु कुकुर बना डाला। अब कटी हुई पुंछ भी उपर तरफ़ रहती हैं। नीचे नही हुई ये बंडु कुत्ते की जीवटता की पहचान रही। पुंछ कट गयी लेकिन मुहावरे को सच करने के लिए पुंछ नही झुकने दी। अपनी कौम के प्रति कितने प्रतिबद्ध और अपने वचन के प्रति कितने कटिबद्ध कुत्ते हैं कि किसी भी समझदार शास्त्रज्ञ को इनसे इर्ष्या हो सकती है कि काश हम भी कुत्ते होते? तो वचन के पक्के होते। यारों के यार होते। वाह रे किस्मत कुत्ते भी ना हुए।
अब सवाल यह उठता है कि कुत्ते की पुंछ टेढी क्यों हैं? इसका जवाब कुछ इस तरह से मिला........कुत्ता थोड़े से भी पुचकारने और दाने पानी से किसी का भी मित्र बन जाता हैं। जब मित्र बन जाता है तो लोग उस पर विश्वास भी करने लगते हैं। एक बार कुत्ता कुछ ॠषि मुनियों के साथ स्वर्ग चला गया। उस समय इसकी पुंछ सीधी थी। ॠषि मुनियों का कार्य ही यज्ञ संध्या करना है। उन्होने स्वर्ग में भी देवताओं के निमन्त्रण पर यज्ञ का आयोजन किया, यज्ञ कार्य में कुछ विलंब था इस लिए यज्ञ पात्रों की रक्षा के लिए कुत्ते को तैनात कर दिया गया। अब कुत्ता घी के पात्र की चौकिदारी में तैनात हो गया। यज्ञ कर्ता सब कार्यों में व्यस्त थे। घी को देख कर कुत्ते को लालच आ रहा था। उसने पहले इधर उधर देखा, जब कोई नही दिखा तो उसने धीरे से अपना अगला पैर यज्ञ पात्र में डुबोया और चाट लिया। फ़िर दुसरा पैर डुबोया उसे भी चाट लिया। इस तरह उसने यह प्रकिया चारों पैरों से अपनाई। घी चाटने के आनंद में लगा रहा।
अब लालच बढ चुका था और हिम्मत भी आ चुकी थी कोई देख भी नही पाया और घी चाटने का मजा ले लिया। यज्ञ कुंड के पास जलनेति करने का लोटा भी रखा था। उसमें ढक्कन लगा था। कुत्ते ने सोचा कि इसमें भी सुंगंधित घी है इसका भी मजा लिया जाए। उसने लोटे की नलकी में अपनी पुंछ घुसेड़ दी। जब पुंछ वापस नि्कालने लगा तो उसमें फ़ंस चुकी थी। जैसे ही पुंछ निकालने के लिए झटका दिया तो लोटा गिरने की आवाज आई, और वह भौंकने लगा, सभी का ध्यान उस ओर आकृष्ट हुआ। कुत्ते की चोरी पकड़ी गयी। उसने अपराध किया था, ॠषियों उसे श्राप दे दिया कि तुमने घी के पात्र को झुठा करके अपवित्र किया है इसलिए तुम्हारी पुंछ टेढी रहेगी, जिससे इस दु्ष्कृत्य की तुम्हे हमेंशा याद आती रहेगी। इस प्रकार कुत्ते की पुंछ आज तक टेढी है जो सीधी नही हुई है।
इस तरह के इंसान भी हमारे बीच हैं जिन्होने कुत्तों की फ़ितरत पाई हैं। उन्हे कितना भी समझा लो समझते ही नही हैं थोड़े से लालच के लिए अपनी पुंछ दांव पर लगा देते हैं, फ़िर कुत्ते की गालियों से नवाजे जाते हैं। जब कुत्ते की फ़ितरत पा ही ली है तो कुत्तई करने से बाज नही आते, कहीं ना कहीं अपनी पुंछ घुसेड़ते रहते हैं, बाद में पुंछ कटने पर ही पता चलता है कि अब तो बड़ी हानि हो गयी। जब पुंछ कट गयी, तो हो गए बंडु कुत्ते और रह गए कुत्ते के कुत्ते........ईति!
ललित शर्मा
अभनपुर जिला रायपुर छत्तीसगढ
493 661
11 comments:
24 May 2010 at 06:22
ललित जी अच्छा है.
कुत्ते की पुछ की विशेषता और उसके प्रति कुत्ते का समर्पण :)
24 May 2010 at 07:12
हा हा!! इस मनेदार रचना के साथ वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री ललित शर्मा जी फौजी महाराज का स्वागत है.
24 May 2010 at 07:25
...छा गये ललित भाई!!!!
24 May 2010 at 07:51
प्रतियोगिता में कैसे, ललित शर्मा जी को दिल्लीवाले ब्लॉगरों के दिल में मौजूद हैं और दिल्ली में भी। देखिएगा कल की इंटरनेशनल दिल्ली हिन्दी ब्लॉगर मिलन के चित्र, चर्चा तथा देश के विभिन्न अंचलों में प्रकाशित समाचार।
24 May 2010 at 11:13
बहुत बढ़िया प्रसंग...टेढ़ी पूँछ का राज़ अब पता चला
25 May 2010 at 07:30
ओह ! हमें तो आज पता चला कुत्ते की पूंछ टेढ़ी क्यों होती है !!
24 April 2011 at 18:18
अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
4 January 2012 at 19:06
रोचक प्रसंग... हमें भी आज ही पता चला कुत्ते की पूंछ टेढ़ी क्यों होती है... महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...
17 March 2012 at 22:31
kyaaaaa bat hai bahot khoob
17 March 2012 at 22:32
bahot khhoob
17 March 2012 at 22:32
acha hai
Post a Comment