प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
सभी प्रतिभागियों का वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये हार्दिक आभार. इस प्रतियोगिता में सभी पाठकों का भी अपार स्नेह और सहयोग मिला, बहुत आभार आपका.
कुछ मित्रों की इंक्वायरी उनके शेष बचे आलेखों के बारे में आती रहती हैं. उनसे निवेदन है कि उनकी शेष रचनाएं क्रमश: प्रकाशित होंगी. अगर कोई रचना किसी त्रुटीवश नही मिल रही होगी तो आपसे इमेल द्वारा संपर्क किया जायेगा.
अब इस पोस्ट में पढिये सुश्री पवित्रा अग्रवाल की रचना
लेखिका परिचय
नाम - पवित्रा अग्रवाल
जन्म- कासगंज, उ.प्र.
शिक्षा - एम.ए. हिन्दी, समाजशास्त्र ,बी एड ( आगरा विश्वविद्यालय )
मुख्य विधा - कहानी,बाल कहानी,लघु कथा आदि
प्रकाशन - नीहारिका,साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कादम्बिनी,उत्तरप्रदेश,राष्ट्रधर्म कथादेश,हंस,सरिता ,गृहशोभा,मनोरमा आदि में प्रकाशित ।कई कहानियाँ पुरस्कृत, आकाशवाणी व दूरदर्शन से रचनाएँ प्रसारित ।
बाल कहानियाँ-- पराग,चंपक,बालहंस,बालभारती,बच्चों का देश, बाल वाटिका,देवपुत्र,राष्ट्रघर्म आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित।
पुस्तक- "पहला कदम' (कहानी संग्रह )१९९७,उजाले दूर नहीं (कहानी संग्रह )प्रेस में
पुरस्कार- कहानी संग्रह पर
१९९८ में "यमुना बाई हिन्दी लेखक पुरस्कार'
२००० में""साहित्य गरिमा पुरस्कार'
सम्पर्क सूत्र - घरोंदा
४-७-१२६ ,इसामियां बाजार
हैदराबाद-५०००२७
फोन न० ०४०-२४६५६९७६ , ०९३९३३८५४४७ ,
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किसी से न कहना वर्ना..
उन दिनों हम नए-नए थानेदार बने थे। हमारे पिता श्री ने हमारा नाम बड़ा रोबीला चुन कर रखा था- ठाकुर भीष्म सिंह। उस पर हमारा लंबा-चौड़ा भीमकाय शरीर, चेहरे पर तनी लंबी, नुकीली घनी मूछें, कोयले-सा काला रंग और बड़ी मोटी-मोटी आँखें, साथ ही धमाकेदार आवाज। जल्दी ही अपने क्षेत्र में हम 'टाइगर' नाम से पहचाने जाने लगे थे।
सच मानिए, कभी स्वप्न में भी टाइगर के दर्शन हो जाएँ तो हमारा बुरा हाल हो जाता है।पिंडलियाँ काँपने लगती हैं, पैर जवाब दे जाते हैं। इस बात का पता तो हमें तब चला, जब एक बार हम मीठी नींद में सो रहे थे तो हमने एक स्वप्न देखा। अमावस्या की अंधेरी रात है, हम एक घने जंगल से गुजर रहे हैं। तेज हवा से जंगल में साँय-साँय की आवाज हो रही हैं। टार्च की रोशनी फेंकते, डरते-सहमते कदमों से हम चले जा रहे हैं। तभी हमने देखा एक चीता हम पर झपटने वाला था। हमने भागना चाहा किंतु पैरों में शक्ति नहीं रही। पैर लड़खड़ाने लगे और डर से हमारी चीख निकल गई। अपनी ही चीख सुनकर जब हमारी नींद खुली तो भय से हम काँप रहे थे। जाड़े की ठंडी रात में भी हमारा शरीर पसीने से लथ-पथ था।
वह तो अच्छा हुआ हमारी शादी नहीं हुई है वर्ना श्रीमती जी स्वयं तो हमारा मजाक उड़ाती हीं, अन्य सबके सामने भी हमारी बहादुरी के झंडे गाढ़ देतीं। फिर भी जब लोग हमें 'टाइगर' कहते हैं तो गर्व से हमारा सीना तन जाता है। वैसे ये टाइगर से डरने वाली बात हमने आपको बता तो दी है, किंतु आप किसी दूसरे से मत कहना वर्ना हमारी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी और हमारी इस 'टाइगर' की उपाधि का जनाजा निकल जाएगा। हमारे नाम से भय खाने वाले लोग टाइगर बन जाएँगे। अतः आपकी भलाई इसी में है कि हमारे इस राज को अपने तक ही रखें। यदि आप नहीं माने और हमारी पोल खोली तो बच्चू हमसे बच कर कहाँ जाओगे। किसी भी झगड़े-फसाद या चोरी के अपराध में फँसा देंगे या बिना लाइसेंस की बंदूक आपके पास से बरामद करा देंगे, नहीं तो आतंकवादी बना देंगे। बहुत हथकंडे हैं हमारे पास तुम्हें सलाखों के पीछे करने को...याद रखना।
अब तुम्हें एक और मजेदार प्रसंग सुनाते हैं। एक बार की बात है, हमारा तबादला एक छोटी जगह पर हो गया। हम जिस मकान में रहते थे वह बहुत लंबा-चौड़ा था। उसमें कई परिवार किराए पर रहते थे। एक किराएदार के पास रिवाल्वर भी थी। मकान मालिक स्वयं भी उसमें रहते थे। पहले तो वे थानेदार के नाम पर हमें किराएदार बनाने को तैयार नहीं हुए। हमारे एक दोस्त उनके बहुत अच्छे परिचित थे। उनकी मध्यस्थता से हमें यह मकान मिला था। वह भी एक झूठ बोलने के बाद कि हम शादीशुदा हैं। पत्नी गाँव में रहती है, उसे भी बाद में ले आएँगे। हमारे उस मकान में पहुँचने के बाद,हमारे नाम की महिमा सुन कर वह लोग अपने घरों में बड़ी बेफिक्री से रहने व सोने लगे थे। कहते थे, टाइगर के रहते किसकी हिम्मत है, जो इस घर में प्रवेश कर जाए।
अपने नाम की लाज रखने के लिए हमें अपनी रातों की नींद हराम करनी पड़ती, उनके घर की रखवाली की जिम्मेदारी तो मानो हम पर ही आ पड़ी थी। जरा-सी आहट पाते ही कान खड़े हो जाते थे, कहीं ये वो (चोर-उचक्का)' तो नहीं।
एक बार गर्मी की छुट्टियों में मकान मालिक सपरिवार एक महीने के लिए कहीं बाहर घूमने के लिए
चले गए और उनके घर की सुरक्षा हमारे जिम्मे आ पड़ी।
एक रात को बारह बजे के लगभग हम थाने से लौटे। बहुत जोरों से नींद आ रही थी। तभी हमें मकान मालिक के घर में किसी के कूदने की आवाज आई फिर कुछ खड़खड़ाहट सुनाई दी। हम चौंके कहीं ये वो ही तो नहीं है।
मकान मालिक की छत तक जाने के लिए किराएदारों की छत पार करनी पड़ती है। हमने सोचा इन छतों को पार करके वहाँ जाकर देखें कि कौन है। कदम बढ़ाया ही था कि मन में विचार उठा कि इस तरह रात को अँधेरे में छत पार करते देख कर, कोई हमें चोर न समझ ले और परिणाम स्वरूप उनकी गोली हमें छेद जाए या कहीं किसी ने लाठी से ही हम पर प्रहार कर दिया तो..? यदि हम नहीं जाते हैं और वहाँ चोरी हो गई तो...आखिर इस टाइगर उपाधि की रक्षा भी करनी है। डरते, सहमते कदमों से हम किराएदार की छत पर पहुँचे ही थे कि उनके घर जरा-सी आहट हुई, सोचा कि भाग लें, लेकिन तब तो सचमुच ही चोर समझ लिए जाते अतः फिर सँभल गए। आखिर हम मंजिल तक (मकान मालिक की छत) पहुँच ही गए।
चारों तरफ अंधकार था, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हमने जैसे ही टार्च जला कर मकान मालिक के आँगन में झाँका, तभी कोई हमारी तरफ उछला। डर की वजह से हमारी चीख निकल गई। टार्च हाथ से छूट कर दूर जा गिरी और हम भी गिरते-गिरते बचे। तभी पास से म्याऊँ-म्याऊँ करती एक बिल्ली गुजर गई।
हमारी चीख सुनकर सब किराएदार डंडा, हॉकी जो हाथ लगा लेकर ऊपर भागे चले आए। उन्होंने टार्च की रोशनी हम पर फेंकी और चौंकते हुए बोले-- 'अरे सिंह साहब, आप यहाँ कैसे ?...अभी कौन चिल्लाया था ?'
हम घबराए कि क्या कहें। यदि सच बता दिया कि बिल्ली से डर गए थे तब तो सब हंसेंगे और हमारी उपाधि खतरे में पड़ जाएगी। पुलिस में आकर कहानियाँ गढ़ना व झूठ बोलना तो आ ही जाता है। अतः फौरन हमने झूठ बोल दिया -- 'अरे कुछ भी तो नहीं हुआ। हम आप लोगों के घर की चौकीदारी कर रहे हैं। अभी थाने से लौटे हैं। इस घर में कुछ खड़खड़ाहट सुनाई दी तो सोचा कोई चोर तो घुस कर नहीं बैठ गया। वही देखने यहाँ चले आए थे। अंधेरे की वजह से ठोकर लग गई। हम गिरते-गिरते बचे हैं।'
दूसरे दिन हमें बदमाशों के एक गिरोह की तलाश में गाँव जाना पड़ा। रात्रि को करीब एक बजे बेहद थके हुए हम घर पहुँचे। पलकें नींद से बोझिल हो रही थीं। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। चारों तरफ अंधकार था। हमें आए हुए अभी कुछ ही देर हुई थी। हम कपड़े भी नहीं बदल पाए थे, तभी नजर मकान -मालिक की छत पर पड़ी। उनके छत वाले कमरे की लाइट जल रही थी। उन्हें तो अभी दस-पंद्रह दिन बाद आना था। तो उनके कमरे की लाइट किसने जलाई होगी ? लगा फिर कुछ गड़बड़ है किंतु फिर कई छतों को पार करके वहाँ तक जाने की हिम्मत नहीं हुई। वैसे जो भी होगा उतर कर तो वह इसी छत से जाएगा, तभी देखेंगे।
इसी सोच-विचार में अपनी छत पर कुर्सी पर बैठे-बैठे ही हमें नींद आ गई। अपनी आँखों पर किसी के हाथों का स्पर्श पाकर हम हड़बड़ा कर जगे। किसी ने हमारे नेत्रों को हाथों से दबा कर बंद कर रखा था। हमें फिर कमरे में बिजली जलने वाली घटना याद आ गई। अब हम समझ गए कि हो न हो यह कोई चोर या बदमाश ही है। भय से हमारी आवाज नहीं निकल रही थी। इधर-उधर टटोल कर रिवाल्वर ढूँढ़ी तो वह भी गायब थी। हमें पसीना आ गया। तभी किसी ने हमारी पीठ पर कुछ गड़ाते हुए कहा
- 'हैण्ड्स अप'
हम हाथ ऊपर उठाने को ही थे कि ध्यान आया यह आवाज तो मकान मालिक के बेटे मुकेश की है। हम कह उठे -- 'अरे यार क्यों मजाक करते हो, आँखें छोड़ो और सामने आओ। तुम इतनी जल्दी वापस कैसे आ गए ?'
वह हंसता हुआ सामने आकर खड़ा हो गया और बोला -- 'बस ये समझ लें कि वहाँ मेरा मन नहीं लगा इसलिए चला आया। अन्य सब लोग बाद में आएँगे।'
वह तो अच्छा हुआ कि कुछ दिन बाद ही वहाँ से हमारा तबादला हो गया। वर्ना 'टाइगर' की जो खाल हमें उढ़ा दी गई थी, किसी दिन जरूर उतर जाती। अब तो हम ऐसे स्वतंत्र मकानों में रहते हैं, जिसमें मकान मालिक, किराएदार कोई भी साथ न रहता हो।
किंतु इस खिताब के संग हमारा एक दुखड़ा जुड़ा है। हमारा रूप-रंग, डील-डौल, टाइगर का खिताब सुनकर कोई भी पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत कन्याश्री हमें वरमाला पहनाने को तैयार नहीं है। हमारे जासूसों ने खबर दी है कि कन्याऐं कहती हैं-- 'एक तो पुलिस वाला, वह भी टाइगर के नाम से कुख्यात। एक तो करेला वो भी नीम चढ़ा । न बाबा, नहीं करनी उससे शादी। घर में भी उसने पति न बन कर टाइगर बने रहना चाहा तो ये इकलौता जीवन रोते बीतेगा। नहीं खेलना उसके संग हमें ये शादी का जुआ।'
हम अब भी कुंवारे हैं, लेकिन 'टाइगर' का मोह नहीं छोड़ पाते। अब भी कहीं तबादले पर जाने से पूर्व हमारे चमचे उस जगह जा कर जोर-शोर से प्रचार कर आते हैं कि आने वाला ये थानेदार बहुत बहादुर है। गुंडे उसके नाम से थर्राते हैं। वह पैसा लेकर भी काम नहीं करता, किसी की नहीं सुनता। वह साक्षात टाइगर है। फिर एक बार आप सबको याद दिला दें, हमारी यह व्यथा-कथा किसी से न कहना । वर्ना......
हम अब भी टाइगर हैं। हमें इंतजार है बस एक सुकन्या का, जो हमें वर माला पहना सके।
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9 comments:
2 May 2010 at 17:29
पवित्रा अग्रवाल जी का वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में स्वागत है.टाईगर दरोगा की कहानी बहुत मजेदार रही, बधाई.
2 May 2010 at 17:48
बहुत अच्छी कहानी।
कभी कभी नाम के टाइगर के साथ ऐसा भी हो जाता है।
2 May 2010 at 18:24
टाइगर को सुकन्या चाहिए
हिन्दी ब्लॉगरों बतलाना।
2 May 2010 at 18:24
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
2 May 2010 at 18:32
ha ha ha.. ksisi se na kahenge Tiger ji.. bahut khoob..
Pavitra ma'am ka swagat hai.
2 May 2010 at 18:57
एक तो पुलिस वाला, वह भी टाइगर के नाम से कुख्यात। एक तो करेला वो भी नीम चढ़ा । न बाबा, नहीं करनी उससे शादी।
मजेदार कहानी !!
2 May 2010 at 21:45
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : सुश्री पवित्रा अग्रवाल जी का बढ़िया आलेख है!
बहुत-बहुत बधाई!
2 May 2010 at 22:31
बढ़िया आलेख है!
बहुत-बहुत बधाई!
26 January 2012 at 08:38
बहुत-बहुत बधाई!
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