प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में सुश्री आकांक्षा यादव की रचना पढिये.
लेखिका परिचय :
नाम- आकांक्षा यादव
जन्म - 30 जुलाई 1982, सैदपुर, गाजीपुर (उ0 प्र0)
शिक्षा- एम0 ए0 (संस्कृत)
विधा- कविता, लेख, व्यंग्य व लघु कथा।
प्रकाशन- इण्डिया टुडे, कादम्बिनी, साहित्य अमृत, दैनिक जागरण, अमर उजाला, आजकल, उत्तर प्रदेश, युगतेवर, इण्डिया न्यूज, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, राजस्थान पत्रिका, आज, गोलकोेण्डा दर्पण, युद्धरत आम आदमी, अरावली उद्घोष, गृहलक्ष्मी, गृहशोभा सहित शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। दो दर्जन से अधिक स्तरीय संकलनों में कविताएं संकलित। सम्पादन- ’’क्रान्ति यज्ञ: 1857-1947 की गाथा’’ पुस्तक में सम्पादन सहयोग।
सम्मान- साहित्य गौरव, काव्य मर्मज्ञ, साहित्य श्री, साहित्य मनीषी, शब्द माधुरी, भारत गौरव, साहित्य सेवा सम्मान, महिमा साहित्य भूषण, देवभूमि साहित्य रत्न, ब्रज-शिरोमणि, उजास सम्मान, काव्य कुमुद, सरस्वती रत्न इत्यादि सम्मानों से अलंकृत। राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’’भारती ज्योति’’ एवं भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘‘।
विशेष-‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ (सं0-डा0 राष्ट्रबन्धु, कानपुर नवम्बर 2009) द्वारा बाल-साहित्य पर विशेषांक प्रकाशन।
रुचियाँ- रचनात्मक अध्ययन व लेखन। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक समस्याओं सम्बन्धी विषय में विशेष रुचि।
सम्प्रति-प्रवक्ता, राजकीय बालिका इण्टर काॅलेज, नरवल, कानपुर (उ0प्र0)- 209401
सम्पर्क- द्वारा- श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवा, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
ई-मेलः kk_akanksha@yahoo.com
ब्लाग : शब्द-शिखर और उत्सव के रंग
मँहगाई
मँहगी सब्जी, मँहगा आटा
भूल गए सब दाल
मँहगाई ने कर दिया
सबका हाल बेहाल।
दूध सस्ता, पानी मँहगा
पेप्सी-कोला का धमाल
रोटी छोड़ ब्रेड खाओ
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कमाल।
नेता-अफसर मौज उड़ाएं
चलें बगुले की चाल
गरीबी व भुखमरी बढ़े
ऐसा मँहगाई का जाल ।
संसद में होती खूब बहस
सेठ होते कमाकर लाल
नेता लोग खूब चिल्लायें
विपक्ष बनाए चुनावी ढाल।
जनता रोज पिस रही
धंस गए सबके गाल
मँहगाई का ऐसा कुचक्र
हो रहे सब हलाल।
Akanksha
14 comments:
25 May 2010 at 16:56
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में सुश्री आकांक्षा यादव जी का इस बेहतरीन रचना के साथ स्वागत है.
25 May 2010 at 17:16
kya kahne.
25 May 2010 at 18:22
she needs no Introduction, all we Know Her very Well
25 May 2010 at 19:04
बहुत सुंदर ....
28 May 2010 at 16:43
मँहगी सब्जी, मँहगा आटा
भूल गए सब दाल
मँहगाई ने कर दिया
सबका हाल बेहाल।
....बहुत सही लिखा आकांक्षा जी ने..हमारा भी हाल महंगाई से बेहाल है.
28 May 2010 at 16:49
महंगाई से तो सभी त्रस्त हैं..बेहतरीन रचना..बधाई !!
28 May 2010 at 16:53
शब्दों को सुन्दर धार दी आपने इस कविता में. आकांक्षा जी को बधाई.
28 May 2010 at 16:57
सच को आइना दिखाती कविता..शुभकामनायें.
28 May 2010 at 17:03
नेता-अफसर मौज उड़ाएं
चलें बगुले की चाल
गरीबी व भुखमरी बढ़े
ऐसा मँहगाई का जाल ।
....करार व्यंग्य...सार्थक रचना.
28 May 2010 at 17:09
दूध सस्ता, पानी मँहगा
पेप्सी-कोला का धमाल
रोटी छोड़ ब्रेड खाओ
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कमाल।... कभी रूस में एक रानी ने भी यही कहा था की रोटियां नहीं हैं तो क्या हुआ, ब्रेड खाओ. आपकी कविता मर्म पर चोट करती है..बधाई.
28 May 2010 at 17:15
कविता तो शानदार है. तीखी चोट, करार व्यंग्य..बधाई .
28 May 2010 at 17:15
यहाँ अंडमान में तो कई बार पैसे होने पर भी चीजें जल्दी नहीं मिलती और मेन लैंड से चीजें दुगुने-तिगुने दाम पर मिलती हैं..यह भी एक महंगी बेबसी है.
28 May 2010 at 17:22
आप सभी ने सराहा , अच्छा लगा. आपकी टिप्पणियों व स्नेह के लिए आभार !!
28 May 2010 at 17:22
ताऊ जी, मेरी कविता पुन : प्रकाशित करने के लिए आभार !!
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