प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री कृष्ण कुमार यादव की रचना पढिये.
लेखक परिचय :
नाम : कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक सेवा
निदेशक डाक सेवाएं
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
जीवन-वृत्त कृष्ण कुमार यादव
जन्म : 10 अगस्त 1977, तहबरपुर, आजमगढ़ (उ0 प्र0)
शिक्षा : एम0 ए0 (राजनीति शास्त्र), इलाहाबाद विश्वविद्यालय
लेखन विधा : कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, व्यंग्य एवं बाल कविताएं।
कृतियाँ : अभिलाषा (काव्य संग्रह-2005), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह-2006), इण्डिया पोस्ट- 150 ग्लोरियस इयर्स (अंगे्रजी-2006), अनुभूतियाँ और विमर्श (निबन्ध संग्रह-2007), क्रान्ति यज्ञ: 1857-1947 की गाथा (2007)।
विशेष : शोधार्थियों हेतु व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ डा0 दुर्गा चरण मिश्र द्वारा संपादित एवं इलाहाबाद से प्रकाशित। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु द्वारा सम्पादित ‘बाल साहित्य समीक्षा’(सितम्बर 2007) एवं इलाहाबाद से प्रकाशित ‘गुफ्तगू‘ (मार्च 2008) द्वारा व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित।
प्रकाशन : शताधिक प्रतिष्ठित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन। चार दर्जन से अधिक स्तरीय संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन। इण्टरनेट पर विभिन्न वेब पत्रिकाओं-सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, काव्यांजलि, रचनाकार, हिन्दीनेस्ट, स्वर्गविभा, कथाव्यथा, युगमानस, वांग्मय पत्रिका, कलायन, ई-हिन्दी साहित्य इत्यादि में रचनाओं की प्रस्तुति।
प्रसारण आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर व पोर्टब्लेयर से रचनाओं, वार्ता और परिचर्चाओं का प्रसारण।
सम्मान विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा सोहनलाल द्विवेदी सम्मान, कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान, काव्य गौरव, राष्ट्रभाषा आचार्य, साहित्य मनीषी सम्मान, साहित्यगौरव, काव्य मर्मज्ञ, अभिव्यक्ति सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, साहित्य श्री, साहित्य विद्यावाचस्पति, देवभूमि साहित्य रत्न, ब्रज गौरव, सरस्वती पुत्र, प्यारे मोहन स्मृति सम्मान, भारती-रत्न, विवेकानन्द सम्मान,महिमा साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न एवं महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत।
अभिरूचियाँ रचनात्मक लेखन व अध्ययन, चिंतन, नेट-सर्फिंग, ब्लाॅगिंग, फिलेटली, पर्यटन, सामाजिक व साहित्यिक कार्यों में रचनात्मक भागीदारी, बौद्धिक चर्चाओ में भाग लेना।
सम्प्रति/सम्पर्कः कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवा, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101 मो0-09476046232 ई-मेलः kkyadav.y@rediffmail.com
ब्लॉग- शब्द सृजन की ओर एवम डाकिया डाक लाया
मेरी कहानी
कल ही एक मित्र का फोन आया
सुना था
दिल्ली की कई साहित्यिक
पत्रिकाओं में
उसकी घुसपैठ है
सो आदतन बोल बैठा
यार मेरी भी एक कहानी कहीं लगवा दे
वह हँस कर बोला
यह तो मेरे बायें हाथ का खेल है
मेरा दिल गदगद हुआ
ऐसे दोस्त को पाकर मैं धन्य हुआ
अगले ही दिन
अपनी एक नई कहानी
मित्र के पते पर भिजवा दी
और इंतजार करने लगा
उसके छपने का
दो-तीन माह बाद
सुबह ही सुबह
मित्र का फोन आया
पाँच सौ रूपये का मनीआॅर्डर
मुझे भेजा जा रहा है
और अगले अंक में
मेरी रचना
छप कर आ रही है
रोज आॅफिस से आते ही
पहले पड़ोस की
पुस्तकों की दुकान पर जाता
और पत्रिका को न पाकर
झल्लाकर वापस चला आता
आखिर
वो शुभ दिन आ ही गया
पत्रिका के पृष्ठ संख्या पैंतीस पर
मेरी कहानी का शीर्षक जगमगा रहा था
तुरन्त उसकी दो प्रतियाँ खरीद
बगल में स्थित मिष्ठान-भंडार से
ताजा मोतीचूर का लड्डू
पैक कराया और
जल्दी से घर आकर
पत्नी को गले लगाया
प्रिये! ये देखो
तुम्हारे पति की कहानी छपी है
पत्नी ने उत्सुकतावश
पत्रिका के पन्ने फड़फड़ाये और
पृष्ठ संख्या पैंतीस पर ज्यों ही हाथ रखा
मैने उसके मुँह में लड्डू डाला
कि वह बोल उठी
पहले आपका नाम तो देख लूँ
कहीं दूसरे की कहानी को तो
अपनी नहीं बता रहे
हाँ.....हाँ.....क्यों नहीं प्रिये
पर यहाँ तो दांव ही उल्टा पड़ गया
कहानी तो मेरी थी
पर छपी किसी दूसरे के नाम से थी
अब अपने दोस्त की
घुसपैठ का माजरा
कुछ-कुछ समझ में आ रहा था
सामने पड़ा पाँच सौ रुपये का मनीआॅर्डर
और मोतीचूर का लड्डू
मुझे मुँह चिढ़ा रहा था।
तारीख 17 मई 2010
26 comments:
17 May 2010 at 17:12
बहुत खूब ऐसा भी होता है
17 May 2010 at 18:20
मोतीचूर के लड्डू को तो बिखरना ही था ....
17 May 2010 at 18:49
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री कृष्ण कुमार यादव जी का स्वागत ह. रचना के लिए बधाई.
18 May 2010 at 09:03
व्यंग्य के बहाने सुन्दर कटाक्ष...बधाई !!
18 May 2010 at 12:35
मेरे तो दिल्ली में कई ऐसे मित्र हैं, जो पैसे लेकर किसी के नाम से भी लिख सकते हैं. उनके लिए बेरोजगारी के दौर में पैसा महत्वपूर्ण है, न कि रचना या नाम.
18 May 2010 at 12:35
बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना..बधाई !!
18 May 2010 at 12:39
कृष्ण कुमार यादव जी, इस कविता के माध्यम से आपने कईयों की नींद उड़ा भी दी और कईयों की खोल भी दी...साधुवाद.
18 May 2010 at 12:49
हा..हा..हा...पढ़कर मजा आ गया. एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है.
18 May 2010 at 16:39
पहले आपका नाम तो देख लूँ
कहीं दूसरे की कहानी को तो
अपनी नहीं बता रहे
हाँ.....हाँ.....क्यों नहीं प्रिये
पर यहाँ तो दांव ही उल्टा पड़ गया
.....Ye to khub Majedar rahi....!!
18 May 2010 at 16:51
समझ में नहीं आ रहा क्या कहूँ इस विडम्बना पर...पर इतना जरुर समझ में आ रहा है कि नेता, उद्योगपतियों के नाम से कैसे लेखन का गोरख धंधा होता है.
18 May 2010 at 16:55
शुक्र है कि ५००/- का मनीआर्डर तो मिल गया....नहीं तो वो भी जाता..शानदार व्यंग्य रचना..बधाई.
18 May 2010 at 16:59
खूब कही. दिल्ली में तो यह आम बात है. घोस्ट राइटिंग का खूब प्रचलन बढ़ रहा है, पर इस मामले में तो दांव ही उल्टा पड़ गया...
18 May 2010 at 17:04
भैये, सब राम राज है...पत्र-पत्रिकाओं में भी दलालों का बोलबाला है. कोई सुनवाई नहीं है. अपने इसी उठाकर अच्छा ही किया. शायद इसे पढ़कर कुछ लोग सतर्क तो हो जाएँ.
18 May 2010 at 17:08
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में कृष्ण कुमार यादव जी की यह तीसरी व्यंग्य रचना पढ़ रहे हैं ...हार्दिक बधाई.
18 May 2010 at 17:11
सुन्दर और सार्थक व्यंग्य रचना. समाज के सच को उजागर करता कड़वा व्यंग्य.
18 May 2010 at 17:14
लेखकों-कवियों की व्यथा को शब्द देती लाजवाब व्यंग्य कविता ...कृष्ण जी को बधाई !!
18 May 2010 at 17:17
अच्छा बताया आपने. अब तो हमें कहीं रचना भेजने से पहले एक बार नहीं सौ बार सोचना होगा...
18 May 2010 at 17:18
आपकी प्रस्तुति का अंदाज़ निराला लगा..मुबारकवाद.
18 May 2010 at 17:23
आप सभी की हौसला अफजाई व स्नेह के लिए आभार !!
18 May 2010 at 17:23
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में तीसरी बार मेरी रचना प्रकाशन के लिए ताऊ जी का आभार !!
18 May 2010 at 17:25
...हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी होता होगा. ज्ञान चक्षु खुल गए. डबल बधाई.
18 May 2010 at 17:31
फिर से के.के. यादव जी. लगता है ताऊ जी कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं. खैर प्रिंट आउट निकलकर रख लिया है. आराम से पढूँगा. पहली नजर में तो रोचक, मजेदार लगी पर इसमें कई निहित सन्देश व भाव भी हैं. उनकी मुझे तलाश है..
18 May 2010 at 17:37
के.के. जी, आपके लेखन का जवाब नहीं. छाये हुए हैं आजकल..बधाई. वैशाखनंद में एक नहीं तीन बार आपकी रचनाएँ....चौके में अब एक ही रन बाकी है...अडवांस में बधाई ले लें.
18 May 2010 at 17:38
और आपकी यह कविता तो धांसू है. कभी हमें भी कुछ ऐसा ही लिख भेजिए जो हम आपने नाम से प्रकाशित कराएँ...जस्ट जोक.
19 May 2010 at 09:30
मजेदार...बढ़िया है.
20 May 2010 at 10:37
ऐसा भी होता है??????? होता है होता है..............ऐसा hi होता है ;))))
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