प्रिय ब्लागर मित्रगणों,
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री समीरलाल "समीर" की रचना पढिये.
लेखक परिचय
नाम : समीर लाल "समीर"
उम्र : 46 वर्ष
स्थान : जबलपुर से कनाडा
शौक : पढ़ना, मित्रों के साथ बातचीत करना, लिखना और नये ज्ञान की तलाश
ब्लाग : उडनतश्तरी
बिजली रानी, बड़ी सयानी

समाचार पढ़ा:
"मेसाचुसेट्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोग कर दिखा दिया है कि अब बिजली के तार की जरूरत नहीं पडेगी। उन्होंने बिना तार के बिजली को एक स्थान से दूसरे स्थान पहूँचा कर दिखा दिया. वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह रिजोनेंस नामक सिद्धांत के कारण हुआ है।"
यह खबर जहां एक तरफ खुशी देती है तो दूसरी तरफ न जाने कैसे कैसे प्रश्न खड़े कर देती है दिमाग में. अमरीका में तो चलो, मान लिया.
मगर भारत में?
एक मात्र आशा की किरण, वो भी जाती रहेगी. अरे, बिजली का तार दिखता है तो आशा बंधी रहती है कि आज नहीं तो कल, भले ही घंटे भर के लिए, बिजली आ ही जायेगी. आशा पर तो आसमान टिका है, वो आशा भी जाती रहेगी.
सड़कें विधवा की मांग की तरह कितनी सूनी दिखेंगी. न बिजली के उलझे तार होंगे और न ही उनमें फंसी पतंगे होंगी. जैसे ही नजर उठी और सीधे आसमान. कैसा लगेगा देखकर. आँखे चौंधिया जायेंगी. ऐसे सीधे आसमान देखने की कहाँ आदत रह गई है.
चिड़ियों को देखता हूँ तो परेशान हो उठता हूँ. संवेदनशील हूँ इसलिये आँखें नम हो जाती हैं. उनकी तो मानो एक मात्र बची कुर्सी भी जाती रही बिना गलती के. पुराने रेल वाले मंत्री की तो फिर भी अपनी गलती से गई, मगर ये पंछी तो बेचारे चुपचाप ही बैठे थे बिना किसी बड़ी महत्वाकांक्षा के. पेड़ तो इन निर्मोहि मानवों ने पहले ही नहीं छोड़े. बिजली के तार ही एकमात्र सहारा थे, लो अब वो भी विदा हो रहे हैं.
विचार करता हूँ कि जैसे ही ये बिना तार की बिजली भारत के शहर शहर पहुँचेगी तो उत्तर प्रदेश और बिहार भी एक न एक दिन जरुर पहुँचेगी. तब जो उत्तर प्रदेश का बिजली मंत्री इस कार्य को अंजाम देगा वो राजा राम मोहन राय सम्मान से नवाज़ा जायेगा.
राजा राम मोहन राय ने भारत से सति प्रथा खत्म करवाई थी और यह महाशय, उत्तर प्रदेश से कटिया प्रथा समाप्त करने के लिए याद रखे जायेंगे. जब तार ही नही रहेंगे तो कटिया काहे में फसांयेंगे लोग. वह दिन कटिया संस्कृति के स्वर्णिम युग का अंतिम दिन होगा और आने वाली पीढ़ी इस प्रथा के बारे में केवल इतिहास के पन्नों में पढ़ेगी जैसा यह पीढ़ी नेताओं की ईमानदारी के बारे में पढ़ रही है.
थोड़ा विश्व बैंक से लोन लेने में आराम हो जायेगा. अभी तो उनका ऑडीटर आता है तो झूठ नहीं बोल पाते, जब तक तार-वार नहीं बिछवा दें कि इस गाँव का विद्युतिकरण हो गया है. तब तो दिन में ऑडीटर को गाँव गाँव की हेलिकॉप्टर यात्रा करा कर बता दो कि १००% विद्युतिकरण हो गया है. तार तो रहेंगे ही नहीं तो देखना दिखाना क्या? शाम तक दिल्ली वापिस. पाँच सितारा होटल में पार्टी और लोन अप्रूव अगले प्रोजेक्ट के लिए भी.
एक आयाम बेरोजगारी का संकट भी है. अभी भी हालांकि अधिकतर बिजली की लाईनें शो पीस ही हैं, लेकिन टूट-टाट जायें, चोरी हो जायें तो कुछ काम विद्युत वितरण विभाग के मरम्मत कर्मचारियों के लिए निकल ही पड़ता है. एक अच्छा खासा भरा पूरा अमला है इसके लिए. उनका क्या होगा?
न तार होंगे, न टूटेंगे, न चोरी होगी. वो बेचारे तो बेकाम हो जायेंगे नाम से भी.
न मरम्मत कर्मचारियों की नौकरी बचेगी, न तार चोरों की रोजी और न उनको पकड़ने वाली पुलिस की रोटी. बड़ा विकट सीन हो जायेगा हाहाकारी का. कितनी खुदकुशियाँ होंगी, सोच कर काँप जाता हूँ. विदर्भ में हुई किसानों की खुदकुशी की घटना तो इस राष्ट्रव्यापी घटना के सामने अपना अस्तित्व ही खो देगी हालांकि अस्थित्व बचाकर भी क्या कर लिया. कौन पूछ रहा है. सरकार तो शायद अन्य झमेलों में उन्हें भूला ही बैठी है.
चलो चोर तो फिर भी गुंडई की सड़क से होते हुए डकैती का राज मार्ग ले कर विधान सभा या संसद में चले जायेंगे, जाते ही है, सिद्ध मार्ग है मगर ये बेकार बेकाम हुए मरम्मत कर्मचारी और पुलिस. इनका क्या होगा?
एक तार का जाना और इतनी समस्यायों से घिर जाना. कैसे पसंद करेगी मेरे देश की भोली और मासूम जनता!!
योजना अधिकारियों से करबद्ध निवेदन है कि जो भी तय करना, इन सब बातों पर चिन्तन कर लेना.
मेरा क्या, मैं तो बस सलाह ही दे सकता हूँ. भारतीय हूँ, निःशुल्क हर मामले में सलाह देना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है. और हाँ, मैं कवि भी तो हूँ, बहुत ज्यादा जिद करोगे तो कविता सुना सकता हूँ. नेता होता तो कुछ वादे भी कर देता:
सबको यह चौकाती बिजली
बिन तारों के आती बिजली.
चोर नापते सूनी सड़कें
उनकी रोजी खाती बिजली.
कभी सुधारा जो करते थे
उनको धता बताती बिजली.
कटियाबाजी वाले युग को
इतिहासों में लाती बिजली.
सोच सोच कर डर जाता हूँ
कैसे दिन दिखलाती बिजली.
-समीर लाल ’समीर’
तारीख 14 मई 2010
9 comments:
14 May 2010 at 06:31
बढ़िया रचना!
समीर लाल जी को बधाई!
14 May 2010 at 07:07
यह हैं असली समीर लाल ! हमें तो यही रूप पसंद है ...शांत और सरल समीर लाल ...
14 May 2010 at 07:12
बिजली की चर्चा भी रोशनी दे गई..बढ़िया व्यंग..और नीचे २-२ लाइन वाली रचना तो और भी बेहतरीन..बधाई
14 May 2010 at 12:48
सबको यह चौकाती बिजली
बिन तारों के आती बिजली.
इसी बिजली का इंतजार है
छम छम करती आती बिजली
14 May 2010 at 18:26
badhiya rachna.....badhai sameer jee ko..
14 May 2010 at 20:27
आपकी चिन्ता तो जायज़ है...यदि ऐसी बिजली आ गयी तो क्या होगा? :):)
बहुत बढ़िया व्यंग है...शुभकामनायें
14 May 2010 at 21:38
बहुत बढ़िया व्यंग्य लिखा है.
15 May 2010 at 02:08
वाह्! बहुत ही बढिया व्यंग्य रचना समीर जी...
बधाई!!
15 May 2010 at 04:53
इसे कहते हैं असली व्यंग्य रचना.. देख ले दीपक 'मशाल' और सीख ले कुछ... :) ये मैंने नहीं मेरे दिमाग ने कहा मुझसे..
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